बीजेपी मध्य प्रदेश की भोपाल सीट पर पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी को चुनाव मैदान में उतारने जा रही है. इसके पीछे उसका मक़सद एक तीर से दो निशाना साधना है. पहला, पार्टी के भीष्म पितामह लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी की नाराजगी दूर कर उनका व विरोधियों का मुंह बंद करना और दूसरा, भोपाल जैसी अपनी मजबूत परम्परागत सीट को बचाना जहां से इस बार कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं.
गौरतलब है कि बीजेपी ने इस बार गुजरात के गांधीनगर से लालकृष्ण आडवाणी का टिकट काट दिया है. उनकी जगह इस सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे खास सिपहसालार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं. जिस तरह मोदी-शाह की जोड़ी द्वारा आडवाणी की इच्छा को एक तरह से नज़रअंदाज़ करते हुए उनका टिकट काटा गया, कहा जा रहा था कि इसे उन्होंने अपना अपमान माना. पार्टी के इस निर्णय से आडवाणी के ख़फ़ा होने की बातें कही जा रही थीं.
इसका संकेत पार्टी के स्थापना दिवस से ठीक दो दिन पहले आडवाणी के लिखे उस ब्लॉग से भी मिला, जिसमें उन्होंने परोक्ष रूप से मोदी-शाह की जोड़ी को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि भारतीय लोकतंत्र का सार अभिव्यक्ति का सम्मान और इसकी विभिन्नता है. अपनी स्थापना के बाद से ही बीजेपी ने कभी उन्हें ‘शत्रु’ नहीं माना जो राजनीतिक रूप से उसके विचारों से असहमत हो, बल्कि उन्हें अपना सलाहकार माना है. इसी तरह, भारतीय राष्ट्रवाद की बीजेपी की अवधारणा में पार्टी ने कभी भी उन्हें ‘राष्ट्र विरोधी’ नहीं कहा, जो राजनीतिक रूप से उससे असहमत थे.
आडवाणी ने अपने ब्लॉग में यह भी लिखा कि पार्टी निजी और राजनीतिक स्तर पर प्रत्येक नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर प्रतिबद्ध है, इसलिए बीजेपी हमेशा मीडिया समेत सभी लोकतांत्रिक संस्थानों की आज़ादी, अखंडता, निष्पक्षता और मजबूती की मांग करने में सबसे आगे रही है. जाहिर है उनका इशारा मौजूदा दौर में पार्टी की कार्यशैली और मोदी-शाह की जोड़ी के कार्य करने के तरीकों की ओर था. कहा जा रहा था कि आने वाले दिनों में आडवाणी बीजेपी की वर्तमान नीतियों के बहाने मोदी-शाह के ख़िलाफ़ अपनी भड़ास और निकालेंगे. उनके आगे और आक्रामक होने का अंदेशा था. यूं ही नहीं उन्होंने पांच साल से ठप पड़े अपने ब्लॉग को तरोताज़ा किया था.
मीडिया और सोशल मीडिया ने तो इसे हाथों-हाथ लिया ही, विपक्ष भी इसी बहाने बीजेपी पर हमलावर हो रहा था. बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं की आडवाणी के घर आवाजाही भी अचानक बढ़ गयी थी, जिसके बाद कई तरह के कयास लगने लगे थे. संभव था कि आगे कोई बड़ी ख़बर आ सकती थी. यह नि:संदेह बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकता था. लिहाजा, तत्काल डैमेज कंट्रोल की एक्सरसाइज शुरू की गयी. प्रतिभा आडवाणी को भोपाल से टिकट दिए जाने की चर्चा इसी ‘आपदा प्रबंधन’ की दिशा में उठा कदम समझा जा रहा है.
सूत्र बताते हैं कि आडवाणी का टिकट काटे जाने के बाद से ही हालांकि मध्य प्रदेश के कुछ स्थानीय नेताओं द्वारा भोपाल सीट के लिए प्रतिभा आडवाणी का नाम आगे किया जा रहा था, लेकिन पार्टी ने तब इस पर कोई खास तवज्जो नहीं दी. अब बदली परिस्थितियों में इस पर गहन विचार किया जा रहा है. संभव है कि जल्द इसकी घोषणा हो जाए. वैसे भी मध्य प्रदेश की कई सीटों पर बीजेपी ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. इंदौर सीट पर उम्मीदवार की घोषणा में हो रही देरी के कारण नाराज सुमित्रा महाजन ने चुनाव लड़ने से इनकार भी कर दिया है. यह मामला तूल भी पकड़ रहा है. लिहाजा बीजेपी भी अब जल्द से जल्द अपने सभी उम्मीदवारों का ऐलान करना चाह रही है.
भोपाल सीट तो वैसे भी उसके लिए काफी महत्वपूर्ण है, जो पिछले दो दशक से ज्यादा समय से उसकी झोली में ही जाती रही है. इसे ‘हिंदुत्व’ राजनीति के प्रभाव वाली सीट के तौर पर भी निरूपित किया जाता है. इस बार कांग्रेस ने अपने दिग्गज और बकौल बीजेपी मुस्लिमपरस्त नेता दिग्विजय सिंह को यहां से मैदान में उतारकर लड़ाई को रोचक बना दिया है. जिस मजबूत रणनीति और तैयारी के साथ दिग्गी राजा चुनाव मैदान में पसीना बहा रहे हैं, उससे इस सीट पर बीजेपी की जीत को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. यही वजह है कि उम्मीदवार तय करने में बीजेपी को इतनी देरी हो रही है.
पहले मौजूदा विधायक आलोक संजर का नाम उछला, फिर संगठन सचिव वीडी शर्मा को उम्मीदवार बनाये जाने की बातें उठीं, भोपाल के मेयर आलोक शर्मा दौड़ में आये और अंतत: एक समय ऐसा लगा कि मालेगांव धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा भारती ही दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ बीजेपी की उम्मीदवार होंगी. लेकिन पार्टी ने उन पर भी दांव लगाना खतरे से खाली नहीं समझा. आरएसएस की राय थी कि उमा भारती को ही यहां से खड़ा कर दिया जाए, लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया. शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर जैसों को लेकर भी चर्चाएं चलीं. अब इस क्रम में प्रतिभा आडवाणी का नाम मजबूती के साथ सियासी गलियारे में तैर रहा है.
कहा जा रहा है कि प्रतिभा आडवाणी की उम्मीदवारी के पक्ष में स्थानीय नेताओं ने तर्क दिया है कि अव्वल तो यह सीट हिंदू वोटों के एकमुश्त प्रभाव वाली है, दूजे यहां डेढ़ लाख से ज्यादा सिंधी मतदाता हैं. स्वाभाविक है कि दिग्विजय सिंह अगर 3.5 लाख मुस्लिम वोटों के अलावा हिंदू वोटों में सेंध लगाने का प्रयास करेंगे तो कम से कम सिंधी मतदाताओं में तो प्रतिभा आडवाणी के कारण कोई घुसपैठ नहीं हो पायेगी.
बीजेपी आलाकमान भी नहीं चाहता कि उसके लिए प्रतिष्ठा वाली रही यह सीट हाथ से निकले. और वह भी दिग्विजय सिंह से मात खाकर, जिन्हें वह हमेशा जोरदार तरीके से मुस्लिमों को तुष्ट करने वाले नेता बतौर निरूपित करती रही है. यही वजह है कि प्रतिभा आडवाणी को यहां से खड़ा कर बीजेपी एक तीर से दो निशाने साधने की कवायद करती जान पड़ रही है. वैसे पिछले आम चुनाव में भी मध्य प्रदेश ईकाई द्वारा लालकृष्ण आडवाणी को भोपाल सीट से उम्मीदवार घोषित करने की मांग की गयी थी. तब पार्टी आलाकमान ने भी यह प्रस्ताव आडवाणी के पास रखा था, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इससे इनकार कर दिया था कि वह गांधीनगर सीट से ही लड़ना पसंद करेंगे.
अब बदले हालात में मध्य प्रदेश के नेताओं ने फिर से आडवाणी परिवार के लिए इस सीट की पेशकश की है, जिस पर आलाकमान भी गंभीर है. उसे इसमें अपने लिए फायदा दिख रहा है. हालांकि खुले तौर पर इसकी पुष्टि करने से पार्टी नेता अभी कतरा रहे हैं. बीजेपी के एक नेता ने अनौपचारिक बातचीत में यह स्वीकार किया कि इस मसले पर गंभीर विचार हो रहा है. उनका कहना था कि इस कदम से आडवाणी की नाराजगी भी दूर की जा सकती है और दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ एक अच्छा उम्मीदवार भी दिया जा सकता है ताकि भोपाल सीट पर पार्टी का कब्जा बरकरार रहे.
विदित है कि प्रतिभा आडवाणी एक बेहद सफल टीवी एंकर और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता होने के साथ-साथ अपने पिता लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनकी राजनीतिक गतिविधियां में भी सक्रिय रही हैं. 2009 में जब एनडीए ने आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था, तक प्रतिभा ने भी अपने पिता के लिए खूब पसीना बहाया था. अपने पिता के सियासी सफर में वे एक सारथी की भूमिका में रही हैं. अब 51 वर्षीया प्रतिभा आडवाणी के स्वयं सियासत की पगडंडियों पर उतरने की तैयारी है.