Politalks.News/Delhi/SuprmeCourt. देश में इन दिनों मुफ्त के रेवड़ी कल्चर को लेकर एक बहस सी छिड़ी हुई है. उत्तरप्रदेश में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्धघाटन करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले मुफ्त की रेवड़ी कल्चर का जिक्र करते हुए आम आदमी पार्टी पर जमकर निशाना साधा था और कहा था कि, ‘आजकल हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है जो देश के विकास के लिए बहुत घातक है.’ वहीं इसे लेकर आम आदमी पार्टी ने भी पलटवार किया था और कहा था कि, ‘अपने देश के बच्चों को मुफ्त और अच्छी शिक्षा देना और लोगों का अच्छा और मुफ्त में इलाज करवाना, इसे फ्री की रेवड़ी बांटना नहीं कहते.’ सियासी दलों में जारी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने रेवड़ी कल्चर पर चिंता जाहिर करते हुए इसे गलत ठहराया है. यहीं नहीं सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर केंद्र सरकार को निर्देश भी दिया हैं.
दरअसल, इन दिनों विधानसभा चुनाव हों या फिर लोकसभा या कोई अन्य चुनाव, इन सभी चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा जनता से चुनावी वादों के रूप में बहुत कुछ फ्री देने की एक होड़ सी मच गई है. अगर एक दल ने अपने चुनावी वादे में 100 यूनिट बिजली फ्री देने का एलान किया तो वहीं अन्य दल इससे अधिक बोलते हुए मुफ्तखोरी को तव्वज्जो देने का काम करने में लगे हैं. लेकिन चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं का वादा यानी ‘रेवड़ी कल्चर‘ को सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद ही गंभीर मुद्दा बताया है. यहीं नहीं CJI एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच ने इसपर नियंत्रण करने के लिए केंद्र सरकार से उचित कदम उठाने को भी कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि, ‘इस समस्या का हल निकालने के लिए वित्त आयोग की सलाह का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.’
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मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान किसी अन्य केस में कोर्ट में मौजूद दिग्गज वकील कपिल सिब्बल से भी मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में राय मांगी. चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया एनवी रमना ने कहा कि, ‘मिस्टर सिब्बल यहां मौजूद हैं और आप एक वरिष्ठ संसद सदस्य भी हैं. आपका इस मामले में क्या विचार है?’ तो कपिल सिब्बल ने कहा कि, ‘यह बहुत ही गंभीर मामला है लेकिन राजनीति से इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है. जब वित्त आयोग राज्यों को फंड आवंटित करता है तो उसे राज्य पर कर्ज और मुफ्त योजनाओं पर विचार करना चाहिए. वित्त आयोग ही इस समस्या से निपट सकता है और हम आयोग को इस मामले से निपटने के लिए कह सकते हैं.’
सुप्रीम कोर्ट के सवाल पूछे जाने पर कपिल सिब्बल ने कहा कि, ‘केंद्र से इस मामले में उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इस मामले में कोई निर्देश देगा.’ याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग की तरफ से पेश हुए वकील अमित शर्मा ने कहा कि, ‘पहले के फैसले में कहा गया था कि केंद्र सरकार इस मामले से निपटने के लिए कानून बनाए. वहीं केएम नटराज ने कहा कि, ‘यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है.’ लेकिन सीजेआई रमना नटराज के इस बयान से नाखुश दिखे और उन्होंने कहा कि, ‘आप सीधा -सीधा यह क्यों नहीं कहते कि सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है और जो कुछ करना है चुनाव आयोग करे.’
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CJI एनवी रमना ने कहा कि, ‘मैं पूछता हूं कि केंद्र सरकार मुद्दे को गंभीर मानती है या नहीं? आप पहले कदम उठाइए उसके बाद हम फैसला करेंगे कि इस तरह के वादे आगे होंगे या नहीं. आखिर केंद्र कदम उठाने से परहेज क्यों कर रहा है.’ वहीं इस मामले में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि, ‘यह एक गंभीर मुद्दा है और पोल पैनल को राज्यों और राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों को मुफ्त के वादे करने से रोकना चाहिए.’ उपाध्याय ने कहा कि, ‘राज्यों पर लाखों करोड़ का कर्ज है. हम श्रीलंका के रास्ते पर जा रहे हैं.’ पहले भी कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से इस याचिका पर प्रतिक्रिया मांगी थी.’
उपाध्याय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि मतदाताओं को रिझाने और अपन मनसूबे कामयाब करने के लिए राजनीतिक दल मुफ्तखोरी का इस्तेमाल करते हैं. इससे फ्री और फेयर इलेक्शन की जड़ें हिल जाती हैं. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है.