पॉलिटॉक्स ब्यूरो. आमिर खान की एक फिल्म में एक डायलॉग था ”जो जीता वही सिकंदर”. बात भी सही है लेकिन महाराष्ट्र में NCP ने इस घारणा को गलत साबित कर दिया. भले ही प्रदेश में भाजपा और शिवसेना की स्पष्ट तौर पर एक तरफा सरकार बन रही है लेकिन यहां एनसीपी के शरद पवार हारकर भी सिकंदर बन गए. वहां जीतने के बाद भी भाजपा और शिवसेना के चर्चे नहीं है लेकिन सियासी गलियारों के साथ-साथ मीडिया संस्थानों में भी इस समय केवल और केवल शरद पवार छाए हुए हैं. वहीं हरियाणा में अस्तित्व खोती कांग्रेस ने अपने आपको जिंदा रहने में सफलता हासिल की.
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की ताबड़तोड़ रैली व जनसभाओं से माहौल ऐसा लग रहा था कि प्रदेश में भाजपा-शिवसेना आसानी से 200+ पार कर जाएंगे. वहीं कांग्रेस-एनसीपी 50 के अंदर सिमट जाएंगे. एक्जिट पोल भी कुछ यही कहानी कह रहे थे लेकिन जैसे ही मतगणना शुरू हुई, नतीजे चौंकाने वाले आने लगे.
भाजपा-शिवसेना दोनों मिलकर केवल बहुमत जुटा पाए. 288 विधानसभा सीटों पर बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए और भाजपा-शिवसेना के 159 विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे. वहीं सत्ताधारी पक्ष जिन्हें 50 के अंदर सिमटने का दावा कर रहा था, उनमें एनसीपी ने 53 और कांग्रेस ने 47 सीट जीत हंगामा कर दिया. चुनाव से कुछ समय पहले ईडी का शरद पवार का नाम महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक घोटाला मामले में नाम घसीटने का दांव भाजपा का भारी पड़ गया. यहां जितने भी वोट पड़े, सारे पवार के नाम पर पड़े. वहीं कांग्रेस ने भी विपरित लहर में ठीक ठाक प्रदर्शन किया. अब NCP के समर्थक यहां तक कह रहे हैं कि अगर NCP शरद पवार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देती तो शायद प्रदेश की जनता पवार सरकार बनते देख पाती.
यह भी पढ़ें: दुष्यंत ने कांग्रेस के साथ जाने के दिए संकेत, कर्नाटक की तर्ज पर बन सकते हरियाणा के मुख्यमंत्री
बात करें हरियाणा की तो यहां कांग्रेस ने मोदी लहर के बीच अपना परचम फहराने की तैयारी कर ली है. प्रदेश में राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ रही भाजपा को मुंह की खानी पड़ी और यहां कांग्रेस ने बराबरी की टक्कर का मुकाबला खेला. हरियाणा में भाजपा ने 40, कांग्रेस ने 31 और 10 सीटें निर्दलीय व अन्य पार्टियों के खाते में आयी. स्थानीय पार्टी जननायक जनता पार्टी (JJP) ने अचंभित करते हुए 10 सीटों पर कब्जा करते हुए किंगमेकर की भूमिका अदा करने की तैयारी कर ली. अब भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों को अपनी सरकार बनाने के लिए जेजेपी के मुखिया दुष्यंत चौटाला के साथ की जरूरत है. उनकी हां दोनों में से किसी की भी सरकार बना सकती है. हालांकि उनका झुकाव कांग्रेस की ओर अधिक है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि महाराष्ट्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस के स्टार प्रचारक चुनाव प्रचार के लिए नहीं उतरे. राहुल गांधी की दोनों राज्यों में अंतिम समय में सात रैलियों को छोड़ दें तो कोई बड़ा नेता जनसभा करने नहीं पहुंचा. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की हरियाणा में इकलौती रैली को भी उन्होंने संबोधित नहीं किया. पार्टी की महासचिव और कांग्रेस राजनीति का उभरता चेहरा प्रियंका गांधी ने दोनों राज्यों में एक सभा तक को संबोधित नहीं किया. मनमोहन सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, कै.अमरिंदर सिंह, अविनाश पांडे, शशि थरूर आदि ने किसी रैली में भाग नहीं लिया. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुंबई में जनसभा को संबोधित करते हुए अपनी राजनीतिक जादूगरी का जलवा जरूर दिखाया. इसके बावजूद हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी का प्रदर्शन वाकयी में काबिले तारीफ है.
खैर, रूझान और परिणाम दोनों आ चुके हैं. अब इंतजार है तो सिर्फ सरकार बनने और जोड़ तोड़ करने का. इसके लिए विधायकों की बाड़बंदी शुरू हो गई है. राजधानी दिल्ली में जेजेपी, कांग्रेस और भाजपा की अलग-अलग बैठकों का दौर भी शुरू हो गया है. दीपावली से पहले पहले प्रदेश की जनता को उनके जनाधार का तौहफा मिल जाएगा.