akhilesh yadavs wish or compulsion to share seats with congress in up in loksabha elections
akhilesh yadavs wish or compulsion to share seats with congress in up in loksabha elections

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के उत्तर प्रदेश में प्रवेश के बावजूद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में आम चुनावों में सीटों के बंटवारे को सहमति नहीं बन पायी थी. ऐसे में प्रियंका गांधी एक बार फिर कांग्रेस की तारणहार बनकर सामने आयी और राहुल-अखिलेश की जोड़ी बना ही दी. माना जा रहा है कि इस बार प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़कर पहले बार सक्रिय राजनीति में कदम रखने जा रही है. यूपी में राहुल गांधी से ज्यादा प्रियंका के चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ा जा सकता है. जब कांग्रेस का कोई बड़ा नेता सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मनाने में कामयाब नहीं हुआ तो प्रियंका के एक कॉल ने सारी परेशानियों का हल सुझा दिया.

कांग्रेस-सपा गठबंधन में कांग्रेस को 17 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा. इनमें रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्र भी शामिल है. इनके अलावा, कानुपर नगर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुरा, बाराबंकी और देवरिया शामिल है. शेष 63 सीटों पर सपा और उसके सहयोगी संगठन चुनावी मैदान में उतरेंगे.

यह भी पढ़ें: राजस्थान में मोदी के विजय रथ को रोक पाएगी राहुल गांधी की न्याय यात्रा?

ये भी बात गौर करने लायक है कि विपक्ष गठबंधन में शामिल अखिलेश यादव कभी भी कांग्रेस को इतनी सारी सीटें देने के लिए तैयार नहीं थे. इससे पहले उन्होंने कांग्रेस को केवल दो सीटें आॅफर की थी क्योंकि पिछले आम चुनाव में कांग्रेस पूरे यूपी में केवल रायबरेली सीट जीत सकी थी, जिस पर सोनिया गांधी लोकसभा पहुंची थी. राहुल गांधी खुद अमेठी से हार बैठे थे. सपा और कांग्रेस 7 साल पहले यूपी विधानसभा चुनाव में भी साथ आए थे लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन काफी फीका रहा. इसके बाद दो सीटों पर हुए उप चुनावों में सपा ने कांग्रेस की जगह बसपा से गठबंधन किया.

सवाल अभी भी वही है कि आखिर अखिलेश यादव ने इतनी सीटों पर कांग्रेस को चुनाव लड़ने की सहमति क्यों दी जबकि सपा भी यह अच्छी तरह जानती है कि इनमें से आधी सीटें जीत पाना भी कांग्रेस के बस का नहीं है. वजह है प्रियंका गांधी. बीते कुछ सालों में प्रियंका यूपी की राजनीति में सक्रिय हो रही है. सक्रिय राजनीति में न रहने के बावजूद प्रियंका का कद और स्वीकार्य समर्थन कांग्रेस में सोनिया-राहुल के बाद सबसे उपर है. सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने के बाद प्रियंका का रायबरेली से चुनाव लड़ना तय है. ऐसे में प्रियंका का सक्रिय राजनीति में रसूख बढ़ना भी तय है. उस परिस्थितियों में सपा प्रमुख ने प्रियंका से सीधी टक्कर लेना मुनासिब नहीं समझा.

यह भी पढ़ें: क्रिकेट की सियासत में दो ‘राजकुमार’ आमने-सामने, विवादों के बाउंसर में दिख रहा ‘पराक्रम’

सीट गठबंधन पर सहमति में सोनिया गांधी का भी अहम योगदान रहा है. सोनिया गांधी का एक कॉल और अखिलेश यादव की रजामंदी स्पष्ट तौर पर जाहिर करते हैं कि सपा प्रमुख पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की बात को मना नहीं कर सके. लखनउ में हुई एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कांग्रेस के यूपी प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा कि हम मिलकर लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ेंगे. यहां पांडे ने प्रियंका का विशेष तौर पर जिक्र करते हुए कहा कि उनके प्रयासों से ही यह गठबंधन अंजाम तक पहुंचा है. अब ये भी देखना होगा कि प्रियंका के बढ़ते कद को लेकर अखिलेश यादव आशंकित रहते हैं या फिर कांग्रेस और सपा गठबंधन का ये नया सेतु कामयाबी की नयी इबादत लिखता है.

Leave a Reply