केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले लोकसभा चुनाव से पहले देश में सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) या नागरिकता संशोधन अधिनियम के लागू होने की बात कही. इसके बाद सियासी तांडव फिर से शुरू होने की पूरी पूरी संभावना जताई जा रही है. पिछले बार जब देश में सीएए लागू करने को लेकर अधिनियम पास हुआ था, तब पूरे देश में विरोध हुआ था. हालांकि कुछ इलाकों में सीएए की मांग भी की जा रही थी. अब अचानक से सीएए लागू करने के लिए बीजेपी कड़ा रुख अपना सकती है. हालांकि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीएए लागू करने को लेकर सवाल उठने लगे हैं. राजनीति विशेषज्ञ का मानना है कि आम चुनावों से पहले सीएए लागू करने की असल वजह कहीं पश्चिम बंगाल या बाबरी जिंदाबाद तो नहीं है.
दरअसल, पश्चिम बंगाल में बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव से मेहनत कर रही है. पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिन्दु शरणार्थी काफी लंबे समय से नागरिकता की मांग कर रहे हैं. देश में इनकी आबादी तीन से चार करोड़ है जिसमें दो करोड़ बंगाल में है. इस समुदाय का राज्य की 10 लोकसभा और 77 विधानसभा सीटों पर बड़ा सियासी प्रभाव है. सीएए लागू होने पर इन्हें नागरिकता मिल जाएगी. बीजेपी ने 2019 में सीएए के वादे पर इन्हें लुभाकर 42 में से 18 सीटें जीती थी जबकि 2014 में बीजेपी के पास केवल तीन ही सीटें थी.
2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी दूसरे नंबर पर आ गयी थी. कुल मिलाकर पिछले आम चुनाव और विस चुनाव में सीएए के लोकलुभावन वादे के चलते बीजेपी का प्रदर्शन पश्चिम बंगाल में सुधारा है. ऐसे में बीजेपी देश में सीएए लागू कर 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में बीजेपी अपनी स्थिति मजबूत कर सकेगी.
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इधर, लोकसभा में राम मंदिर पर चर्चा के दौरान एआईएमआईएम के अध्यक्ष एवं हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सदन में बाबरी जिंदाबाद के नारे लगाकर सीधे सीधे भारतीय जनता और संघ को चुनौती देने का काम किया है. ओवैसी ने मोदी सरकार पर सिर्फ एक मजहब की सरकार होने का आरोप भी जड़ा. औवेसी ने दावा किया कि भारत के 17 करोड़ मुस्लिम अपने आपको अजनबी महसूस कर रहे हैं.
यह भी बता दें कि सीएए का सबसे अधिक विरोध मुस्लिम कर रहे हैं. दरअसल, सीएए में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर, 2014 से पहले आने वाले छह अल्पसंख्यकों हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. बाहर से आने वाले अल्पसंख्यकों में मुस्लिमों को नागरिकता से बाहर रखा गया है. यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय हमेशा से सीएए का विरोध कर रहा है. मुस्लिमों में यह धारणा भी घर कर गयी है कि सीएए आने के बाद उनकी नागरिकता खतरें में पड़ जाएगी. ऐसे में सीएए लागू कर बीजेपी हिंदू समुदाय को पूरी तरह से अपने रंग में रंगने में कामयाब हो जाएगी. इसका सीधा असर आम चुनावों में देखने को मिलेगा.
यह भी गौरतलब है कि बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा खड़ा किया गया ‘इंडिया गठबंधन’ अब मृतप्राय: हो चुका है. ऐसे में बीजेपी पहले से मजबूत हो चुकी है. अब पार्टी लक्ष्य 400 पर केंद्रीय कर रही है. सीएए लागू कर पश्चिम बंगाल सहित अन्य हिंदू राज्यों में बीजेपी अपना परचम लहरा पाने में कामयाब हो पाएगी. ऐसे में माना यही जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी सीएए को आम चुनाव से पहले ही लागू करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी.