149 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ की परिपाटी खत्म, सरकार ने बचाए 200 करोड़ तो कारोबारी खासे नाराज

'दरबार मूव' परंपरा खत्म, 370 हटाए जाने के बाद 149 साल पुरानी परिपाटी से किनारा, 6 महिने जम्मू तो 6 महिने कश्मीर में रहती थी सरकार, ठंड के चलते होता था फैसला, सरकार के फैसले से बचे 200 करोड़ तो इधर जम्मू के कारोबारियों को होगा भारी नुकसान, पीएम मोदी से लगाई गुहार, फैसले के विरोध में एक दिन का बुलाया बंद

टूटी 19वीं सदी की परंपरा
टूटी 19वीं सदी की परंपरा

Politalks.News/Jammukashmir. जम्मू-कश्मीर में चल रहे प्रशासनिक सुधारों की कड़ी में बुधवार को एक और अध्याय जुड़ गया. राज्य में 149 साल पुरानी दरबार मूव प्रथा आखिरकार खत्म हो गई है. हर छह महीने पर राज्य की दोनों राजधानियों जम्मू और श्रीनगर के बीच होने वाले ‘दरबार मूव’ के खत्म होने से हर साल 200 करोड़ रुपये की बचत होगी. तो ‘दरबार मूव’ परंपरा खत्म होने से जम्मू के कारोबारी बेहद नाराज हो गए हैं. कारोबारियों ने पीएम मोदी से फैसले पर पुनर्विचार की गुहार लगाई है साथ ही एक दिन का सांकेतिक बंद भी रखा है. जम्मू को अपना दूसरा घर बनाने वाले कश्मीरी कर्मचारी भी निराश हैं. इधर एक पक्ष ने जम्मू को ही स्थाई राजधानी बनाने की मांग कर दी है. दरबार मूव की परंपरा खत्म होने के बाद पहली बार नागरिक सचिवालय जम्मू और श्रीनगर में सुचारू तौर पर चल रहे हैं. हालांकि इससे उलट 2020 में उत्तराखंड ने अपनी दो राजधानी बनाई है. देहरादून और दूसरी गैरसेण.

क्या है ‘दरबार मूव’ प्रथा?
दरअसल मौसम बदलने के साथ हर छह महीने में जम्मू-कश्मीर की राजधानी भी बदल जाती है. छह महीने राजधानी श्रीनगर में रहती है और छह महीने जम्मू में. राजधानी बदलने पर जरूरी कार्यालय, सिविल सचिवालय वगैरह का पूरा इंतजाम जम्मू से श्रीनगर और श्रीनगर से जम्मू ले जाया जाता था. इस प्रक्रिया को ‘दरबार मूव’ के नाम से जाना जाता है. राजधानी बदलने की यह परंपरा 1862 में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने शुरू की थी. गुलाब सिंह महाराजा हरि सिंह के पूर्वज थे. हरि सिंह के समय ही जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बना था.

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क्यों पड़ी ‘दरबार मूव’ की जरूरत?
दरअसल सर्दी के मौसम में श्रीनगर में असहनीय ठंड पड़ती है तो गर्मी में जम्मू की गर्मी थोड़ी तकलीफदायक होती है. इसे देखते हुए गुलाब सिंह ने गर्मी के दिनों में श्रीनगर और ठंडी के दिनों में जम्मू को राजधानी बनाना शुरू कर दिया. राजधानी शिफ्ट करने की इस प्रक्रिया के जटिल और खर्चीला होने की वजह से इसका विरोध भी होता रहा है.

कैसे होता था ‘दरबार मूव’?
दरबार मूव एक बेहद जटिल काम था. इसमें सैकड़ों ट्रकों से ऑफिसों के फर्नीचर, फाइल, कंप्यूटर और अन्य रेकॉर्ड्स को शिफ्ट किया जाता था. बसों से सरकारी कर्मचारियों को शिफ्ट किया जाता था. मगर अब यह प्रथा खत्म होने से इन तमाम तरह के फिजूल खर्चों पर लगाम लगेगी.

कर्मचारियों को दिया जाता था भत्ता तक
आपको बता दें कि साल में दो बार होने वाले ‘दरबार मूव’ से 10 हजार कर्मचारियों को आवास बदलने की जरूरत होती थी. इसके लिए उन्हें 25 हजार का भत्ता दिया जाता था. दरबार मूव होने पर सचिवालय, राजभवन, पुलिस मुख्यालय, सरकारी विभाग, सार्वजनिक उपक्रम, निगम, बोर्ड और हाई कोर्ट के मुख्य विंग को गर्मी में श्रीनगर और सर्दी में जम्मू स्थानांतरित किया जाता था. यह परंपरा 19वीं शताब्दी से चली आ रही थी.

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जम्मू व्यापार मंडल ने पीएम मोदी से की पुनर्विचार की मांग
जम्मू के रघुनाथ बाजार बिजनेसमैन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरिंदर महाजन ने कहा है कि, ‘जब दरबार सर्दियों में जम्मू आता था, तो कश्मीर के हजारों कर्मचारी और उनके परिवार जम्मू आते थे. जम्मू के बाजारों में छह महीने तक चहल-पहल रहती थी. बिक्री बढ़ जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा’. महाजन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल से दरबार मूव बंद करने के फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है.

दरबार मूव खत्म करने के विरोध में एक दिन का बंद
दरबार मूव खत्म करने के खिलाफ चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने जम्मू में एक दिन के बंद का भी आह्वान किया था. नरवाल के किरयानी तालाब क्षेत्र के दूध विक्रेता आलमदीन पिछले साल यहां रहने वाले घाटी के एक दर्जन परिवारों को दूध देते थे. शास्त्री नगर निवासी माणिक गुप्ता घर का एक हिस्सा कश्मीर के एक कर्मचारी को छह महीने के लिए किराए पर देते थे, लेकिन इस बार यह नहीं हो पाएगा.

सरकार का दावा- बचेंगे 200 करोड़
इधर, प्रशासन का दावा है कि दरबार मूव बंद करने से सरकारी खजाने को सालाना 150-200 करोड़ रुपए से अधिक की बचत होगी. हर साल नवंबर के पहले सप्ताह में सिविल सचिवालय की ओर जाने वाली जम्मू की सड़कों की मरम्मत की जाती थी. खराब ट्रैफिक सिग्नल सुधारे जाते थे. सैकड़ों कार्यालय परिसरों को सजाया जाता था. अब यह नहीं होगा.

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जम्मू को स्थायी राजधानी बनाने की उठी मांग
कई बार जम्मू को राज्य की स्थायी राजधानी बनाने की मांग उठी क्योंकि वहां साल भर औसत तापमान रहता है. गर्मी के दिनों में कोई खास गर्मी नहीं पड़ती है, लेकिन राजनीतिक कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पाया. आशंका जताई गई कि जम्मू को स्थायी राजधानी बनाने से कश्मीर घाटी में गलत संदेश जाएगा.

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