Politalks.News/Rajasthan. सियासत का घमासान तो कांग्रेस में मचा लेकिन चेहरा भाजपा का सामने आया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सियासी विजय में अशोक गहलोत और सचिन पायलट से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम चर्चा में है. सियासी गलियारों में तो यहां तक चर्चा में है कि भाजपा संगठन ने वसुंधरा राजे को भरोसे में लेकर कदम उठाए होते तो मध्यप्रदेश की तरह राजस्थान में भी आज कांग्रेस की नहीं भाजपा की सरकार होती.
बात घूम फिर कर राजस्थान भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) पर जाकर समाप्त हो जाती है. माना तो यह भी जा रहा है कि वसुंधरा राजे के समय जो स्थिति घनश्याम तिवाड़ी की बनी थी, वही स्थिति सचिन पायलट की होने वाली थी. सत्ता से विदाई हो चुकी है, संगठन से भी विदाई तय थी. लेकिन गांधी परिवार के बीच बचाव के बाद नाराजगी भूलकर पायलट कांग्रेस में बने हुए हैं.
लेकिन अभी बात है वसुंधरा राजे की, प्रदेश भाजपा में कुछ नेता उन्हें नजर अंदाज कर अपने आपको स्थापित करने में लगे हैं, लेकिन एक भी ऐसा नेता नहीं है, जिसकी राजनीतिक हैसियत या यूं कह लिजिए पब्लिक इमेज वसुंधरा राजे जैसी हो.
कांग्रेस में हुए घमासान से भाजपा के इन नेताओं को अपने कद का अहसास हो जाना चाहिए. मंगलवार को केंद्रीय नेता वी सतीश ने वसुंधरा राजे को बैठक में बुलाया, बैठक भाजपा कार्यालय में हुई. कई मुददों पर बातचीत हुई. इस बैठक के कई सियासी मायने हैं. माना जा रहा है कि राजस्थान में आॅपरेशन लोटस अभी पूरी तरह नाकामायब नहीं हुआ है. अभी इसमें काफी गुंजाइश है लेकिन वो बिना वसुंधरा राजे के पूरा नहीं हो सकता है. इस बात को राज्य और केंद्रीय भाजपा नेता दोनों अच्छी तरह से समझ चुके हैं. एक तस्वीर तो भाजपा की वसुंधरा को लेकर यह बन रही है.
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दूसरी एक और तस्वीर बन रही है, इसमें वसुंधरा राजे सरकार के समय मंत्री रहे भाजपा के पूर्व नेता घनश्याम तिवाड़ी की भाजपा में वापसी की अटकलों पर चर्चा गरम है. घनश्याम तिवाडी की वापसी का आधार विचार परिवार बताया जा रहा है. हालांकि घनश्याम तिवाडी इन दिनों कांग्रेस में हैं और कांग्रेस में जिस स्थिति में हैं, एक वरिष्ठ नेता के तौर पर उनका वहां होना ना होना एक जैसा ही है. इससे पहले वसुंधरा के खिलाफ खंभ ठोक कर भारत वाहिनी बनाकर चुनाव लडने वाले तिवाडी खुद अपनी सांगानेर सीट से ही हार गए.
भारत वाहिनी केे दम पर राजस्थान की राजनीतिक का के्रद बनने के सपने देख रहे तिवाडी को वसुंधरा राजे ने उनके विधानसभा क्षेत्र सांगानेर में ही ऐसा घेर दिया कि उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड गया. अब एक बार फिर तिवाडी की भाजपा में वापसी की अटकलें चल रही हैं.
वसुंधरा विरोधी खेमा एक प्रयास और कर रहा है, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे जसवंतसिंह के पुत्र मानवेंद्रसिंह जो कि वसुंधरा से नाराज होकर कांग्रेस में चले गए थे और विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के सामने ही चुनाव लड़कर हार चुके हैं, उन्हें भी भाजपा में लाने की चर्चाएं जोरों पर हैं बताया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत पूर्व भाजपा नेता मानवेंद्रसिंह को भाजपा में लाना चाहते हैं.
इससे पहले भी वसुंधरा राजे के दो धुर विरोधियों को भाजपा से जोडा गया. वसुंधरा राजे की ईच्छा के विपरीत हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोपा से गठबंधन बनाकर चुनाव लडा गया. वहीं किरोडी लाल मीणा को भी भाजपा में वापस लाया गया. लेकिन हुआ क्या ? जब राजस्थान में वसुंधरा विरोधी खेमे ने अपने दमखम को साबित करने के लिए आॅपरेशन लोटस को आगे बढाया गया तो टायर ही पंचर हो गए. गाडी ऐसी अटकी कि सारी ताकत लगाने के बाद भी एक इंच आगे नहीं सरक सकी. गहलोत-पायलट के घमासान के दौरान रोज-रोज मीडिया में आकर बयान देने वाला वसुंधरा विरोधी खेमे की नींद उस समय उड गई जब पूरे मामले में खामोशी थामने वाली पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दिल्ली जाकर जेपी नड्डा और राजनाथ सिंह से मिलीं.
पूरे घटनाक्रम की खास बात यह रही कि विधानसभा में बहुमत परीक्षण के दौरान भाजपा के ही चार विधायक नहीं थे. उस समय भाजपा नेताओं के होश तो उडे हुए थे लेकिन बात संभालने के लिए कहा गया कि चारों विधायक जाने का कारण बता कर गए हैं. इसके बाद इन नेताओं के बयान की सच्चाई भी उस समय सामने आ गई, जब इन विधायकों को नोटिस देकर विधानसभा से जाने का कारण स्पष्ट करने के लिए बुलाया गया. स्पष्टीकरण देने के लिए चारों विधायक प्रतिपक्ष नेता गुलाबचंद कटारिया के यहां पहुंचे, इस दौरान उपनेता राजेंद्र राठौड भी थे.
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इस बैठक की खास बात यह थी कि दोनों नेताओं ने वसुंधरा राजे को इससे दूर ही रखा. राजनीतिक हलकों में पूछा जा रहा है कि ऐसा क्यूं किया गया? इसमें एक मजेदार बात यह भी है कि विधानसभा से अनुपस्थिति हुए इन चारों विधायकों के खिलाफ प्रदेश भाजपा की ओर से किसी तरह की कोई यानि की बडी तो छोडिए सामान्य कार्रवाई भी नहीं की गई बल्कि पूरी रिपोर्ट बनाकर केंद्रीय नेताओं को भेज दी गई है.
राजनीति है चलती रहेगी, समीकरण बनते और बिगडते रहेंगे, लेकिन अगर केेंद्र और राज्य भाजपा के कुछ नेता सिर्फ वसुंधरा राजे की राजनीति को हाशिए पर लाने के लिए यह सारे जतन करने का प्रयास कर रहे हैं, तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वसुंधरा राजे को दरकिनार कर प्रदेश में उनकी राजनीति को खत्म करना या फिर मुख्यमंत्री बनना, फिलहाल ख्याली पुलाव से ज्यादा कुछ नहीं है. हालिया घटनाक्रम से यह भी साबित हो गया है कि राजस्थान की राजनीति में प्रदेश अध्यक्ष और दो मुख्यमंत्री रहने वाली वसुंधरा राजे की राजनीतिक ताकत को नजर अंदाज करके वसुंधरा विरोधी खेमा केवल भाजपा के लिए और खुद के लिए संकट खडे करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है.