uproar over kanwar yatra
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सावन के महीने में भगवान शिव की प्रसिद्ध कांवड़ 22 जुलाई से शुरू हो रही है. इस यात्रा को लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में खास इंतजाम किए जा रहे हैं. इन तीन राज्यों में लाखों की संख्या में लोग कांवड़ यात्रा निकालते हैं. तीनों राज्यों का प्रशासन कांवड़ियों के खास इंतजाम में लगा हुआ है. हालांकि कांवड़ यात्रा के शुरू होने से पहले ही इस पर विवाद हो गया है. दरअसल, कांवड़ यात्रा का 240 किमी. लंबा रूट मुजफ्फरनगर में पड़ता है. ऐसे में कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए मुजफ्फरनगर के एसएसपी ने कांवड़ के मार्ग में आने वाले खान-पान के होटल ढाबे या ठेले, जहां से भी कांवड़िए अपनी खाद्य सामग्री खरीद सकते हैं, उन्हें निर्देश दिए गए हैं कि काम करने वाले या संचालकों के नाम ‘नेम प्लेट’ वहां जरूर अंकित करें, ताकि किसी भी प्रकार का कोई कंफ्यूजन किसी को न रहे और कहीं भी ऐसी स्थिति न बने.

 सहारनपुर के डीआईजी ने भी कांवड़ के रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के ऊपर उनके प्रोप्राइटर्स का नाम लिखने का आदेश जारी किया है. इस संबंध में तर्क दिया गया है कि कुछ लोगों ने इस बात की आपत्ति प्रकट की थी कि जब कांवड़िए आते हैं तो सामान की कीमतों को लेकर विवाद पैदा होता है. इसके साथ ही दुकान किसी और की और नाम किसी और व्यक्ति का लिखा होने से भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है. इसको देखते हुए कांवड़ मार्ग के सारे दुकानदार, फल विक्रेता और होटल मालिक अपने संस्थानों पर प्रोप्राइटर का नाम आवश्यक रूप से लिखेंगे.

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 आदेशों के बाद ठेला चलाने वाले फल विक्रेताओं ने भी ठेले के आगे नाम वाला बोर्ड टांग लिया है. किसी ने आरिफ आम वाला तो किसी ने गुप्ता ज्यूस वाला जैसे नाम वाले बोर्ड टांग दिए हैं. कांवड़ यात्रा में नेम प्लेट विवाद के बाद अब कथित तौर पर हिंदू होटल से मुस्लिम कर्मचारियों को हटाया जा रहा है.

 इस व्यवस्था पर सबसे पहले सवाल उठाते हुए एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कांवड़ यात्रा को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस की आलोचना की. ओवैसी ने सरकार पर निशाना साधते हुए इस आदेश की तुलना दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद और जर्मनी में हिटलर की तानाशाही के फैसले से की. उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में इसे रंगभेद और जर्मनी में इसका नाम जूडेनबाॅयकाॅट था.

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 वहीं सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने पुलिस के इस आदेश को तुगलकी फरमान बताया है. उन्होंने कहा, ‘यूपी पुलिस ने एक तुगलकी फरमान जारी किया है, जो समाज को बांटने का काम करेगा. कांवड़ यात्रा का हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी को सम्मान करना चाहिए. उन्हें समाज में एकजुटता का संदेश देना चाहिए. इस तरह की बातें नफरत को बढ़ावा देती हैं, यह फरमान बहुत ही दुखद है.’ उन्होंने यह भी कहा कि कांवड़ बनाने वाले लोगों में मुसलमान भी शामिल हैं और कांवड़ियों के पहनने वाले कपड़े सहारनपुर के होजरी में तैयार होते हैं, जो मुस्लिम भाई बनाते हैं. ये लोग हिंदू-मुसलमान को बांटने की बात कर रहे हैं.

 बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने भी इस फैसले को वापिस लेने की बात कही. मायावती ने कहा कि पश्चिमी उप्र व मुजफ्फरनगर जिला के कांवड़ यात्रा मार्ग में पड़ने वाले सभी होटल, ढाबा, ठेला आदि के दुकानदारों को मालिक का पूरा नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करने का नया सरकारी आदेश एक गलत परम्परा है, जो सौहार्दपूर्ण वातावरण को बिगाड़ सकता है. जनहित में सरकार को इसे वापिस लेना चाहिए.

 वहीं सपा के पूर्व सांसद एसटी हसन ने इसे समाज को बांटने की साजिश बताया. उन्होंने कहा कि आप एक संदेश दे रहे हैं कि मुसलमान की दुकान से कुछ भी खरीदना बंद कर दें.

 कांग्रेस की ओर से भी इस फैसले पर बड़ा बयान दिया गया है. पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि क्या हिंदुओं का बेचा गया मीट, दाल-चावल बन जाएगा? ठीक वैसे ही कोई अल्ताफ या रशीद आम-अमरूद बेच रहा है, वो गोश्त तो नहीं बन जाएगा. खेड़ा ने एक वीडियो शेयर करते हुए कहा कि कांवड़ यात्रा के रूट पर फल-सब्ज़ी विक्रेताओं व रेस्टोरेंट ढाबा मालिकों को बोर्ड पर अपना नाम लिखना होगा. इसके पीछे की मंशा बड़ी स्पष्ट है, हिंदू कौन और मुसलमान कौन? हो सकता है कि इसमें जाति भी हो. यूपी सरकार ने जो आदेश जारी किया है, इसके पीछे मंशा है कि कैसे मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार का सामान्यीकरण करना है. इस मंशा को हम कामयाब नहीं होने देंगे.’ खेड़ा ने आरोप लगाते हुए कहा कि ये संघ वाले लोग हैं, जो बिना सोचे-समझे काम करते हैं.

 मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने इस फैसले पर सवाल उठाया है. वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सौहार्द का वातावरण बिगाड़ने का आरोप लगाया. सपा प्रमुख ने कहा कि ..और जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा.

 चूंकि कांवड़ यात्रा को शुरू होने में केवल तीन दिवस रह गए हैं. ऐसे में इस फैसले के खिलाफ सवाल उठना लाजमी है. आगामी एक दो दिन में इस पर राजनीति तेज हो सकती है.

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