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देश की राजधानी दिल्ली का चांदनी चौक. मतलब पुरानी दिल्ली यानी असली दिल्ली. इस संसदीय क्षेत्र का एक गजब का संयोग रहा है. जिस भी राजनीतिक पार्टी ने चांदनी चौक का किला फतेह किया, उसकी सरकार बनन निश्चित है. क्षेत्रफल के हिसाब से भले ही चांदनी चौक देश की सबसे छोटी लोकसभा है, लेकिन देश का मूड तय करने वाली मानी जाती है. इस सीट पर अब तक 16 चुनावों में ज्यादातर वक्त केंद्र की सत्ता उसी पार्टी के पास रही, जिस पार्टी के प्रत्याशी की यहां से जीत हुई. केवल दो बार ही ऐसा हुआ कि यहां से जीत दर्ज करने वाले प्रत्याशी की सत्ता केंद्र में नहीं रही.

इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के डॉ. हर्षवर्धन मौजूदा सांसद हैं. हालांकि इस बार उनका टिकट काट दिया गया है. बीजेपी की ओर से इस बार प्रवीण खंडेलवाल को उतारा गया है. कांग्रेस ने पिछले बार के हारे हुए प्रत्याशी जयप्रकाश अग्रवाल पर दांव खेला है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गठबंधन में दिल्ली लोकसभा चुनाव लड़ रही है.

चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र का इतिहास

चांदनी चौक 1956 में पहली बार लोकसभा सीट बनी. 1957 में चुनाव हुए और कांग्रेस के राधा रमन ने जीत दर्ज की. 1962 में हुए चुनावों में भी जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताया और कांग्रेस प्रत्याशी को भारी जनसमर्थन दिया. 1967 में पहली बार भारतीय जनसंघ की इस सीट से खाता खुला. 2009 में कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने जीत दर्ज की. 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार आम आदमी पार्टी की इस सीट से लोकसभा चुनाव में एंट्री हुई.

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हालांकि आप प्रत्याशी आशुतोष बीजेपी के डॉ. हर्षवर्धन से हार कर दूसरे और कांग्रेस प्रत्याशी कपिल सिब्बल तीसरे नंबर पर रहे. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यहां की जनता ने डॉ. हर्षवर्धन पर भरोसा जताया. एक तरफा मुकाबले में कांग्रेस के जयप्रकाश अग्रवाल दूसरे और आप के पंकज गुप्ता तीसरे स्थान पर रहे.

चांदनी चौका का जातिगत समीकरण

10 विधानसभा क्षेत्रों से बनी चांदनी चौक लोकसभा में सभी सीटों पर आम आदमी के विधायक काबिज हैं. इस संसदीय क्षेत्र में कुल 15,61,828 मतदाता हैं. इसमें पुरुषों की संख्या 8,48,303 और महिला वोटरों की संख्या करीब 7,13,393 है. इस सीट पर करीब 17 फीसदी वैश्य और 14 प्रतिशत वोटर मुस्लिम समुदाय के हैं. इनमें से अधिकांश मटिया महल और बल्लीमारान क्षेत्रों में हैं. इनके अलावा 14 प्रतिशत पंजाबी और करीब 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति वर्ग के हैं. इसके साथ 1.24 फीसदी जैन और 2.26 फीसदी सिख समुदाय के मतदाता चांदनी चौक में रहते हैं. 2019 के चुनाव में चांदनी चौक में 14 लाख 47 हजार 228 वोटर्स थे जिनमें से 9 लाख 80 हजार लोगों ने मतदान किया था.

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सालों पुरानी समस्याओं से जूझ रहा चांदनी चौक

चांदनी चौक में थोक और रिटेल बाजारों की काफी संख्या है. थोक बाजारों को शिफ्ट करने के लिए लंबे समय से योजना पर काम चल रहा है लेकिन अभी भी ये बाजार पूरी तरह से शिफ्ट नहीं हो सके हैं. कटरों में भीड़, रिटेल बाजारों में सीलिंग की समस्या गंभीर है जिससे वैश्य समुदाय के लोगों का कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. शालीमार बाग, आदर्श नगर, मॉडल टाउन आदि इलाको में ट्रैफिक और पार्किंग की बड़ी समस्या है. सदर बाजार और चांदनी चौक के बाजारों में अतिक्रमण भी एक बड़ा मुद्दा है. दशकों से ये समस्याएं जैसी के तैसी हैं. सरकारें आयीं और चली गयीं लेकिन चांदनी चौक कभी नहीं बदला. मेट्रो प्रोजेक्ट के बाद ये समस्याएं आम हो गयी हैं जिनका इनका निस्तारण होना भी मुश्किल है.

चांदनी चौक का सियासी गणित

चूंकि चांदनी चौक की समस्याओं से यहां के मतदाता आदी हो चुके हैं. ऐसे में चेहरे से इन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. झुकाव बीजेपी की ओर ज्यादा है लेकिन इस बार केजरीवाल एंड पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में वोटों का धुर्वीकरण मुश्किल है. दोनों मिलकर बीजेपी को चुनौती दे रहे हैं. प्रवीण खंडेलवाल नया चेहरा है और जयप्रकाश अग्रवाल थोड़ा जाना पहचाना नाम है. इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. हालांकि पिछली बार केजरीवाल सरकार होने के बावजूद दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था. अगर इस बार भी ऐसा कुछ होता है तो जयप्रकाश के लिए चांदनी चौक पर ‘विजय’ पाना मुश्किल होगा.

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