क्या पीएम मोदी के हस्तक्षेप के बाद बच जाएगी उद्धव की कुर्सी या देना पड़ेगा सीएम पद से इस्तीफा?

राजभवन से जवाब न आने पर उद्धव ने मांगी प्रधानमंत्री से मदद, मुद्दे पर विचार का भरोसा दिलाया पीएम मोदी ने, उद्धव ठाकरे के पास पद पर बने रहने का एक ही रास्ता लेकिन उसकी गली गुजरती है राजभवन से होकर, चिंता में सरकार

Uddhav Thackeray And Modi
Uddhav Thackeray And Modi

पॉलिटॉक्स न्यूज. महाराष्ट्र में संवैधानिक संकट के चलते महाविकास अघाड़ी गठबंधन वाली सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के माथे पर चिंता की रेखाएं बढ़ती जा रही हैं. राजभवन से कोई फैसला न लिए जाने की स्थिति में सीएम उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी से मदद मांगना ठीक समझा. जिसके चलते मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की. सूत्रों ने बताया बातचीत के दौरान उद्धव ने कहा कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की जा रही है. उद्धव ठाकरे ने पीएम मोदी से कहा कि ऐसे समय में जबकि पूरे देश में और खासकर महाराष्ट्र में कोरोना का संकट गहराता जा रहा है राज्य में अस्थिरता फैलाना ठीक नहीं है.

गौरतलब है कि मंगलवार को महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) के नेताओं ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की और उद्धव ठाकरे को राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य के रूप में विधान परिषद में भेजने की मंत्रिमंडल की सिफारिश पर विचार करने का अनुरोध किया था. महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार के नेतृत्व में गए प्रतिनिधिमंडल में राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट, जल संसाधन मंत्री जयंत पाटिल, खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल, शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे, संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब और कपड़ा मंत्री असलम शेख शामिल थे.

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इससे एक दिन पहले यानि सोमवार को राज्य मंत्रिमंडल ने मुख्यमंत्री ठाकरे को विधान परिषद में मनोनीत किए जाने का प्रस्ताव रखते हुए नये सिरे से सिफारिश की थी. परिषद की दो खाली सीटों में से एक पर राज्यपाल के कोटे में उन्हें मनोनीत करने की सिफारिश की गई. दरअसल, 27 मई को ठाकरे को सीएम बने 6 महीने पूरे हो जाएंगे और वे अभी तक न तो विधानसभा और न ही विधान परिषद के सदस्य बन पाए हैं. संविधान के मुताबिक, सीएम पद पर बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने में विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना अनिवार्य है. लेकिन कोरोना संकट और लॉकडाउन के चलते विधान परिषद के चुनाव फिलहाल के लिए टाल दिए गए हैं. इस संबंध में उद्धव ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन करके सहायता मांगी. इस पर पीएम मोदी ने उन्हें मुद्दे पर विचार का भरोसा दिलाया है.

बता दें, वैसे तो उद्धव ठाकरे की इच्छा विधायक बनने की है लेकिन उसमें अभी समय लगेगा. वहीं सरकार और खुद उद्धव ठाकरे को भी पूरा विश्वास था कि 24 अप्रैल को विधान परिषद की खाली होने वाली 9 सीटों में एक पर निर्वाचित होकर वे आसानी से पद पर रह सकते हैं लेकिन चुनाव टल गए. ऐसे में उनके पास सीएम पद पर रहने का केवल एक ही रास्ता है और उसकी गली राजभवन से होकर जाती है. दरअसल, राज्यपाल को दो कला से जुड़ी शख्सियतों को विधान परिषद पर चयनित करने का अधिकार प्राप्त है. ऐसे में 9 अप्रैल और 28 अप्रैल को राज्य मंत्रिमंडल ने राज्यपाल को उद्धव को मनोनीत किए जाने के संबंध में स्मरण पत्र भेजा था लेकिन गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी की तरफ से अब तक इसका कोई जवाब नहीं आया.

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महाराष्ट्र कैबिनेट ने 28 अप्रैल को राज्यपाल को भेजे प्रस्ताव में कहा कि राज्य कोरोना संकट का सामना कर रहा है और ये बढ़ता जा रहा है. इन हालातों में प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता नहीं आनी चाहिए, इसलिए विधान परिषद की एक खाली सीट पर उद्धव ठाकरे को मनोनीत करने की सिफारिश की जाती है ताकि वे मुख्यमंत्री पद का निर्वाह कर सकें.

इधर राजभवन में विपक्ष की बढ़ती आवाजाही और गवर्नर के आदेश में देरी के चलते सत्ता पक्ष इस मुद्दे को हाईकोर्ट तक भी लेकर जा चुका है लेकिन अदालत ने इसका फैसला राज्यपाल पर छोड़ा है. ऐसे में सत्ताधारी पक्ष का बैकफुट पर आना स्वभावित है. ऐसे में कैबिनेट ने एक और रास्ता निकालते हुए उद्धव ठाकरे को कलाकार कोटे से विधानमंडल में पहुंचाने का सुझाव भी गवर्नर के समक्ष रखा है. हालांकि इस कोटे की दो सीटें जून में खाली हो रही हैं लेकिन राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में है कि वो चाहें तो विशेष परिस्थितियों में कार्यकाल घटाया या बढ़ाया जा सकता है.

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ऐसे में सरकार ने उद्धव ठाकरे को बतौर एक कार्टूनिस्ट, एक संपादक, एक लेखक और एक फोटोग्राफर मानते हुए कला कोटे से विधानमंडल में मनोनित करने का सुझाव राज्यपाल कोश्यारी को दिया है. हालांकि इस बारे में भी राजभवन से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. इसके बाद सत्ताधारी पक्ष और विपक्ष दोनों में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. कयासों के दौर भी खासे गर्म हैं. अगर राज्यपाल उद्धव ठाकरे को सदस्य मनोनीत नहीं करते हैं तो संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा और उद्धव को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना ही पड़ेगा.

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