बिहार के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ पशुपति पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव में ‘एकला चालो’ की नीति पर चलने का फैसला किया है. रालोजपा ने ऐलान किया है कि पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. पार्टी ने संगठन को लेकर अपनी तैयारियां भी तेज कर दी है. इसके लिए उन्होंने आगामी तैयारियां का पूरा रोड मैप भी जारी किया है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले रालोजपा एनडीए गठबंधन का हिस्सा थी और पशुपति स्वयं भी केबिनेट में मंत्री थे. हालांकि पिछले साल हुए आम चुनाव में रालोजपा का खाता शून्य रहने से संबंधों में दरार आ गयी और पार्टी गठबंधन से अलग हो गयी. अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद पार्टी ने महागठबंधन में शामिल होने की संभावनाओं पर भी तालाबंदी कर दी है.
आगामी चुनावों के लिए पार्टी का रोड मैप जारी करते हुए पार्टी सुप्रीमो ने बताया कि हमने बिहार के हर बूथ पर एक संगठन स्थापित करने की योजना बनाई है. इसके अनुसार, सभी निर्वाचन क्षेत्रों में बूथ लेवल ऑफिसर नियुक्त किए जाएंगे. बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए जमीनी स्तर पर एक मजबूत आधार बनाने का विचार है.पारस ने अप्रैल 2025 तक सभी विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने की भी घोषणा की.
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इसके साथ ही पार्टी की दलित शाखा दलित सेना 14 अप्रैल को पटना में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाएगी. दलित मुद्दों पर रालोजपा के फोकस को रेखांकित करते हुए पूरे बिहार से दलित सेना के कार्यकर्ता इकट्ठा होंगे. रालोजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रिंस राज ने सभी पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों को अपने आवास पर पार्टी का झंडा और नेमप्लेट लगाने का निर्देश दिया है. वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया गया कि विधानसभा चुनाव में रालोजपा के मजबूत उम्मीदवार उतारे जाएंगे.
इससे पहले जनवरी में मकर संक्रांति पर्व पर पटना में चूड़ा-दही भोज के दौरान पशुपति कुमार पारस ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव दोनों को आमंत्रित किया था. पारस के आवास पर आयोजित इस कार्यक्रम में लालू प्रसाद यादव अपने बेटे तेज प्रताप यादव के साथ शामिल हुए थे. इससे रालोजपा के महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई थीं. फिलहाल वर्तमान परिस्थितियों को भांपते हुए पारस ने खुद को सभी से अलग रखने का फैसला किया है. हालांकि भविष्य में पनपने वाली संभावनों एवं गठबंधन की संभावनाओं से स्वयं को अलग थलग भी नहीं किया है. ऐसे में माना जा रहा है कि वे किस दल के साथ जाएंगे, यह चुनाव में दलों की हार जीत पर निर्भर करने वाला है.