पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की कड़ी में 300 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया संपन्न हो गयी है. शनिवार को मध्यप्रदेश की 270 और छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण की 70 सीटों पर मतदान हुआ. मप्र में रिकॉर्ड मतदान के चलते 76.22 फीसदी वोटिंग हुई है. पिछली बार यहां 75.20 फीसदी मतदान हुआ था. इसी तरह छत्तीसगढ़ की बाकी 70 सीटों पर 75 फीसदी से अधिक मतदान हुआ है. प्रदेश के दोनों चरणों को मिलाकर 70.12% वोटिंग हुई है. छत्तीसगढ़ में मुकाबला कांग्रेस पर झुकता दिख रहा है लेकिन मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह का राज खतरे में दिखाई दे रहा है. हालांकि प्रदेश में लगातार चौथी बार मतदान पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक हुआ है लेकिन जब भी यहां मतदान कांग्रेस के टूट विधायकों की सीटों पर वोटिंग प्रतिशत बढ़ना शिवराज सिंह की मुसीबतें बढ़ाता हुआ दिख रहा है. केंद्र सरकार में दो मंत्रियों की सीटों पर भी वोटिंग बढ़ना खतरे का संकेत हो सकता है.
मध्यप्रदेश में 76 फीसदी से अधिक मतदान
सीएम शिवराज सिंह चौहान के बुधनी विधानसभा क्षेत्र में 81.59 प्रतिशत मतदान हुआ है. इसी तरह से कमलनाथ के गढ़ छींदवाड़ा विधानसभा सीट पर 81.5 प्रतिशत वोटिंग हुई है. मप्र में सबसे अधिक मतदान सैलाना विस सीट पर हुआ है. यहां 90 फीसदी वोटिंग प्रतिशत रहा. मलहारगढ़ में 87.08 और जावड़ में 86.19 प्रतिशत मतदान हुआ है. उज्जैन दक्षिण (69.9%), इंदौर 5 (65%) और इंदौर 2 में (64.37%) मतदान दर्ज हुआ है. जौबत विस सीट पर सबसे कम 54.04 प्रतिशत मतदान हुआ है. भोपाल में वोटिंग प्रतिशत 58.2 फीसदी रहा.
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की दिमनी विस सीट पर 66 फीसदी, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल की नरसिंहपुर सीट पर 82.15 फीसदी और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की निवास सीट पर 82.11 फीसदी मतदान हुआ है.
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मध्यप्रदेश के पिछले आंकड़ों को देखें तो 1993 में 60.5 और 1998 में 60.2 प्रतिशत मतदान हुआ. दोनों बार कांग्रेस ने क्रमश: 174 और 172 सीटें जीतीं. 2003 में 67.3 प्रतिशत मतदान हुआ तो बीजेपी की सरकार बनी. बीजेपी को 173 और कांग्रेस को केवल 38 सीटें मिली. 2008 में वोटिंग 69.8 प्रतिशत रही और बीजेपी 143 सीटों के साथ फिर से सत्ता में आयी. हालांकि सीटों की संख्या में गिरावट दर्ज की गयी. 2013 में वोटिंग प्रतिशत बढ़कर 70.8 हो गया और 165 सीटों के साथ बीजेपी एक बार फिर से सरकार रिपीट करने में कामयाब हो गयी. 2018 में वोटिंग एक साथ 5 प्रतिशत बढ़ा तो बीजेपी बहुमत से पीछे रह गयी. इस बार भी मप्र का वोट प्रतिशत फिर से डेढ़—दो प्रतिशत ऊपर जा रहा है. ऐसे में बीजेपी के साथ कांग्रेस की भी धड़कने बढ़ गयी है.
करीब तीन साल पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए 22 विधायकों की सीटों में से 14 पर इस बार वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है. इन सभी ने कांग्रेस की सरकार बनने के 15 महीने बाद सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी टिकट पर फिर से चुनाव लड़ा. इस बार जनता इन सभी से नाराज बतायी जा रही है. बढ़ा हुआ वोटिंग प्रतिशत इसका संकेत हो सकता है. हालांकि पहली बार मतदान करने वालों की बढ़ी हुई संख्या इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती है.
छत्तीसगढ़ में सुरक्षित रह सकती है कांग्रेस
छत्तीसगढ़ में एक बार मतदान प्रतिशत बढ़ने और दूसरी बार घटने का ट्रेंड है. हालांकि वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के बाद सरकार बदलने का भी चलन है. इस बार वोटिंग प्रतिशत यहां घटा है. 2013 और 2018 में वोटिंग परसेंट 75.3 रहा लेकिन इस बार 70.12 प्रतिशत मतदान हुआ है. इसके चलते भूपेश बघेल सरकार का रिपीट होना संभावित माना जा रहा है. पिछले वोटिंग ट्रेंड पर नजर डालें तो 2003 में 71.3 प्रतिशत मतदान हुआ था, तब बीजेपी को 50 और कांग्रेस को 37 सीटें मिली थी. 2008 में वोटिंग प्रतिशत 70.6 रहा लेकिन बीजेपी और कांग्रेस की स्थिति यथावत बनी रही. कांग्रेस को एक सीट का फायदा जरूर मिला था.