कहते हैं कि जो कभी नहीं हो सकता, वो राजनीति में हो सकता है. ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है सियासत में, जिसके दूर दूर तक होने के कोई आसार नहीं थे, वो यहां हो रहा है. एक बारगी दम तोड़ चुका विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ एक बार फिर से पैर जमाने लगा है. जहां मनभेद थे, वहां नेता आपस में हाथ मिला रहे हैं. एक तरफ दिल्ली में सीटों के बंटवारे को लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आमने सामने हो गयी थीं. आम आदमी पार्टी आम चुनाव में कांग्रेस को दिल्ली और पंजाब में कोई सीट बांटने पर राजी नहीं थी, वहीं अब पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की वादाखिलाफी के बाद कांग्रेस के लिए ‘संजीवनी’ साबित होते दिख रही है.
दरअसल तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी ने प्रदेश की सभी 42 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इससे पहले पार्टी कांग्रेस को दो सीटें गठबंधन के तहत देने को तैयार हुई थी, जो पहले से ही कांग्रेस के कब्जे में है. कांग्रेस के ठंडे रेंसपोंस के चलते अब दीदी ने तीखे तेवर दिखाते हुए बंगाल में बीजेपी के खिलाफ अकेले ही मुकाबला करने के लिए कमर कस ली है. इधर, बंगाल को हाथ से फिसलता देख कांग्रेस ने ऐसी कूटनीति चली कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश की सपा और दिल्ली में केजरीवाल एंड कंपनी की आप के साथ सारी गोटियां आसानी से सेट हो गयी.
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दिल्ली, गोवा, पंजाब, हरियाणा और गुजरात में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अब साथ मिलकर आम चुनाव लड़ने जा रही है. दिल्ली में जहां आप को ज्यादा सीटें मिली है, वहीं गुजरात में अधिकांश सीटों पर कांग्रेस अपने उम्मीदवार उतारेगी. गुजरात में 26 में से 24 सीटों पर कांग्रेस,तो भरूच एवं भावनगर सीटों पर आप अपने चुनावी सिंबल पर चुनावी मैदान में उतरेगी. भरूच अहमद पटेल की पारिवारिक सीट है लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस इसे आप को देने के लिए तैयार हो गयी. पंजाब, हरियाणा और गोवा को लेकर बात अभी चल रही है.
इधर, दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से चार आम आदमी पार्टी और तीन कांग्रेस के कब्जे में आयी है. दोनों एक दूसरे की सीटों पर अपना अपना समर्थन देंगे. नई दिल्ली, पश्चिम दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और पूर्वी दिल्ली पर आप अपने उम्मीदवार खड़े करेगी. चांदनी चौक, उत्तरी दिल्ली और उत्तर पश्चिम दिल्ली कांग्रेस के खाते में आयी है. यह भी गौर करने वाली बात है कि आम आदमी पार्टी जो पहले कांग्रेस को दिल्ली में केवल एक सीट देने जा रही थी, उसने दूसरे राज्यों में डील के चलते दिल्ली में उदारता दिखाई और तीन सीटें दे दी. इस डील के चलते आम आदमी पार्टी को दिल्ली के बाहर दूसरे राज्यों में भी विस्तार का मौका मिल जाएगा. इसका उदाहरण गुजरात में देखने को मिलता है.
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गुजरात में बीजेपी के बाद सबसे बड़ा जनाधार कांग्रेस का है. कमोबेश यही स्थिति हरियाणा में भी है. यहां आप को स्थानीय चुनाव में जरूर पार्टी को छुटपुट सफलता हाथ लगी है लेकिन असेंबली और लोकसभा में उनका कोई सदस्य नहीं है. गुजरात में भले ही आप के आधा दर्जन विधायक असेंबली में हों लेकिन यहां प्रमुख टक्कर बीजेपी और कांग्रेस में ही है. ऐसे में यदि कुछ सीटों पर कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी को उम्मीदवार खड़े करने का मौका मिलता है तो उसे अपने विस्तार की दिशा में बड़ी सफलता मिलेगी. गोवा में भी यही कूटनीति काम करने वाली है.
यानी कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली में कांग्रेस को दिखाई गयी उदारता अन्य राज्यों में पार्टी आप को जनाधार बढ़ाने का सुनहरा अवसर प्रदान कर रही है. एक संभावना यह भी है कि उत्तर प्रदेश में सपा और दिल्ली-पंजाब-हरियाणा-गुजरात में आम आदमी पार्टी के साथ आने के बाद पश्चिम बंगाल में ममता एंड कंपनी के द्वार कांग्रेस के लिए खुल जाएंगे.