तेज प्रताप जाएंगे राज्यसभा! पिता की आज्ञा का कर रहे इंतजार

बिहार में खाली हो रहीं राज्यसभा की पांच सीटें, दो सीटें आ रही हैं राजद के खाते में, कांग्रेस से हो सकता है मनमुटाव

Tej Pratap Yadav
Tej Pratap Yadav

पॉलिटॉक्स न्यूज. राज्यसभा चुनाव के लिए अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. बता करें बिहार की तो यहां 9 अप्रैल को राज्यसभा की पांच सीटें खाली हो रही हैं. विधानसभा में विधायकों की संख्या के हिसाब से तीन सीट एनडीए तो दो सीटें राजद के हिस्से में आना पक्का है. बिहार में राज्यसभा के उपसभापति व जदयू के हरिवंश नारायण सिंह, रामनाथ ठाकुर, कहकशां परवीन, बीजेपी के आरके सिन्हा और डॉ. सीपी ठाकुर का कार्यकाल समाप्त हो रहा है.  वैसे तो राजद दो में से एक सीट कांग्रेस को देने का वादा लोकसभा में बने गठबंधन के समय ही कर चुकी है. हालांकि अब उसमें मामला अटक सकता है लेकिन वो एक अलग बात है. अभी जो खास बात है वो ये कि राजद विधायक और लालू प्रसाद के सुपुत्र तेज प्रताप ने राज्यसभा जाने की इच्छा जताई है. फिलहाल लालू के संकेत का इंतजार किया जा रहा है.

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बता दें, पटना जेल में बंद राजद प्रमुख लालू प्रसाद ही पार्टी से जुड़े सभी फैसले करते आ रहे हैं. सभी तरह के चुनावी समीकरणों को साधने में अभी भी राजद के नेताओं की तुलना में उनका कोई जवाब नहीं. लालू जल्दी ही राज्यसभा जाने वाले उम्मीदवारों की लौटरी निकालने वाले हैं और 12 मार्च को नामांकन करने का मुहूर्त भी तय कर लिया है. वैसे तो पार्टी अध्यक्ष होने के नाते लालू की सहमति के बिना कुछ नहीं होगा लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ अलग है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष होने और मुख्यमंत्री चेहरा होने के नाते तेजस्वी यादव की पहली पसंद को भी झुटलाया नहीं जा सकता. इसी बीच तेजप्रताप ने राज्यसभा के लिए अपना दावा ठोक दोनों के साथ पार्टी की परेशानियां भी बढ़ा दी हैं.

तेज प्रताप ने उच्च सदन में जाने की मंशा इसलिए भी जताई है क्योंकि वे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते. पिछले विधानसभा चुनावों से चंद रोज पहले तेज प्रताप की परिवार के सभी सदस्यों से नाराजगी जग जाहिर रही. एक बार तो उन्होंने अलग पार्टी बनाने तक की घोषणा कर दी लेकिन बाद में राबड़ी देवी के समझाने पर वे माने लेकिन गुस्सा बना रहा. पिछले साल हुए आम चुनावों में भी उनकी नाराजगी दिखी जब उन्होंने चुनाव प्रचार में भाग नहीं लिया. पार्टी को मिली करारी हार के बाद अब जाकर तेजस्वी के साथ उनकी दूरियां नजदीकियों में बदलती दिख रही है. उन्होंने खुद आगे बढ़कर तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने की मांग रखी और अन्य नेताओं को भी इसके लिए राजी किया. पार्टी में उनका अस्तित्व तेजस्वी के मुकाबले कम है, शायद यही एक वजह है कि वे राज्यसभा जाने पर दवाब डाल रहे हैं.

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वहीं उनकी पत्नी ऐश्वर्या के साथ उनके टूटते संबंधों का दवाब भी उनपर है. ऐसे में वे अलग माहौल को देखते हुए भी उच्च सदन जाने की सोच रहे होंगे. अंदरूनी सूत्रों से पता चला है कि फिलहाल उनकी सुनवाई लालू दरबार में नहीं हो पाई है. फिर भी उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष राबड़ी देवी और अपने भाई तेजस्वी को अपनी इच्छा से अवगत करा दिया है. तेजस्वी इन दिनों दिल्ली में हैं और जल्द लालू से मिलकर इस बात पर चर्चा करेंगे. बताया ये भी जा रहा है कि तेजप्रताप का दावा खारिज हो सकता है लेकिन अगर ऐसा होता है तो सीट पर परिवार के बाहरी का कब्जा होगा और ये लालू परिवार के लिए भविष्य को देखते हुए ठीक लक्षण नहीं. हालांकि चुनावी साल को देखते हुए जरूर ये निर्णय लिया जा सकता है.

अब बात करें राज्यसभा के संभावित राजद के दावेदारों की तो यहां सबसे उपर प्रेमचंद गुप्ता का नाम आ रहा है. उनका लालू से दशकों का साथ है और पिछली बार उन्हें झारखंड से उच्च सदन भेजा गया था. अब उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है और जहां तक माना जा रहा है, झारखंड में खाली हो रही सीट से झामुमो उम्मीदवार को उनकी जगह भेजा जाएगा. सामाजिक समीकरण और तेजस्वी की मॉर्डन पॉलिटिक्स को देखते हुए सवर्ण कोटे पर भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है. अगर ऐसा कुछ होता है तो रघुवंश प्रसाद सिंह के नाम की लॉटरी निकली सकती है.

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वैसे तो लाइन में और भी कई हैं लेकिन उनकी दावेदारी उक्त दोनों से मजबूत नहीं है. अगर कांग्रेस से दगा कर राजद दोनों सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार बनाती है तब तेज प्रताप का दाव बैठ सकता है. तेज प्रताप गर राज्यसभा जाते हैं तो परिवार के व्यक्ति के सदन में जाने से परिवार का कोटा भी बचा रह जाएगा लेकिन इस स्थिति में कांग्रेस से मतभेद पक्का है. चुनावी साल देखते हुए राजद इस तरह का जोखिम लेगी, इसके आसार बेहद कम नजर आ रहे हैं.

राज्यसभा में प्रत्येक सीट पर जीत के लिए 41-41 विधायकों की जरूरत है. 243 सदस्यों वाली विधानसभा में राजद के पास 81 विधायक हैं. ऐसे में दो उम्मीदवारों को उच्च सदन भेजने के लिए एक सदस्य की कमी पड़ेगी, जिसे वि.स. में तीन सदस्यों वाली भाकपा माले के जरिए पूरा किया जाएगा.

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