लोकसभा चुनाव में राजस्थान की हॉट सीट में शुमार जयपुर ग्रामीण सीट से देश के दो दिग्गज खिलाड़ी राजनीति के मैदान में आमने-सामने हैं. बीजेपी ने यहां वर्तमान सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को फिर से मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस ने चूरू के सादुलपुर से विधायक कृष्णा पूनिया पर भरोसा जताया है. जयपुर ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र में कोटपूतली, बानसूर, विराटनगर, शाहपुरा, जमवारामगढ़, झोटवाड़ा, आमेर और फुलेरा विधानसभा क्षेत्र हैं.
यहां जातीय समीकरण चुनाव के नतीजों पर भारी रहते हैं. ऐसे में राठौड़ के लिए यहां फिर से कमल खिलाना आसान नहीं लग रहा है. जातीय गणित पर गौर करें तो जयपुर ग्रामीण सीट आमतौर पर जाट बाहुल्य मानी जाती है. यहां की जनसंख्या करीब 12 लाख के करीब है. यहां साढ़े 4 लाख जाट, 1 लाख 60 हजार गुर्जर, 1 लाख 50 हजार यादव, एक लाख मुस्लिम वोटर हैं. वहीं तीन लाख से अधिक एसटी-एससी मतदाता मौजूद हैं. जाट बाहुल्य सीट होने से यहां जाटों का प्रतिनिधित्व भी ज्यादा महत्व रखता है.
साल 2009 में परिसीमन के बाद बनी जयपुर ग्रामीण सीट से कांग्रेस प्रत्याशी लालचंद कटारिया से बीजेपी के राव राजेन्द्र सिंह का मुकाबला हुआ था जिसमे कटारिया ने लगभग 51 हजार मतों से जीत हासिल की थी और केंद्र में मंत्री बनाए गए थे. 2014 में हुए लोकसभा के चुनांव में मोदी लहर के चलते लालचंद कटारिया चुनावी मैदान में नहीं उतरे. उनकी जगह कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. सीपी जोशी को उतारा, जिन्हें भाजपा के प्रत्याशी राज्यवर्द्धन सिह राठौड़ से करीब सवा तीन लाख वोटों से करारी हार मिली. इस जीत ने राजनीति में नए नवेले राठौड़ को सीधे दिल्ली का टिकट दे दिया और केंद्र मंत्री की सीट भी संभला दी.
जातिगत समीकरणों का सीधा-सीधाअसर विधानसभा सीटों पर भी देखा जा सकता है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम पर एक नजर डाले तो वर्तमान में शाहपुरा से निर्दलीय आलोक बेनीवाल, आमेर से सतीश पूनिया और झोटवाड़ा से लालचन्द कटारिया सहित तीन जाट विधायक हैं. कांग्रेस से दो गुर्जर विधायक इंद्र राज गुर्जर, शकुंतला रावत और एक यादव विधायक है. अगर बात करें 2013 के विधानसभा चुनावों की तो कांग्रेस के टिकट पर कोटपूतली से राजेन्द्र यादव और बानसूर से शकुंतला रावत विजयी होकर विधानसभा पहुंचे जबकि शाहपुरा से राव राजेन्द्र, विराटनगर से फूलचंद भिंडा, जमवारामगढ़ से जगदीश नारायण मीणा, फुलेरा से निर्मल कुमावत, झोटवाड़ा से राजपाल सिंह बीजेपी खेमे से जीते. आमेर से किरोड़ी लाल मीणा की पार्टी से नवीन पिलानिया विजयी रहे थे.
अब बात करें वर्तमान लोकसभा चुनावों की तो पहली बार चुनाव लड़कर केंद्र सरकार में पहुंचे राज्यवर्धन सिंह के लगातार बढ़ रहे कद और पॉपुलर्टी को देखते हुए कांग्रेस ने जातिगत रणनीति के साथ मैडल खेल खेलना ही उचित समझा. इसलिए सोची समझी रणनीति के तहत जाट नेता और ओलंपिक मैडल विजेता कृष्णा पूनिया को इस सीट से उतारा. इसके बाद मुकाबला जितना लग रहा था, राठौड़ के लिए उससे कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है. विधानसभा चुनावों में विराटनगर सीट पर दूसरे व तीसरे नम्बर रहे कुलदीप धनकड़ और फूलचंद भिंडा जाट समाज से आते हैं. ऐसे में पूनिया का पलड़ा और भारी होते नजर आ रहा है.
स्थानीय राजनीतिक जानकारों का तो यहां तक मानना है कि गुर्जर नेता होने के कारण अगर खुद सचिन पायलट इस सीट पर आकर कृष्ण पूनिया का समर्थन करते हैं तो गुर्जर वोट बैंक भी पूनिया को मिल जाएगा और जीत निश्चित होती नजर आएगी. ग्रामीण क्षेत्र की इस सीट पर पेयजल की समस्या को देखते हुए वैसे भी इस क्षेत्र की जनता राठौड़ से थोड़ी नाराज है जिसका फायदा भी पूनिया को मिल सकता है. इन सबसे अलावा, कृष्णा पूनिया को एक महिला और स्थानीय होने का फायदा मिलेगा, इसमें तो कोई संशय नहीं होना चाहिए. क्षेत्र में सांसद कोष की पूरी राशि का इस्तेमाल न किए जाने की खबरों से भी राठौड़ को थोड़ी परेशानी हुई है. यही वजह है कि राज्यवर्धन ने अपने चुनावी प्रचार की शुरूआत कोटपुतली और विराटनगर से की है ताकि जनता का रूख जान सकें.
इन सब बातों को देखते हुए अब बीजेपी के पास दलित वोट बैंक हथियाने के अलावा कोई रास्ता शेष नहीं बचा है लेकिन यह आसान काम नहीं है. खैर, जो भी हो परिणाम अगले महीने में सामने आ ही जाएगा. उससे पहले तो चुनावी प्रचार और शक्ति प्रदर्शन के जरिए ही परिणाम सोचना जाना ठीक है. लेकिन फिर भी पिछले लोकसभा चुनावों में आशा के विपरित राठौड़ के सामने सीपी जोशी का जो हश्र हुआ था, उसे देखते हुए पूनिया के आने के बाद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में एक जोश का संचय तो हुआ ही है.