Politalks.News/Rajasthan. आइए आज उत्तर प्रदेश की राजनीति पर चर्चा की जाए. देश में यह उत्तरप्रदेश एक ऐसा राज्य है जो केंद्र सरकारों के निर्माण का फैसला करता रहा है. यानी केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए रास्ता यहीं से जाता है. यूपी में चाहे लोकसभा या विधानसभा चुनावों में नेताओं का मुख्य हथियार जातिगत आधार ही माना जाता रहा है. ऐसे में एक बार फिर उत्तर प्रदेश में जातिगत (ब्राह्मणों को रिझाने का) सियासी खेल उफान पर है. हालांकि प्रदेश में अभी विधानसभा चुनाव होने में डेढ़ वर्ष बचा है लेकिन सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस ने ब्राह्मणों का गुणगान करना शुरू कर दिया है.
उत्तरप्रदेश की राजनीति में इन दिनों हर तरफ ब्राह्मणों की चर्चा है. हर पार्टी ब्राह्मण नाम की माला जप रही है. कोई भगवान परशुराम के नाम पर मूर्तियां बनवाने की बात कर रहा है तो कोई परशुराम के नाम पर अस्पताल और रैन बसेरे बनाने की बात कर रहा है. इन सबसे आगे बढ़कर भाजपा ने भी नया दांव चलते हुए ब्राह्मणों के लिए जीवन बीमा और हेल्थ इंश्योरेंस कराने की घोषणा कर दी है. इस पर सपा ने बीजेपी को जुमला पार्टी कहते हुए कहा है कि वह जो कहती है वह करती नहीं है. बता दें कि वर्ष 2017 से प्रदेश में भाजपा की सरकार है. योगी आदित्यनाथ पूरे दमखम के साथ अपनी सरकार चला रहे हैं. पिछले दिनों 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास के बाद मुख्यमंत्री योगी और भाजपा ने हिंदुत्व का कार्ड खेलकर जबरदस्त माहौल तैयार कर दिया है. यूपी में होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए भाजपा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर चुनावी ‘मास्टर स्ट्रोक’ मान रही है.
दूसरी ओर विपक्षी दलों ने योगी सरकार में लगातार ब्राह्मण वर्ग पर हो रहे हमले को अब भाजपा सरकार के खिलाफ एक मजबूत हथियार बना लिया है. वहीं पिछले महीने विकास दुबे एनकाउंटर ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है. इस तरह ब्राह्मणों की नाराजगी को विपक्षी दल भी भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते. यूपी में सभी मुख्य विपक्षी दल योगी सरकार पर ब्राह्मणों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए निशाना साध रहे हैं. वहीं अब ब्राह्मणों की आस्था के प्रतीक परशुराम के जरिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में घमासान मचा हुआ है. इधर कांग्रेस भी ब्राह्मण चेतना संवाद के जरिए वोट बैंक को साधने में जुट गई है.
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गौरतलब है कि पिछले साल 2019 में एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाली एसपी और बीएसपी पार्टियां ब्राह्मण वोट साधने के लिए इस बार एक दूसरे पर हमले कर रहीं हैं. पिछले दिनों ब्राह्मण वोट भुनाते हुए समाजवादी पार्टी ने सूबे में परशुराम की मूर्ति लगाने का वादा किया, तो मायावती कैसे पीछे रहने वाली थीं. मौके का फायदा उठाते हुए बसपा प्रमुख ने जोर शोर से प्रचार करते हुए भगवान परशुराम की मूर्ति पूरे प्रदेश भर में लगाने का एलान कर डाला. यही नहीं उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों की तरफ से ब्राह्मण वोट बैंक को ध्यान में रखकर एक से बढ़कर एक वादे किए जा रहे हैं.
समाजवादी पार्टी ने यूपी के हर जिले में भगवान परशुराम प्रतिमा लगाने का किया एलान-
भाजपा और बसपा के साथ समाजवादी पार्टी ने भी वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘ब्राह्मण कार्ड’ खेलते हुए भगवान परशुराम के प्रति अपार श्रद्धा दिखाई है. अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पूरी तरह कमर कस ली है. इसके लिए समाजवादी पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश के हर जिले में भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाने का एलान कर दिया है. भगवान परशुराम के साथ ही क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय की प्रतिमा भी लगाई जाएगी. आपको बता दें कि पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ कुछ ब्राह्मण नेताओं की बैठक हुई थी. बैठक के बाद फैसला लिया गया कि हर जिले में भगवान परशुराम की प्रतिमा स्थापित की जाएगी. इसके लिए सपा चंदा भी जुटाने में जुट गई है.
यही नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने समाजवादी कार्यकर्ताओं को ब्राह्मणों के घर-घर जाने के निर्देश भी दिए हैं. समाजवादी पार्टी की ओर से कहा गया है कि यूपी की लखनऊ में लगने वाली भगवान परशुराम की यह प्रतिमा यूपी में सबसे ऊंची प्रतिमा होगी. इस मूर्ति की ऊंचाई 108 फीट की होगी. कहा जा रहा है कि पार्टी के कुछ ब्राह्मण नेता भगवान परशुराम की प्रतिमा लेने के लिए जयपुर पहुंचे हैं. यहां चेतना पीठ ट्रस्ट के तहत प्रतिमा लगाई जाएगी. यह भी कहा जा रहा है कि सपा ही प्रतिमा के लिए चंदा लेकर धन जुटाएगी. अखिलेश यादव ने ब्राह्मणों को रिझाने के लिए अपने खास मित्र अभिषेक मिश्रा और मनोज कुमार पांडे को इस कार्य के लिए लगा दिया है.
13 साल बाद मायावती ने एक बार फिर ब्राह्मणों के लिए दिखाई ‘राजनीतिक श्रद्धा’
बसपा प्रमुख मायावती कुछ वर्षों से न तो प्रदेश की, न केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो पा रहीं हैं. बीएसपी यूपी की सत्ता से आठ साल से बाहर है, यही नहीं उससे दलित वोटर भी दूर हो रहे हैं. लेकिन अब बसपा प्रमुख ने 13 साल बाद एक बार फिर ब्राह्मणों पर दांव खेलने की तैयारी कर ली है. यानी एक बार फिर मायावती ने ‘ब्राह्मण-दलित गठजोड़’ करने के लिए पूरा प्लान बना लिया है. बसपा के नए प्लान में मायावती ने ब्राह्मणों के प्रति अपार श्रद्धा दिखाते हुए कहा, अगर वर्ष 2022 में उनकी सरकार आती है तो भगवान परशुराम की प्रतिमा यूपी में लगाई जाएगी. बसपा प्रमुख को अब समझ में आ गया है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को परास्त करना है तो ‘ब्राह्मण चुनावी हथियार’ दांव सही रहेगा . बसपा चीफ ने बीजेपी और एसपी पर निशाना साधते हुए कहा कि जयश्री राम का विरोध करने वाले अब परशुराम के नाम पर प्रदेश में सत्ता हासिल करने का ख्वाब न देखें. 2007 में ब्राह्मणों और दलितों के गठजोड़ के साथ आखिरी बार सत्ता में काबिज होने वालीं मायावती ने अब एक फिर चुनावी गणित को तेज कर दिया है.
वर्ष 2007 में बसपा की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की राजनीति खूब चमकी थी
आपको 13 वर्ष पहले 2007 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में लिए चलते हैं. इन चुनावों ने बसपा प्रमुख मायावती और पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने ब्राह्मण-दलित गठजोड़ बनाकर ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की थी. उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में बसपा अकेली भाजपा, कांग्रेस और सपा की राजनीति को खत्म करते हुए पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई थी. बसपा प्रमुख के अपनाए गए इस सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को राजनीति में एक नए रूप में परिभाषित भी कर दिया था. लेकिन इसके बाद बसपा का न तो लोकसभा और न ही विधानसभा चुनावों में कोई दांव चला. अब मायावती एक बार फिर दलित और ब्राह्मणों के अपने पुराने गठजोड़ पर भरोसा करती दिख रही हैं.
यहां आपको बता दें कि बीएसपी सुप्रीमो एक हाथ से ब्राह्मणों को साध रही हैं तो दूसरे हाथ से दलितों में अपनी खोई अपनी जमीन वापस पाने की कोशिश करती दिख रही हैं. गौरतलब हैै कि 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को अपने दलित वोट बैंक पर हद से ज्यादा भरोसा रहा, लेकिन ब्राह्मणों का मायावती से मोहभंग हो चुका था. इसकी काट निकालने के लिए मायावती को दलित और मुस्लिम समुदाय के सपोर्ट की पूरी उम्मीद थी, लेकिन वो सत्ता में वापसी नहीं कर पाईं. ऐसेे ही 2014 लोकसभा चुनाव में भी निराश होना पड़ा और 2017 में भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ. अब मायावती ने भगवान परशुराम के सहारे ब्राह्मणों को लुभानेे का अपना पुराना राजनीतिक दांव फिर से खेलने की तैयारी शुरू कर दी है.
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भाजपा विधायक ने ही ब्राह्मणों की हत्या को लेकर योगी सरकार से किए सवाल
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को रिझाने की कोशिश अपने अपने चरम पर है. सबको लग रहा है कि ब्राह्मण उसके साथ आ जाए तो बात बन जाए. यूपी की राजनीति में अब तक विपक्षी दल ही अपने अपने तरीके से ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन अब भाजपा विधायक भी सरकार से जवाब मांगने की कोशिश करने लगे हैं. सुलतानपुर जिले की लम्भुआ सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक देवमणि द्विवेदी ने अपने ही योगी सरकार से सवाल जवाब किए हैं. देवमणि द्विवेदी ने अपने सवाल में पूछा है कि बीते तीन वर्ष में प्रदेश में कितने ब्राह्मणों की हत्या हुई है? भाजपा विधायक द्विवेदी ने इसका जवाब प्रदेश के गृहमंत्री से मांगा है.
ब्राह्मण उत्तर प्रदेश का एक प्रभावशाली समाज है. ऐसे में बीजेपी सीधे सीधे हिंदुत्व कार्ड खेल रही है. भाजपा के पास भगवान राम के मंदिर का मुद्दा है, मोदी का चेहरा है और योगी जैसा भगवाधारी संत है. लेकिन इसी तिगड़ी को लेकर विपक्ष अब योगी सरकार के खिलाफ गोलबंदी करने में जुटा है. विकास दुबे एनकाउंटर और उसके बाद कई ऐसे अपराधी, जो ब्राह्मण समाज से आते हैं, उन पर हुई कार्रवाई को आधार बनाकर यूपी में सपा बसपा और कांग्रेस की कोशिश हो रही है कि ये साबित किया जाए कि योगी सरकार ब्राह्मणों के खिलाफ है. इसी मौके को देखते हुए सबसे पहले सपा ने और फिर बसपा भी परशुराम के बहाने ब्राह्मणों वोट बैंक को साधने में जुट गई है.