बजट में मिली इनकम पर टैक्स में छूट, लेकिन सवाल ये की इनकम कहां से होगी और जब इनकम ही नहीं होगी तो कैसी टैक्स में छूट

मोदी जी ने टैक्स की दरें तो घटा दीं, लेकिन यह तो बताया नहीं किस रोजगार से कमाकर भरेंगे टैक्स ? बचत मत कीजिए, खर्चा कीजिए लेकिन कैसे? दो घंटे चालीस मिनट के बजट भाषण में रोजगार कहां? विकास की बडी-बडी योजनाओं के लिए सरकार कहां से लाएगी पैसा, एयर इंडिया-बीएसएनएल के बाद अब बीमा क्षेत्र को बेचकर होगी आय की बात?

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. देश की डांवाडोल अर्थव्यवस्था के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार का खुशियां लाने वाला लोकलुभावन बजट पेश तो कर दिया लेकिन बजट के बाद कई सवाल खडे हो चुके हैं. बजट में आम आदमी को राहत दी गई, आमदनी पर टैक्स में कटौती भी की गई, लेकिन यह वैकल्पिक व्यवस्था है. यानि अब टेक्स देने के दो तरीके होंगे. एक नई योजना के तहत और एक पुरानी योजना के अनुसार. आज की गई घोषणा के तहत लोग चाहे तो बिना बचत नियमों को अपनाएं टेक्स दे सकते हैं. जो बचत करना चाहते हैं, वो पुराने टेक्स स्लेब से टेक्स दे सकते हैं. लेकिन ऐसे में मोदी सरकार का यह डबल टेक्स फार्मूला विशेषज्ञों की समझ में नहीं आ रहा है. आखिरकार लोग कौनसे विकल्प को अपनाकर लाभ उठा सकते हैं.

खैर छोडिए, इस उलझन भरे विषय को, आम बजट के बाद आम आदमी के मन का सबसे बड़ा सवाल जो वो मोदी सरकार से पूछना चाहता वो यह कि बजट में रोजगार कहां है और जब रोजगार ही नही होगा तो कमाई कहां से होगी और जब कमाई ही नहीं होगी तो कौनसी स्कीम में टैक्स भरा जाएगा.

इसे ऐसे समझिए, एक बरोजगार है, जो किसी प्रकार का टैक्स नहीं दे सकता है. उसके लिए मोदी सरकार ने बडी मेहनत के बाद अरबों रूपए के विकास वाला बजट पेश किया. लेकिन इस बजट में बेरोजगारों को रोजगार देने का तो कोई प्रावधान है ही नहीं, तो ऐसे में उस उस बेरोजगार को कोई रोजगार नहीं मिला. मतलब साफ है कि रोजगार नही तो किसी तरह की कोई कमाई भी नहीं. जब कमाई ही नही तो टैक्स भी नहीं. टैक्स नहीं तो सरकार की बडी-बडी आशावान योजनाओं पर प्रश्न चिन्ह लगना भी वाजिब है.

अब इसे दूसरे स्टेप से समझते हैं. बेराजगारी के चलते वो किसी दुकान से कुछ खरीद नहीं पा रहा. जब दुकान से कुछ नहीं खरीद पा रहा तो उसका सीधा असर दुकानदार की कमाई पर पड रहा है. यानि दुकानदार की कमाई नहीं, तो फिर दुकानदार कहां से टैक्स देगा. आर्थिक मंदी के चलते चूंकि दुकान से जितना माल बिकना चाहिए था, उतनी बिक्री ही नहीं हो पा रही है, यानि की दुकान में बिकने आया अधिकांश माल तो दुकान में ही पडा है.

अब इसे तीसरे स्टेप से समझिए. जब माल दुकान में पडा है तो माल की डिमांड नहीं बनेगी. जब डिमांड नहीं बनेगी तो उद्योग उसका निर्माण नहीं कर पाएंगे. जब निर्माण में कमी आएगी तो उद्योग और उससे जुडे कर्मचारी और मजदूर वर्ग का क्या होगा? ऐसे में जब सब चपेट में होंगे तो सरकार की अर्थव्यवस्था उससे कैसे बच सकती है.

यानि बात जहां से चली, वहीं आकर रूक गई. आर्थिक मंदी और बेरोजगारी को न स्वीकार करने वाली मोदी सरकार के लोक लुभावन बजट से एक बात तो साफ हो गई, कि सरकार को देश की मंदी और बेरोजगारी महसूस तो हो रही है, लेकिन उससे उभरने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा है. सरकार ने 5 ट्रिलियन डाॅलर की इकॉनमी के साथ 4 करोड रोजगार का सपना तो सजाया है. यह देश के लिए अच्छी बात भी है. लेकिन सवाल तो वही का वहीं बना हुआ है कि यह सब होगा कैसे? बजट में वित्तिय घाटे से उभरने के लिए भी कोई योजना नजर नहीं आई.
हां, घाटे से उभरने के लिए बीमा क्षेत्र को बेचने की बात जरूर कही गई है. ऐसी बातें तो एयर इंडिया और बीएसएनएल को बेचने के लिए भी हो चुकी हैं. लेकिन मंदी और बेरोजगारी से उभरने के लिए यह कोई ठोस रास्ता नहीं है.

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सरकार कह रही है इंकम के नए टैक्स स्लेब से लोगों को राहत और सोहलियत मिलेगी. लेकिन आम आदमी का सवाल है, जब इंकम ही नहीं तो फिर कैसी सहोलियत और कैसी राहत? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार बजट हर वर्ग के लिए खुशियों की सौगात देने वाला है. पहले की तरह 5 लाख तक की आय वालों को कोई टैक्स नहीं देना होगा.
5 से 7.5 लाख आमदनी वालों 10 प्रतिशत टैक्स. यह 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत किया गया है. 10 से 12.5 लाख आमदनी वालों पर 20 प्रतिशत टैक्स. 15 लाख के ऊपर आमदनी वालों को 30 प्रतिशत टैक्स देना होगा.

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में एक खास बात और कही है कि सरकार ने 10 प्रतिशत आर्थिक विकास दर हासिल करने का लक्ष्य रखा है. आर्थिक विषलेषणकर्ता कह रहे हैं कि यह कैसे संभव होगा? जबकि सरकार ने लोगों की जेब में पैसा डालने का कोई उपाय ही नहीं किया है तो फिर विकास दर के इस लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाएगा. वो भी तब जब राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. सरकार की टैक्स देने के दो तरीकों से लोगों की उलझने भी बढेंगी. अब लोग को तय करना होगा कि वो किस स्कीम का लाभ लें.