17वीं लोकसभा में संसद में कांग्रेस किसके नेतृत्व में बीजेपी सरकार पर हमला बोलेगी, इसको लेकर कयासों का दौर शुरु हो गया है. यानि इस बार कांग्रेस संसदीय दल का नेता कौन होगा, इसको लेकर अब कईं नामों पर अटकलें शुरु हो गई हैं. हालांकि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की जिद्द के चलते इस मसले पर पार्टी में अभी बिल्कुल भी चर्चा नहीं हुई है. सामने आ रहा है कि राहुल गांधी खुद संसदीय दल के नेता बन सकते हैं.

अगर राहुल संसदीय दल के नेता बनते हैं तो फिर दूसरे नामों पर विचार करना ही बेमानी होगा. लेकिन अगर राहुल गांधी संसदीय दल का नेता नहीं बनते है तो फिर कांग्रेस के सामने यह सवाल होगा कि 17वीं लोकसभा में आखिर सदन में यह जिम्मेदारी उठाएगा कौन. क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया, भूपेंद्र सिंह हु्ड्डा, शीला दीक्षित और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे दिग्गज़ नेता चुनाव हार गए हैं. ऐसे में कांग्रेस के पास अनुभव के मामले में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे ही नेता बचे हैं जो चुनाव जीत कर आए हैं.

इनके पास अनुभव के साथ-साथ सरकार से भी अच्छे संबंध हैं. हालांकि सोनिया गांधी की सेहत खराब रहती है. ऐसे में वो किसी भी सूरत में संसदीय दल की नेता नहीं बनेंगी. ऐसे में मनीष तिवाड़ी, शशि थरुर और गौरव गोगोई जैसे सांसद संसदीय दल के नेता बन सकते हैं.

शशि थरुर, मनीष तिवाड़ी और गौरव गोगोई ही क्यों

मोदी की सुनामी में कांग्रेस के सारे दिग्गज़ नेता उड़ गए. राहुल गांधी के बाद मनीष तिवाड़ी और शशि थरुर ही कांग्रेस के पास दो मजबूत विकल्प दिख रहे हैं. कांग्रेस के केरल से सबसे अधिक सांसद जीतकर आए हैं. वाकपटु थरूर अंग्रेजी के साथ हिन्दी भी बोल लेते हैं. केंद्रीय राज्यमंत्री रह चुके थरूर को वैश्विक कूटनीति का भी व्यापक अनुभव है. वे लगातार तीसरी बार तिरूअनंतपुरम से लोकसभा के सदस्य चुने गए हैं.

पंजाब से भी कांग्रेस को अच्छी सीटें मिली हैं और मनीष तिवाड़ी पंजाब से सांसद बनकर आए हैं. तिवाड़ी दूसरी दफा एमपी बने हैं और पहले केन्द्र में मंत्री भी रह चुके हैं. तिवाड़ी पार्टी में मीडिया की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. तिवाड़ी संंसदीय कार्यप्रणाली संचालन से भी भली-भांति परिचित हैं. इन दोनों के अलावा असम के पूर्व सीएम तरुण गोगोई के बेटे और दूसरी बार सांसद बने गौरव गोगोई के अलावा बंगाल से जीतकर आए अधीर रंजन चौधरी के नाम भी चर्चाओं में हैं.

नेता प्रतिपक्ष के लिए 55 सीट जरूरी

देश में लोकसभा की 543 सीट हैं. नेता प्रतिपक्ष के लिए 55 सीट जरूरी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास 51 सीट है. नियमानुसार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को अकेले कम से कम 10 फीसदी सीटें जीतनी होती है.

लोकसभा में कुल 543 सीटों के लिए सीधा चुनाव होता है और 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को राष्ट्रपति चुनते हैं. मतलब 545 सीटों वाली लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को कम से कम 55 सीटें जीतनी जरूरी होंगी. 2014 में भी कांग्रेस को मात्र 44 सीटें प्राप्त हुई थीं. उस समय भी पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था.

हालांकि, कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़ा विपक्षी दल था. इसलिए केंद्र की एनडीए सरकार कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे को सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में सदन की जरूरी बैठकों में बुलाती रही है. मल्लिकार्जुन खड़गे ये कहते हुए इन अहम बैठकों का विरोध करते रहे कि जब तक उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया जाता, वह इस तरह की बैठकों में शामिल नहीं होंगे.

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