maharashtra politics
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Maharashtra Politics: बीते कुछ दिनों में महाराष्ट्र की सियासत में कब किस वक्त क्या हो जाए, बता पाने राजनीतिक विशेषज्ञों के लिए भी टेड़ी खीर साबित हो रहा है. पिछले सप्ताह अजित पवार का महाराष्ट्र सीएम एकनाथ शिंदे एवं बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिलाकर सरकार में शामिल होना और उसके तुरंत बाद एनसीपी पर दावा ठोकना जैसे घटनाक्रम ने प्रदेश सहित देश की राजनीति को भी हिलाकर रख दिया है. हाल में मनसे (MNS) नेता अभिजीत पानसे की शिवसेना (यूबीटी) नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत से मुलाकात ने दोनों भाईयों के बीच सुलह की अटकलें तेज कर दी थी, लेकिन इसके तुरंत बाद राज ठाकरे की मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से सरकारी आवास पर मुलाकात ने सभी सियासी संभावनाओं का रुख बदलकर रख दिया है. वहीं दूसरी ओर, राज ठाकरे जैसे व्यक्तित्व का एकनाथ शिंदे से खुद मिलने जाना भी समझ से परे है.

इसमें कोई शक नहीं है कि मनसे नेता अभिजीत पानसे की संजय राउत से मुलाकात के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों चचेरे भाइयों में संधि की अटकले तेज हो गई थी. एक समय लग रहा था कि शिवसेना टूटने के बाद दोनों भाई नजदीक आ जाएंगे और एक साथ मिलकर हौसला टूटती पार्टी को मजबूती देंगे. शिवसेना और मनसे में विलय तो नहीं, लेकिन दोनों के मन मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. लेकिन इस बाद महाराष्ट्र की राजनीति ठहराव से कोसो दूर लग रही है. इधर, राज ठाकरे से शिंदे की मुलाकात राजनीति में कई सुलह संदेहों को पैदा कर रही है.

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राज ठाकरे शिवसेना के संस्थापक स्व.बाला साहेब ठाकरे के छोटे भाई के सुपुत्र हैं. एक समय पर राज ठाकरे हुबहु बाला साहेब ठाकरे की प्रतिछाया थे. माना जाता था कि राज ठाकरे की बाला साहेब की विरासत को आगे लेकर जाने वाले हैं. राज ठाकरे ने शिवसेना को शिखर तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. उद्धव ठाकरे इस राजनीति से कोसो दूर थे. उन्हें अपने पिता की विरासत में तनिक भर की भी दिलचस्पी नहीं थी. इसके इचर, बाला साहेब ने अपने अंतिम वक्त में अपनी विरासत राज ठाकरे की जगह अनुभवहीन उद्धव ठाकर को सौंप दी. उद्धव ठाकरे के साथ मतभेद और चुनाव में टिकट वितरण जैसे प्रमुख निर्णयों में दरकिनार किए जाने के कारण से राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी और अपनी अलग राह बनाई.

शिवसेना से अलग होकर राज ठाकरे ने 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया. इस समय विधानसभा में इस पार्टी के दो सदस्य हैं. राज ठाकरे के सुपुत्र अमित ठाकरे अब उनकी विरासत आगे बढ़ाते दिखाई देते हैं. अगर राज ठाकरे के व्यक्ति पर एक नजर डाले तो उनका पहनावा, चाल ढाल, बोलने का स्टाइल सब कुछ बाला साहेब की तरह है. आज भी उनकी एक हुंकार सत्ताधारी पक्ष के लोगों को हिलाने के लिए काफी है. फिर चाहें वो मज्जिदों से लाउड स्पीकर उतारने को लेकर उठाई गई आवाज हो या फिर समंदर किनारे बन रही अवैध मजार को हटाने की धमकी, उनकी एक आवाज इस सभी चीजों को एक दिन में अंजाम देने के लिए काफी है.

बाला साहेब ठाकरे का एक किस्से का यहां जिक्र करना जरूरी हो गया है जबकि बाला साहेब ने सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली जाने से मना कर दिया था. बाला साहेब की राजनीति केवल महाराष्ट्र तक सीमित थी लेकिन देश की बड़ी और जानी मानी राजनीतिक हस्तियां उनके पैर छूने उनके घर मातोश्री जाया करते थे. महाराष्ट्र में शिवसेना सत्ता में रही हो या विपक्ष में, दोनों पक्ष उनकी बात को मना नहीं कर सकते थे. राज ठाकरे ने यह सब देखने के साथ अपने जीवन में बाला साहेब के नियमों को आत्मसात किया है. आज भी राज ठाकरे किसी से मिलने स्वयं नहीं जाते हैं, बल्कि उन्हें राज ठाकरे के पास आना पड़ता है.

राज ठाकरे के सख्त मिजाज के चलते मीडिया में वे ज्यादा नहीं देखे जाते. मीडिया के दिग्गज पत्रकार राजदीप सरदेसाई भी राज ठाकरे का साक्षात्कार करने में सहज नहीं दिखते. ऐसे व्यक्तिव के धनी राज ठाकरे का खुद उद्धव ठाकरे से दगा कर बाला साहेब की विरासत को छीनने वाले एकनाथ शिंदे के पास पहुंचना समझ से परे होने वाली बात है. हालांकि एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे दोनों ही कट्टर हिंदूत्व समर्थक हैं लेकिन इस तरह की मुलाकात राज ठाकरे के व्यक्तितव से कोसो दूर है. इसके बावजूद ठाकरे और शिंदे के बीच इस मुलाकात के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. उद्धव के साथ सुलह संधि के बीच इस तरह के घटनाक्रम तो सियासत के कुछ अलग ही रूख की ओर इशारा कर रहे हैं.

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