Congress Election Survey in Rajasthan. राजस्थान में विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ 10 माह का वक्त शेष है. ऐसे में इस महीने पेश होने वाले विधानसभा बजट के बाद से टिकट के लिए लॉबिंग शुरू होगी. चूंकि राजस्थान की राजनीति में सत्ता परिवर्तन का वर्षों से ट्रेंड चला आ रहा है, जिसे देखते हुए कांग्रेस में इस बार टिकट के पैटर्न में कुछ बदलाव देखने को मिलेगा. दरअसल, कांग्रेस इस बार सबसे बड़ा पार्टी सर्वे कराने का विचार कर रही है. इस सर्वे में जनता से मौजूदा विधायकों एवं एक्टिव नेताओं के बारे में फीडबैक लिया जाएगा, ताकि मौजूदा विधायक की खामियों, खूबियों और जीतने वाले उम्मीदवार पर तस्वीर साफ हो सके. इसी आधार पर विधायकों एवं मंत्रियों को टिकट दिया जाएगा. कमजोर जनाधार एवं दो बार के हारे हुए नेताओं का नाम रडार पर रहेगा.
कांग्रेस जल्द सभी 200 सीटों पर जनता के बीच एक बड़ा सर्वे करवाएगी. आमतौर पर हर चुनाव से पहले सर्वे होते हैं, लेकिन इस बार सर्वे में ज्यादा लोगों का फीडबैक लिया जाएगा ताकि मौजूदा विधायक की खामियों, खूबियों से रूबरू हुआ जा सके. इस संबंध में सरकार और कांग्रेस संगठन के स्तर पर भी कई बार फीडबैक लिया गया है. मार्च-अप्रैल से लेकर अगस्त, सितंबर तक सर्वे का दौर चलेगा.
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा की नई रणनीति के तहत यह सर्वे कराया जा रहा है. इस संबंध में रंधावा का कहना है कि सर्वे के आधार पर टिकट का फैसला होगा. पहले संगठन के खाली पद पर नियुक्तियों पर काम होगा, इसके बाद सर्वे पर काम होगा. दिसंबर के अंतिम सप्ताह में राजस्थान आए सुखजिंदर रंधवा ने पिछले सप्ताह कांग्रेस नेताओं से दो दिन तक अलग-अलग फीडबैक लिया था. इन बैठकों में कई नेताओं ने सुझाव दिया कि जिन मंत्रियों और विधायकों के फिर से जीतने की हालत नहीं है, उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया जाना चाहिए.
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प्रभारी रंधावा की वरिष्ठ नेताओं की बैठक में इस बात का जिक्र आया था कि राजस्थान हो या पंजाब कांग्रेस के ज्यादातर मंत्री चुनाव हारते हैं, इसलिए नए चेहरे को मौका देने का फॉर्मूला अपनाया जाना चाहिए. कांग्रेस की चुनावी रणनीति को लेकर एक्सपर्ट का भी यही कहना है कि फेस बदलकर चुनाव लड़ने से पार्टी को फायदा हो सकता है.
दो बार चुनाव हार चुके नेता रडार पर
पिछले विधानसभा चुनावों में दो बार या इससे ज्यादा
बार हारने वाले नेताओं के टिकट कटना तय माना जा रहा था लेकिन चुनाव आते आते इसमें ढील दे दी गई. मौजूदा मंत्री बीडी कल्ला को इस मापदंड को अलग रखकर टिकट दिया गया था. इस बार भी कुछ अपवादों को छोड़कर दो बार या इससे ज्यादा हारने वालों को टिकट मिलना मुश्किल है. वहीं कांग्रेस में इस बार कमजोर सीटों पर पहले उम्मीदवार घोषित करने की रणनीति है. कांग्रेस में टॉप लेवल पर इस बात का सुझाव आया है कि जो सीटें सबसे ज्यादा कमजोर हों वहां पहले उम्मीदवार घोषित किया जाएं, ताकि चुनाव प्रचार से लेकर ग्राउंड कनेक्ट तक आसानी रहे.
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कमजोर सीटों को छांटकर पहले से पिन पाॅइंट रणनीति बनाकर चुनाव लड़ने, टिकट की घोषणा पहले करने, बूथ मैनेजमेंट पर फोकस करने और स्थानीय लेवल के झगड़े मिटाने की सलाह दी गई है.
राजस्थान में मंत्रियों के चुनाव हारने का पुराना ट्रेंड
राजस्थान में मंत्रियों के चुनाव हारने का पुराना ट्रेंड रहा है. 2013 के चुनावों में सत्ताविरोधी लहर और मोदी फैक्टर के चलते कांग्रेस की करारी हार हुई थी. तब पार्टी के केवल 21 विधायक जीते थे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तत्कालीन आपदा राहत मंत्री बृजेंद्र ओला को छोड़ गहलोत के सभी मंत्री चुनाव हार गए थे. इसी तरह, साल 2018 के विधानसभा चुनाव में BJP के मंत्रियों को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा. बीजेपी सरकार के 22 मंत्री चुनाव हार गए. तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे और उनके 7 मंत्री ही फिर से चुनाव जीत पाने में सफल रहे थे. साल 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में भी मंत्रियों के हारने का यही ट्रेंड रहा है. मौजूदा विधायकों के चुनाव हारने का भी यही ट्रेंड है. हर विधानसभा चुनाव में 60 फीसदी से ज्यादा मंत्री विधायक भी चुनाव हार जाते हैं.
सरकार बचाने वाले निर्दलीय और बसपा से आए विधायक चुनौती
मौजूदा कांग्रेस सरकार में 13 निर्दलीय और 6 बसपा से कांग्रेस में आए विधायक भी शामिल हैं. बताया जाता है कि इनमें से ज्यादातर से टिकट देने का वादा किया हुआ है. इनमें से अधिकांश सीएम अशोक गहलोत समर्थित विधायक हैं. ऐसे में इन 19 में से ज्यादातर विधायकों के टिकट काटना आसान नहीं होगा. इन्हें टिकट देने पर कांग्रेस के भीतर चुनाव से पहले 19 सीटों पर बवाल होना तय है. इन्हीं 19 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार रहे नेताओं ने पिछले सप्ताह प्रदेश प्रभारी से मिलकर उनकी अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए जमकर नाराजगी जताई थी. अब चुनावों में टिकटों को लेकर इन 19 सीटों पर विवाद होना तय माना जा रहा है.
कांग्रेस की बहुत सी सीटों पर अब भी आपसी लड़ाई और भीतरघात का खतरा बरकरार है. जिन नेताओं की टिकट कटेगी वे बागी होकर चुनाव लड़ सकते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 11 बागी निर्दलीय लड़कर चुनाव जीते थे. टिकट काटने पर अब भी यह खतरा बरकरार है.