महाराष्ट्र की राजनीति की धुरी रहे बाला साहेब ठाकरे द्वारा शिवसेना (तब अविभाजित) की कमान उद्धव ठाकरे को सौंपे जाने से नाराज होकर राज ठाकरे ने 2005 में पार्टी छोड़ दी और अगले साल अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बना ली. दो दशक पुरानी राजनीतिक रार अब भरते हुए दिखाई दे रही है. राजनीतिक विश्लेषकों के साथ अब सभी की जुबां पर अब एक ही सवाल है कि क्या ठाकरे परिवार फिर से एक होने जा रहा है. हालांकि पहले भी इस तरह की संभावनाएं बनी हैं लेकिन बीते कुछ महीनों में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक जाजम पर तीसरी मुलाकात ने चाचा-भतीजे की जोड़ी को एक होने के कयासों को गति प्रदान की है.
दरअसल, हाल में शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और मनसे सुप्रीमो राज ठाकरे की मुंबई में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के बेटे की शादी में एक साथ देखा गया. इस कार्यक्रम में उद्धव के साथ उनकी पत्नी रश्मि ठाकरे भी मौजूद थी. सभी आपस में एक दूसरे से आत्मीयता से मिले और आपस में बातचीत भी की. विगत तीन माह में उद्धव-राज ठाकरे के बीच ये तीसरी मुलाकात है. ये मुलाकात अनायास हो सकती है लेकिन दोनों के बीच बातचीत को अनदेखा करना एक बड़ी भूल होगी. पारिवारिक टकराव के बाद कम ही देखा गया है कि दोनों के बीच बातचीत हो. इसके बाद से दोनों के बीच राजनीतिक मतभेद सुलझने की अटकलें तेज हो गई हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दोनों एक साथ आएंगे?
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यह मुलाकात भी ऐसे वक्त पर हुई है जबकि सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) दोनों खेमों में दरार की अफवाहें चल रही हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एमएनएस और शिवसेना (UBT) के बीच आगामी नगर निगम चुनावों, खासतौर पर आर्थिक रूप से समृद्ध महानगरपालिका (BMC) चुनावों को ध्यान में रखते हुए आपसी मतभेद खत्म करने की संभावना बन सकती है.
हालांकि अभी तक महाराष्ट्र के नगर निकाय चुनावों की तारीखों का एलान नहीं हुआ है. फिर भी पिछले दो महीनों में ठाकरे परिवार के दो प्रमुख के बीच यह तीसरी सार्वजनिक बैठक रही, जिससे दोनों दलों के बीच संबंधों में मधुरता की अटकलें और तेज हो गई हैं. गौरतलब है कि पिछले साल 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए हुए चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे दोनों का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. एक ओर विपक्षी एमवीए का हिस्सा शिवसेना (यूबीटी) ने 20 सीटें जीतीं, जबकि एमएनएस को एक भी सीट नहीं मिली. ऐसे में खोए हुए वर्चस्व को वापिस पाने के लिए ठाकरे परिवारों के बीच संबंधों में सुधार की आशंका जताई जा रही है.