लोकसभा चुनाव के चुनावी दंगल में सियासी और जातीय समीकरणों को साधने के लिए यूपी के मंत्री-विधायक चुनावी मैदान में तो कूद पड़े हैं पर उनके लिए यह चुनाव उतना आसान नहीं है. इस बार का लोकसभा चुनाव यूपी सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों का इम्तिहान भी होगा क्योंकि यह चुनाव उनका भविष्य भी तय करेगा और कद भी. इस बात को समझते हुए अधिकांश बीजेपी प्रत्याशी केवल सरकार के विकास कार्यों और मोदी लहर में तरने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस व सपा-बसपा गठबंधन जातिगत रणनीतियों के मुहरे बैठाने में लगे हुए हैं.
सरकार के काम के सहारे रीता बहुगुणा जोशी
यूपी सरकार की पर्यटन और महिला कल्याण मंत्री प्रयागराज (इलाहाबाद) से चुनाव मैदान में हैं. उन्हें अपने पिता हेमवंती नंदन बहुगुणा की विरासत का फायदा मिल सकता है. इसी वजह से उन्हें भाजपा ने चुनावी मैदान में उतारा है. इलाहाबाद हेमवती नंदन बहुगुणा की कर्मभूमि भी रही है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर रही जोशी यहां से मेयर भी रही. वर्तमान में लखनऊ कैंट से विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. लेकिन इस सीट के आंकड़े जोशी के खिलाफ जा सकते हैं. इस सीट से अब तक केवल एक ही बार महिला उम्मीदवार सरोज दूबे ने 1991 में जीत का स्वाद चखा है. ऐसे में रीता सरकार के कामों के सहारे मैदान जीतने की कोशिश में है.
अंदरुनी गुटबाजी से निपटना बघेल की चुनौती
सुरक्षित सीट आगरा से पिछले चुनाव में रामशंकर कठेरिया भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर दिल्ली पहुंचे थे. इस बार कठेरिया को इटावा और पशुधन मंत्री एसपी सिंह बघेल को पार्टी ने आगरा से उतारा है. बघेल के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी की अंदरूनी गुटबाजी से निपटना है. दूसरी ओर, विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि टूरिज्म के डेवलपमेंट के ज्यादातर काम पिछली सरकार ने किए हैं. इन सारी मुश्किलों के बावजूद जातीय समीकरण और बघेल का व्यवहार लोगों को भा रहा है. वर्तमाल में बघेल फिरोजाबाद की टुंडला सीट से विधायक हैं.
त्रिकोणीय भंवर में फंसे मुकुट बिहारी वर्मा
अंबेडकर नगर सीट से सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा चुनाव मैदान में हैं. उन्हें चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने यहां से फूलन देवी के पति उम्मेद सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है. दुर्दांत डकैत रहीं फूलन देवी बाद में सांसद भी रहीं. उनकी हत्या के बाद अब उनके पति उम्मेद सिंह निषाद फूलन देवी की सियासी विरासत को बचाने में जुटे हैं. इसी सीट से पर रीतेश पांडेय बसपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में है. रीतेश अम्बेडकर नगर की जलालपुर सीट से विधायक भी हैं. बता दें, अंबेडकर नगर से बसपा सुप्रीमो मायावती का सियासी सफर शुरू हुआ था. यह सीट मायावती के संसदीय क्षेत्र के रूप में जानी जाती है. उन्होंने यहां से चार बार जीत हासिल की. अंबेडकर नगर की आबादी 24 लाख है जिसमें 75% आबादी सामान्य वर्ग और 25% आबादी अनुसूचित जाति की है. ऐसे में तीनों उम्मीदवार सामान्य वोट बैंक पर फोकस कर रहे हैं.
ब्राह्मणों के भरोसे सत्यदेव पचौरी
भाजपा सरकार में खादी एवं ग्रामोद्योग मंत्री सत्यदेव पचौरी कानपुर से बीजेपी उम्मीदवार हैं. उनके सामने कांग्रेस के पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायवाल मैदान में हैं. सत्यदेव पचौरी 2004 में भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं, तब श्रीप्रकाश जायसवाल ने उन्हें हराया था. कानपुर लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें हैं जिसमें गोविंदनगर, सीसामऊ, आर्यनगर, किदवई नगर और कानपुर कैंट शामिल है. कानपुर लोकसभा सीट पर कुल जनसंख्या 16 लाख से अधिक है. इसमें ब्राह्मण वोटरों की संख्या छह लाख से ज्यादा होने के चलते कानपुर लोकसभा सीट ब्राह्मण बहुल मानी जाती है. भाजपा और पचौरी इन्हीं ब्राह्मण वोटों के भरोसे ही चुनावी मैदान में हैं.
गुर्जर वोट के सहारे प्रदीप चौधरी
तीन बार के विधायक प्रदीप चौधरी कैराना सीट से बीजेपी प्रत्याशी हैं. कांग्रेस ने हरेंद्र सिंह मलिक को चुनावी मैदान में उतारा है. बीजेपी यहां जाट वोटरों को अपने पाले में करने के इरादे से उतरी थी, लेकिन उसके वोटों का बंटवारा हो गया. अब वह गुर्जर वोटों के सहारे वह इस सीट को जीतने का ख्वाब देख रहे हैं.
प्रियंका रावत खेमे से नाराजगी पड़ सकती है भारी
विधानसभा चुनाव में पीएल पूनिया के बेटे तनुज पूनिया को हराकर विधानसभा पहुंचे उपेंद्र एक बार फिर तनुज के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव में चेहरा तनुज का जरूर हैं लेकिन पर्दे के पीछे पीएल पूनिया यहां से चुनाव लड़ रहे हैं और अपनी ताकत झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. हालांकि उपेंद्र का दावा किसी भी तरह से कम नहीं है लेकिन प्रियंका रावत खेमे की नाराजगी से उन्हें पार पाना होगा.