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Loksabha Election: राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में अजमेर बेहद अहम मानी जाती है. जयपुर की एक और अजमेर जिले की 7 विधानसभा सीटों को मिलाकर बना यह लोकसभा क्षेत्र बीते कुछ सालों में बीजेपी का गढ़ बनता जा रहा है. 2018 के उप चुनाव को छोड़ दिया जाए तो 2014 से यहां बीजेपी के सांसद जीत रहे हैं. 2009 में दौसा संसदीय क्षेत्र के आरक्षित होने के बाद सचिन पायलट यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. उसके बाद अगले ही चुनाव में मोदी लहर के बीच सांवरलाल जाट के सामने सचिन पायलट को हार नसीब हुई थी. उस वक्त पायलट राजस्थान में कांग्रेस के मुखिया थे.

सांवरलाल जाट के आकस्मिक निधन के बाद हुए उप चुनाव में रघु शर्मा यहां से जीते. 2019 में भागीरथ चौधरी ने एक बार फिर अजमेर में ‘कमल’ खिला दिया. बीजेपी ने एक बार फिर भागीरथ चौधरी को यहां से उतारा है. कांग्रेस ने रामचंद्र चौधरी पर दांव खेला है.

अजमेर का सियासी इतिहास

अजमेर संसदीय क्षेत्र में पहला चुनाव 1952 में हुआ था. उस समय कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद शर्मा सांसद चुने गए थे. हालांकि उसी साल उपचुनाव हुआ और फिर पार्टी के ही मुकट बिहारी लाल भार्गव सांसद बन गए. 1957 में हुए अगले आम चुनाव में फिर मुकट बिहार लाल भार्गव जीते और 1962 के चुनाव में भी अपनी जीत कायम रखी. 1967 के चुनाव में कांग्रेस ने बीएन भार्गव को यहां से उतारा और वह जीते भी. बीएन भार्गव ने 1971 के चुनाव में भी अपनी जीत कायम रखी. 1977 के लोकसभा चुनाव में उलटफेर हुआ और श्रीकरण शारदा ने यह सीट जनता पार्टी के खाते में डाल दी. 1980 में कांग्रेस के भगवान देव आचार्य और 1984 में विष्णु कुमार मोदी सांसद चुने गए. 1989 के चुनाव में यह सीट बीजेपी की झोली में आई और रासा सिंह रावत लगातार 1989, 1991 एवं 96 का चुनाव जीतते रहे.

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1998 में कांग्रेस की प्रभा ठाकुर ने जीत हासिल कर बीजेपी का विजय रथ रोकने की कोशिश की, लेकिन 1999 और 2004 का चुनाव जीत कर बीजेपी के रासा सिंह रावत ने जोरदार वापसी की. 2004 में कांग्रेस के टिकट पर सचिन पायलट जीतकर संसद पहुंचे लेकिन 2014 में बीजेपी के सांवरलाल जाट और 2019 में पार्टी के भागीरथ चौधरी को यहां विजयश्री हासिल हुई.

अजमेर का चुनावी गणित

अजमेर का संसदीय क्षेत्र जयपुर की एक और अजमेर की सात विधानसभा सीटों से बना है. यहां किशनगंज को छोड़ दिया जाए तो अन्य सातों सीटों पर बीजेपी के विधायक बैठे हैं. इकलौती किशनगंज सीट पर कांग्रेस के विकास चौधरी को जीत नसीब हुई है. 2019 के लोकसभा चुनावों में यहां कुल मतदाताओं की संख्या 18,62,158 थी. यहां अनुसूचित जाति के वोटर्स की संख्या 363,121 है, जो करीब 19 फीसदी है. अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की संख्या 55,865, जो करीब 3 फीसदी है. मुस्लिम मतदाता लगभग 235,631 हैं. इस लोकसभा क्षेत्र के 66.3 फीसदी मतदाता ग्रामीण हैं, जो करीब 1,234,611 है. 627,547 यानी 33.7 फीसदी मतदाता शहरी हैं.

अजमेर का सियासी समीकरण

पिछले कुछ सालों में अजमेर काफी बदल चुका है लेकिन फिर भी यहां काफी स्थानीय समस्याएं हैं. ऐसे में बीजेपी से नाराजगी जाहिर है. इसके बावजूद अजमेर का मतदाता मोदी चेहरे को समर्थन करता दिख रहा है. चूंकि अजमेर को ‘भारत का मक्का’ कहा जाता है और यहां मुस्लिम बहुतायत में हैं, इसके बावजूद अजमेर की किसी विधानसभा में कांग्रेस का कोई विधायक जीत का चेहरा नहीं देख सका है. भागीरथ चौधरी भी पीएम मोदी के चेहरे, पिछले 10 सालों के विकास कार्य और अगले 25 सालों के विजन के सहारे चुनावी मैदान में है. 2019 में आम चुनाव हारे कांग्रेस के रिजु झुनझुनवाला सहित अन्य कई नेताओं के बीजेपी में शामिल होने के बाद भागीरथ चौधरी मजबूत हुए हैं. वहीं कांग्रेस के रामचंद्र चौधरी केवल और केवल सचिन पायलट और कांग्रेस के सहारे बीजेपी को टक्कर दे रहे हैं. मुकाबला एक तरफा माना जा रहा है लेकिन अगर कोई करिश्मा हो जाए तो टक्कर कड़ी हो सकती है.

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