prashant kishore jan suraj abhiyan
prashant kishore jan suraj abhiyan

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के लिए राजनीतिक रणनीतियां बना चुके प्रशांत किशोर उर्फ पीके अब सक्रिय राजनीति में उतरने के लिए तैयार हैं. पिछले कई सालों से वे इसकी तैयारी कर रहे थे. फाइनली उन्होंने बता दिया है कि वे इस दल की शुरूआत कब कर रहे हैं. पीके ने ऐलान किया है कि वे 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन इस दल की शुरूआत करने वाले हैं. इसका नाम ‘जन सुराज दल’ होगा. बिहार सीएम नीतीश कुमार के कभी करीबी रहे पीके अब लग रहा है कि प्रदेश विधानसभा चुनावों में कुछ सीटों पर चुनावी जंग लड़ते हुए देखे जा सकते हैं.

पटना के बापू सभागार में एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए प्रशांत किशोर ने बताया कि जन सुराज दल बनता है तो जनरल, ओबीसी, मुस्लिम इस तरह करके कुल पांच वर्गों में इसे बांटा जाएगा. उन्होंने कहा, ‘दल के नेतृत्व पर गहन चर्चा हुई है. मैं आपसे साझा करना चाहता हूं. यह तय किया गया है कि हर बार पांच वर्गों में से एक वर्ग को दल के नेतृत्व करने का अवसर दिया जाए. दल का लीडर कौन होगा या किस वर्ग से होगा? यह सबने तय किया कि इन पांचों वर्गों को दल का नेतृत्व करने का अवसर दिया जाए.’

पहला मौका किस वर्ग को मिलेगा

पीके ने आगे कहा, ‘दो सवाल है, पहला मौका किसको मिलेगा? कितने दिन के लिए मिलेगा? तो कितने दिन के लिए मिलेगा यह आप तय कर लीजिए. एक सुझाव ये है कि जो दल का नेतृत्व करेगा उसको एक साल का अवसर दिया जाएगा ताकि पांच साल में पांचों वर्गों के लोगों को एक-एक साल दल का नेतृत्व करने का अवसर मिले. दूसरा सुझाव है कि दो-दो साल का मौका मिले, क्योंकि एक साल में तो ज्यादा काम नहीं कर पाएगा, लेकिन जो लोग एक साल के पक्ष में हैं उससे यह है कि पांच साल में सभी वर्गों को काम करने का मौका मिल जाएगा.’

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प्रशां​त किशोर ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जो लोग दो साल के पक्ष में हैं तो परेशानी ये है कि अगर एक बार दलित समाज का अध्यक्ष बन गया तो आठ साल के बाद ही उसको फिर अवसर मिलेगा.” इस कार्यशाला में आए जन सुराज के पदाधिकारियों से प्रशांत किशोर ने पूछा कि अब आप बताइए कि दल के अध्यक्ष की समय-सीमा एक साल होनी चाहिए या दो साल? इस पर सबने कहा एक साल.

बता दें कि दल बनाने की तैयारी के लिए बिहार भर के अभियान से जुड़े डेढ़ लाख से अधिक पदाधिकारियों की कुल 8 अलग-अलग राज्य स्तरीय बैठकें की जा रही हैं. इन बैठकों में सभी पदाधिकारियों के साथ दल के बनाने की प्रक्रिया, इसके नेतृत्व, संविधान और दल की प्राथमिकताओं को तय किया जाएगा.

इस बार स्थिर नहीं रही नीतीश सरकार

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को करीब सवा दो साल का समय शेष है. इस बार बिहार की राजनीति में एक दो बार नहीं, बल्कि कई बार हलचलें देखी गयीं. बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश ने इस्तीफा देते हुए महागठबंधन के साथ सरकार बनायी. फिर महागठबंधन के साथ नाता तोड़ फिर से बीजेपी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन बैठे. पीके नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ लंबे समय तक काम कर चुके हैं. पीके पिछले कई सालों से बिहार की गलियां घूम घूम कर युवाओं को लेकर एक कैंपेन चला रहे हैं ताकि प्रदेश के विकास का मुद्दा उठाया जा सके. गांधी जयंती के दिन पार्टी की घोषणा के साथ उन्होंने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि वे जनहित में ये कदम उठा रहे हैं. अब देखना ये होगा कि अब तक दूसरों के लिए सियासी रणनीतियां तैयार करने वाले पीके अपने लिए ​कितना मजबूत राजनीतिक प्लेटफार्म तैयार कर पाते हैं.

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