पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान (Rajasthan) की मंडावा व खींवसर विधानसभा सीट पर उपचुनाव संपन्न हो चुके हैं. चुनावी परिणाम 24 अक्टूबर को आएंगे. सोमवार को हुए मतदान के दौरान मंडावा में 69.62 प्रतिशत और खींवसर में 62.61 प्रतिशत वोटिंग हुई. मंडावा में कांग्रेस की रीटा चौधरी (Rita Choudhary) और भाजपा की सुशीला सीगड़ा (Sushila Sirga) में कांटे की टक्कर है. खींवसर में हनुमान बेनीवाल के गढ़ में कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा (Harendra Mirdha) RLP के नारायण बेनीवाल (Narayan Beniwal) को चुनौती दे रहे हैं. हनुमान बेनीवाल के नागौर से और नरेंद्र खींचड़ के झुंझूनूं से सांसद बनने की वजह से क्रमश: खींवसर और मंडावा विधानसभा सीटें खाली हुई हैं. चारों प्रत्याशी अपनी अपनी जीत का दावा ठोक रहे हैं.
मंडावा विधानसभा सीट
मंडावा (Mandawa) में आजादी के बाद से अब तक हुए चुनावों में भाजपा सिर्फ एक बार 2018 में ही विधानसभा चुनाव जीती है. कांग्रेस की ओर से इस सीट पर विकास सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है, लेकिन भाजपा द्वारा सत्ता का दुरूपयोग एवं कर्मचारियों के तबादलों जैसे मुददे पर सरकार को चुनाव प्रचार के दौरान घेरा गया. मंडावा में कुल 2 लाख 27 हजार 414 मतदाता है जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 17 हजार 742 है तो वहीं महिला मतदात 1 लाख 9 हजार 672 है. मंडावा इस उपचुनाव के लिए 259 मतदान केंद्रो पर मतदान किया गया.
मंडावा से भाजपा प्रत्याशी सुशीला सिंगडा तीन बार से प्रधान है, क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड है वहीं पार्टी नेताओं व स्थानीय कार्यकर्ताओं में उनके लिए आक्रामक प्रचार किया है. वहीं सुशीला सिंगडा के सामने भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा भितरघात का खतरा भी है. पार्टी कार्यकर्ताओं में सिंगडा की इमेज पैराशूटर की भी है क्योंकि सिंगडा पहले कांग्रेस में थी और टिकट मिलने से महज डेड घंटे पहले ही वो भाजपा में शामिल हुई थी.
वहीं मंडावा से कांग्रेस प्रत्याशी रीटा चौधरी को प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने का फायदा मिल सकता है. साथ ही टिकट मिलते ही रीटा ने घर घर जाकर मतदाताओं से संपर्क बनाने में भी कामयाब रहीं है. रीटा ने पिछले तीन विधानसभा चुनाव मंडावा से लडे है इनमें 2008 का चुनाव रीटा ने जीता था तो वो वहीं 2013 के चुनाव में निर्दलीय के रूप में तो 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर रीटा को हार का सामना करना पडा था. मंडावा विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की सहानुभूति भी इस चुनाव में रीटा के साथ दिखाई दी तो वहीं भितरघात का संकट रीटा के साथ भी है. विधायक बृजेंद्र ओला व राजकुमार से उनकी अदावत किसी से छिपी नहीं है.
खींवसर विधानसभा सीट
खींवसर (Khivnsar) चुनाव में इस बार बेनीवाल व मिर्धा परिवार एक बार फिर से आमने सामने है. इससे पहले मूंडवा विधानसभा क्षेत्र से 1980 में बेनीवाल के पिता रामदेव को हरेंद्र मिर्धा ने हराया था. लेकिन 1985 में हुए अगले ही चुनाव में बेनीवाल के पिता रामदेव ने हरेंद्र मिर्धा को हराकर अपनी हार का बदला पूरा कर लिया था. 2008 में हुए परीसीमन में मूंडवा व नागौर से ही खींवसर सीट बनी थी. जिस पर 2008, 2013 व 2018 के चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने जीत दर्ज की.
भाजपा समर्थित रालोपा के टिकट पर खींवसर से चुनाव लड रहे नारायण बेनीवाल प्रत्याशी के रूप में पहली बार चुनावी मैदान में थे. लेकिन चुनाव मैनेजमेंट का उनके पास अच्छा खासा अनुभव है. अपने बडे भाई व नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल के सभी चुनावों में मैनेजमेंट का सारा काम नारायण ने ही संभाला है इसलिए क्षेत्र के लोगों में उनकी अच्छी खासी पकड है. वहीं उनकी इमेज अपने बडे भाई के उलट एक साधारण व्यक्तित्व की है. वहीं परिवारवाद के ठप्पे का नुकसान नारायण को यहां झेलना पड सकता है तो भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं की नाराजगी का नुकसान भी यहां नारायण को भारी पड सकता है.
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र मिर्धा को प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने का फायदा मिल सकता है तो उम्र का तगाजा होने के कारण व उनका आखिरी चुनाव होने के कारण उन्हे क्षेत्र के लोगों की सहानुभूति भी मिलती दिखाई दी तो चुनाव प्रचार के दौरान ज्यादा भागदौड नहीं करने का नुकसान भी यहां हरेंद्र मिर्धा को उठाना पड सकता है.
किसके पक्ष में परिणाम
बहरहाल मंडावा व खींवसर दोनों ही विधानसभा सीटों पर सभी उम्मीदवारों की किस्मत इवीएम में कैद हो गयी है. आने वाली 24 तारीख को ही पता चलेगा की मंडावा में कांग्रेस की परंपरागत उम्मीदवार रीटा चौधरी को या कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई सुशीला सिंगडा में से किसको मंडावा की जनता ताज पहनाती है तो वहीं खींवसर में 34 साल पुरानी बेनीवाल के पिता रामदेव से मिली हार का बदला लेने में हरेंद्र मिर्धा कामयाब हों पायेंगे की नहीं जानना दिलचस्प होगा.