पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर गहलोत सरकार द्वारा एक के बाद एक बड़े फैसलों ने जहां एक तरफ सबको चौंका दिया है वहीं खुद सरकार भी इसके बाद से थोड़ी डरी हुई है. सूत्रों की मानें तो गहलोत सरकार ने अपने इस अचूक रामबाण हाईब्रीड फॉर्मूले (Hybrid Formula) के बचाव के लिये हाईकोर्ट में रूल 159 के तहत कैवियट दायर की है, अब सरकार के इस फैसले के खिलाफ अगर कोई याचिका दायर होती है तो हाईकोर्ट पहले सरकार का पक्ष सुनेगा. वहीं राजनीतिक हलकों में कानाफूसी इस बात को लेकर है कि गहलोत सरकार की इस हाईब्रीड फॉर्मूले के पिछे आखिर असल मंशा क्या है और सचिन पायलट को इस फॉर्मूले से आखिर क्या नुकसान है? साथ ही जिज्ञासा इस बात की भी है कि इस मास्टरस्ट्रोक हाईब्रीड फॉर्मूले के पीछे का असल मास्टरमाइंड कौन है?
जानकारों की मानें तो लम्बे दौर की गुप्त मंत्रणाओं के बाद इस कूटनीतिक चाल को अंजाम दिया गया है. विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में निकाय प्रमुख का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली से कराने का वादा किया था, जिसे सरकार बनने के बाद लागू करते हुए विधानसभा से पारित भी करवा लिया गया था. लेकिन केन्द्र में मोदी सरकार के दुबारा काबिज होने के बाद धारा 370, तीन तलाक जैसे बड़े बिल लोकसभा में बहुमत से पारित हुए तो पूरे देश में एक तरफा माहौल बन गया. जिसने प्रदेश में होने वाले निकाय चुनाव पर गहलोत सरकार को फिर से विमर्श करने को मजबूर कर दिया. जिसके बाद सरकार ने कैबिनेट की बैठक में यू-टर्न लेते हुए इसे बदल दिया. लेकिन इससे भी सरकार को निकाय चुनावों में अपनी किरकिरी होने का भय था और साथ ही अन्य चुनौतियां भी हैं जिनसे सरकार को निपटना है.
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वर्तमान समय में प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समक्ष कई चुनौतियां एक साथ हैं: –
1. सबसे पहले मोदीमय माहौल के बीच होने वाले निकाय चुनावों में ज्यादा से ज्यादा कांग्रेस के बोर्ड बना कर आलाकमान की नजरों में अपने नम्बर बढ़वाना.
2. पार्टी की आंतरिक गुटबाजी के चलते पायलट गुट को कमजोर करना जिसके लिए अपने समर्थकों की संख्या को बढाना.
3. बहुप्रतीक्षित राजनीतिक नियुक्तियों के बाद पद से वंचित अन्य कार्यकर्ताओं की सम्भावित नाराजगी से पार पाना.
4. विपक्ष में बैठी बीजेपी के सरकार के खिलाफ किसान कर्जमाफी और बिगड़ी कानून व्यवस्था के मुद्दों पर पानी फेरना.
इन सब चुनौतियों से एक साथ निपटने का फॉर्मूला तैयार करने के लिए राजनीति के जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत ने अपने विश्वसनीय यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल और मुख्य सचेतक महेश जोशी को जिम्मेदारी सौंपी, जिन्होंने अपनी एक टीम तैयार की और काफी लंबे मंथन और गुप्त मंत्रणाओं के बाद होने वाले निकाय चुनाव के लिए यह हाईब्रीड फॉर्मूला तैयार किया गया. गुरुवार को इसकी घोषणा करते हुए नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने अधिसूचना जारी कर दी. मुख्यमंत्री गहलोत और उनकी टीम इस फॉर्मूले को रामबाण औषधि के रूप में मानकर चल रही है. जिसके तहत: –
1. प्रदेश में इस हाईब्रीड फॉर्मूले (Hybrid Formula) के लागू होने के बाद अब सम्बंधित निकाय क्षेत्र में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को या पार्षद का चुनाव हारे हुए प्रत्याशी को भी मेयर-सभापति बनने की छुट होगी. ऐसे में अगर किसी बोर्ड में कांग्रेस बहुमत के करीब पहुंच जाती है या फिर कांग्रेस का बहुमत नहीं भी आता है तो भी धन तंत्र या प्रशासनिक लाठी के दम पर (RCA चुनाव की तर्ज पर) सरकार अपनी पसंद के व्यक्ति को निकाय प्रमुख की कुर्सी पर काबिज कर देगी. अगर कमोबेश पूरे प्रदेश में ऐसा करने में गहलोत सरकार कामयाब हो जाती है तो बीजेपी के राष्ट्रीय मुद्दों की हवा निकल जाएगी और ऐसे में आलाकमान के सामने सीएम गहलोत अपने नंबर जरूर बढ़ा लेंगे.
2. जाहिर है जब कोई भी व्यक्ति निकाय प्रमुख बन सकेगा तो वो मुख्यमंत्री गहलोत की पसंद का ही होगा और इस फॉर्मूले की आड़ में सरकार ज्यादा से ज्यादा निकायों अपने चहेतों को प्रमुख बना सकेगी. ऐसे में पार्टी में गहलोत समर्थकों की संख्या बढ़ेगी और पायलट गुट कमजोर होगा. गौरतलब है कि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने सरकार के इस हाईब्रीड फॉर्मूले का खुलकर विरोध किया है. शुक्रवार को पायलट ने कहा था कि कैबिनेट में इसकी चर्चा नहीं हुई, इसे हाईब्रीड नाम दिया जा रहा है वह गलत है, इससे बैकडोर एंट्री बढ़ेगी. वहीं पायलट खेमे के मंत्री रमेश मीणा और प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी हाईब्रीड मॉडल को लेकर सार्वजनिक रूप से सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर चुके हैं.
3. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस हाईब्रीड फॉर्मूले के जरिये अपने उन चहेते नेताओं को निकाय प्रमुख का तोहफा देने की कोशिश में हैं, जो विधानसभा या लोकसभा चुनाव में शिकस्त खा गए या किसी कारण से उन्हें टिकट ही नहीं मिल पाया. इस एक फॉर्मूले से सीएम गहलोत उनकी नारजगी भी दूर कर देंगे और प्रदेश में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों में पद की आस लगाए बैठे नेताओं की सम्भावित नाराजगी से भी बच जाऐंगे, क्योंकि उनमें से अधिकांश नेताओं को निकाय प्रमुखों के पद पर खपा दिया जाएगा. इस तरह से सीएम गहलोत पार्टी कार्यकर्ताओं के अंदर अपनी लोकप्रिय नेता की छवि को पुनः स्थापित करने में भी कामयाब हो जाएंगे.
4. उधर प्रदेश भाजपा के लिए भी इस हाईब्रीड फॉर्मूले (Hybrid Formula) से पार पाना नामुमकिन ही रहेगा. क्योंकि जब सरकारी तंत्र के दम पर निकाय प्रमुख बनाए जांएगे तो बीजेपी कुछ एक जगहों को छोड़ कर ज्यादा नगर निकायों में अपना प्रमुख नहीं बना पाएगी. ऐसे में गहलोत सरकार के खिलाफ बीजेपी के दो सबसे बड़े मुद्दे किसान कर्जमाफी और प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था का भी कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा और बीजेपी के मंसूबों ओर पानी फिर जाएगा.
गुरुवार को हुई इस हाईब्रीड फॉर्मूले (Hybrid Formula) की घोषणा के दूसरे दिन ही शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल ने शुक्रवार को फिर एक नया ऐलान करते हुए कहा कि जयपुर, कोटा और जोधपुर में 2-2 मेयर और 2-2 नगर निगम होंगे. इस तरह पूर्व में प्रस्तावित निकाय चुनाव के प्रथम चरण में अब इन तीनों शहरों की 6 नगर निगमों में चुनाव नहीं होंगे, लेकिन आगामी 6 महीनों में राज्य सरकार को यहां चुनाव करवाने होंगे.
ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश सरकार का जयपुर, जोधपुर और कोटा में दो-दो महापौर बनाने का मॉडल उन बड़े नेताओं को सेट करने के लिए बनाया गया जो चुनावी वैतरणी पार नहीं कर पाए थे जिनमें खुद वैभव गहलोत भी शामिल हैं, जिनके इस घोषणा के बाद जोधपुर के एक निगम का मेयर बनना तय माना जा रहा था लेकिन जोधपुर के दोनों नवगठित निगमों के लिए सामान्य महिला की लॉटरी खुलने के बाद अब वैभव की जगह उनकी धर्मपत्नी के मेयर बनने की कानाफूसी शुरू हो गई है. वहीं गहलोत सरकार का प्रदेश के तीन प्रमुख शहरों में दो-दो मेयर का फार्मूला कांग्रेस में बगावती स्वर अपनाए हुए प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के साथ समझौता भी हो सकता है जिसके तहत दोनों गुटों के एक-एक नेता को कुर्सी पर काबिज किया जा सकेगा.
खैर, चुनावी परिणाम तो अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन राजनीति के जादूगर माने जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस हाईब्रीड फॉर्मूले को लागू करके प्रदेश की राजनीति में जबरदस्त हलचल मचा दी है. एक तीर से एक साथ इतने निशाने साधने वाला ये रामबाण फॉर्मूला तैयार करने के पीछे के मास्टरमाइंड कोई ओर नहीं बल्कि चुप रहकर सियासी समीकरण साधने के सिद्धहस्त मुख्य सचतेक महेश जोशी हैं. जिन्होंने यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के साथ मिलकर मुख्यमंत्री गहलोत के लिए इस शत्रु विनाशक हाईब्रीड फॉर्मूले को ईजाद किया, जो कि पूरे भारत में लागू होने वाला अपने आप मे इस तरह का पहला फॉर्मूला होगा. आने वाले समय में और कितने राज्य इस फॉर्मूले को अपनाते हैं और क्या बीजेपी के चाणक्य अमित शाह गहलोत के इस जादुई फॉर्मूले (Hybrid Formula) का कोई तोड़ निकाल पायेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा.