पाॅलिटाॅक्स न्यूज/एमपी. साल 2020 मध्य प्रदेश की सियासत का बहुत रोचक साल रहने वाला है. बहुमत के साथ सत्ता में काबिज हुई कमलनाथ की सरकार बीजेपी के सियासी खेल के चलते 2020 की शुरूआती महीनों में ही धाराशाही हो गई. 15 साल बाद मध्य प्रदेश की सत्ता में लौटी कांग्रेस का गढ़ खुद कांग्रेसियों ने ही ढहा दिया. ग्वालियर खानदान के युवराज बीजेपी के साथ क्या गए कमलनाथ की सरकार ही चली गई. भाजपा के लिए तो सोने पर सुहागा वाली बात हो गई. सत्ता से दूर हुए शिवराज के सिर फिर से मुख्यमंत्री का ताज सज गया. भले ही यह जनादेश जनता का नहीं था लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी कांग्रेस और कमलनाथ दोनों को महंगी पड़ गई.
ज्योतिरादित्य सहित 22 विधायकों का विद्रोह कांग्रेस के लिए काला अध्याय बन गया. बीजेपी को बैठे बैठाए दिग्गज कांग्रेस नेता और कार्यकर्ताओं की फौज तो मिली ही, मुख्यमंत्री और सरकार पर भी भाजपा की सील लग गई. एमपी में सियासी ड्रामेबाजी के बीच कोरोना की भी एंट्री हो गई. सोशल डिस्टेंसिंग के साथ शिवराज सिंह ने चंद लोगों के बीच मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. शायद भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था, इसलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद भी शिवराज सिंह के माथे पर चिंता की लकीरे साफ नजर आई जो अभी भी साफ नहीं हुई है.
जल्दी प्रदेश की 24 सीटों पर उपचुनाव के सर्वे रिपोर्ट शिवराज सिंह की नींद उड़ाने के लिए काफी है. इन सर्वे रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि जनता का मूड भाजपा के साथ नहीं है. जनता इस बात को महसूस कर रही है कि कमलनाथ और कांग्रेस के साथ अच्छा नहीं हुआ. इन सर्वे रिपोर्ट में ग्वालियर-चंबल इलाके की 16 सीटों पर दबदबा रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव भी कम होता बताया जा रहा है. यानि की पहले कांग्रेस के लिए जनता से वोट मांगे. फिर कांग्रेस से किनारा कर भाजपा की सरकार बनाई गई. जनता इसे अपने साथ किए गए छल के रूप में देख और महसूस कर रही है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित 22 विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला रोचक होना बताया जा रहा है. हालांकि चुनाव अगस्त या उसके बाद होने हैं लेकिन मध्य प्रदेश में सियासी पारा चढ़ हुआ है. कमलनाथ पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं और वो कहने से नहीं चूके कि जनता के साथ छल और कांग्रेस के साथ हुए विश्वासघात का जवाब उपचुनावों में जनता खुद देगी. इन सभी 22 सीटों के अलावा दो और सीटों पर चुनाव होने हैं. इसी के चलते भाजपा और कांग्रेस दोनों अपने राजनीतिक समीकरणों पर काम कर रही हैं.
उपचुनाव में कोरोना का प्रभाव पड़ना स्वभाविक
चुनाव पर कोरोना का प्रभाव भी पड़ने वाला है. कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल शिवराज सरकार को कोरोना की लड़ाई में पूरी तरह नाकाम बता रहे हैं. कांग्रेस का आरोप है कि शिवराजसिंह की सरकार ने जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया है. संकट के इस समय में केंद्र और राज्य की सरकार ने लोगों को वो मदद नहीं पहुंचाई, जिसकी जनता का जरूरत है. उपचुनाव वाले क्षेत्रों में इस बात का जोर शोर से प्रचार किया जा रहा है.
पार्टी बदली तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बदल गए
कांग्रेस में रहकर जितनी आजादी से ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति कर रहे थे, अब भाजपा में आकर उन्हें कई नियमों और अनुशासन का पालन करना पड़ रहा है. कांग्रेस कार्यालयों सहित सड़कों पर ‘एमपी का मुख्यमंत्री कैसा हो, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा हो’ के नारों से पटे होर्डिंग बैनर अब नजर नहीं आते. ना ही कोई सिंधिया समर्थक उनको मुख्यमंत्री बनाने की मांग करता नजर आ रहा है. यह बदलाव साफ दिखाता है कि ज्योतिरादित्य कांग्रेस में जितने मुखर होकर राजनीति कर रहे थे, उतने मुखर वो अब नहीं रहे. राजनीतिक विशेषज्ञों का आंकलन है कि ज्योतिरादित्य भाजपा पर लगातार दबाव बनाने की राजनीति नहीं कर सकते.
बसपा लड़ी तो कांग्रेस को नुकसान
यूं तो बहुजन समाज पार्टी का मध्य प्रदेश में बहुत बड़ा प्रभाव नहीं है लेकिन ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों के एससी एसटी वर्ग में बीएसपी की अच्छी पकड़ है. 2018 के चुनाव में बसपा ने इन क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस के प्रत्याशियों को हुआ था. बाद में कमलनाथ सरकार को भी बीएसपी ने समर्थन दिया. लेकिन अब परिस्थितियां करवट ले चुकी है. बसपा ने सभी 24 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. बसपा इन विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों के चयन में जुट गई है. भले ही बसपा के प्रत्याशियों को चुनाव में सीधी जीत न मिले लेकिन कांग्रेस को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. यानि की बसपा का 24 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय भाजपा का फायदा पहुंचाने वाला होगा.
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कमलनाथ ने संभाला उपचुनाव का मोर्चा
मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनावों की तैयारियां शुरु हो चुकी है जिसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कमर कस ली है. 24 सीटों पर होने वाले उपचुनावों के लिए उन्होंने एक कोर टीम का गठन किया है. ये टीम उप चुनाव को किस तरह से लड़ा जाए, इसके लिए रणनीति बनाएगी. कमलनाथ की कोर टीम शिवराज सरकार की नाकामियों को जनता के बीच लेकर जाएगी. कांग्रेस ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण और बढ़ते अपराध को भी मुद्दा बनाने का फैसला किया है.