उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को लेकर बनाए गए नेम प्लेट नियम को लेकर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया है लेकिन राजनीतिक बयानबाजी अभी भी बदस्तूर जारी है. इसी कड़ी में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने इस मसले पर एक बार फिर भड़क गए हैं और उन्होंने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को निशाने पर लेते हुए उनकी तुलना हिटलर से कर दी.
अपनी पार्टी की एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा, ‘कई मुसलमानों को नौकरी से निकाल दिया गया और उनके कहा गया कि 5 अगस्त के बाद आना. ये तो हमारे मुल्क के आईन के खिलाफ है. इस बात की इजाजत नहीं मिलती है कि किसी के साथ मजहब के नाम पर नाइंसाफी की जाए. हमारे देश का कानून कहता है कि सब बराबर हैं, कोई बड़ा छोटा नहीं है. उत्तर प्रदेश की सरकार ने जो कानून बनाया, उससे मुझे हिटलर की याद आ गई.’
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सीएम योगी की तुलना हिटलर से
अपने शब्दों को आगे बढ़ाते हुए पार्टी प्रमुख ने कहा कि 1930 में जर्मनी के अंदर हिटलर को याद करते हैं तो हिटलर ने यहूदियों से कहा था कि आप अपने दाएं हाथ के ऊपर स्टार ऑफ डेविड यानि जो निशान है उसका पट्टा बांधना पड़ेगा. इसके बाद हिटलर ने कहा कि यहूदियों से कोई सामान नहीं खरीदेगा, उनका बायकॉट होगा. उन्होंने कहा कि ये जो फैसला उत्तर प्रदेश की योगी हुकूमत ने लिया वो हिटलर के फैसले की याद को ताजा करता है. सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर रोक लगा दी है.
जहां बीजेपी, वहां मुस्लिमों से भेदभाव
असदुद्दीन ओवैसी ने मध्यप्रदेश का जिक्र करते हुए कहा कि जहां कहीं भी बीजेपी है, वहां पर मुसलमानों के साथ भेदभाव है. उन्होंने दावा किया कि मध्य प्रदेश में 11 से ज्यादा मुसलमानों के घरों को बुलडोजर से गिरा दिया गया. 4 जून को नतीजे आए उसके बाद 14 से 15 मुसलमानों की मौत मॉब लिंचिंग में हुई. इसी तरह हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, वहां पर एक मुसलमान को लेकर अफवाह उड़ाई गई कि उसने गाय की कुर्बानी दी जबकि उसने बकरीद पर भैसे की कुर्बानी दी थी.
मोदी सरकार पर भी साधा था निशाना
इससे पहले ओवैसी ने आरएसएस के बहाने से केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा था. दरअसल, केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर बैन लगाया गया बैन हटाया था. इस तरह की कथित अफवाहें चल रही हैं. इस पर ओवैसी ने कहा कि अगर कोई भी सिविल सर्वेंट आरएसएस का सदस्य है तो वह देश के प्रति वफादार नहीं हो सकता है. इसकी वजह ये है कि आरएसएस संविधान और तिरंगे के खिलाफ रहा है.
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हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘कथित तौर पर पता चलता है कि सरकार ने आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर लगे बैन को हटा दिया है. अगर ये सच है तो फिर ये भारत की अखंडता और एकता के खिलाफ है.’ उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस पर बैन इसलिए था, क्योंकि उसने संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को स्वीकार करने से इनकार किया. हर एक आरएसएस सदस्य हिंदुत्व को देश से ऊपर रखने वाली शपथ लेता है. कोई भी सिविल सर्वेंट अगर आरएसएस का सदस्य है तो वह देश के प्रति वफादार नहीं हो सकता है.
कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा था. इस संबंध में पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ऑफिस मेमोरेंडम शेयर करते हुए कहा, “फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया. इसके बाद भी आरएसएस ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया था.