पाॅलिटाॅक्स न्यूज/बिहार चुनाव स्पेशल. एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन औवसी बिहार चुनाव से पहले फुल फार्म में नजर आ रहे हैं. उनका सारा ध्यान बिहार के 17 फीसदी मुस्लिम वोटरों पर फोकस है. रणनीति यह है कि मुस्लिम वोटों का एकीकरण हो और उनका वोट किसी अन्य पार्टी में ना जाए. अगर ऐसा करने में औवेसी कामयाब हो जाते हैं तो बिहार में सत्ता का गणित ही बदल सकता है.
क्या है असदुद्दीन औवेसी की बिहार रणनीति
औवेसी का मानना है कि राजनीतिक दल मुस्लिमों को हर चुनाव में ठगने का काम करते हैं. इतने चुनावों के बाद भी मुस्लिम मतदाता की स्थिति बेहतर नहीं हो सकी. मसला शिक्षा का हो या रोजगार, मुस्लिम तरक्की के लिए आज तक जूझ रहा है. मुस्लिमों ने हर बार किसी ने किसी राजनीतिक दल पर भरोसा किया लेकिन चुनाव के बाद उसके विकास के लिए कुछ भी ठोस नहीं हो सका. औवेसी इन्हीं बातों को आधार बनाकर मुस्लिम वोटों के एकत्रिकरण के काम में जुटे हैं.
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औवेसी की पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में 32 ऐसी सीटों पर लड़ने की घोषणा की है, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक हैं. कई सीटों पर तो इनकी आबादी 40 से 70 फीसदी तक है. 13 लोकसभा क्षेत्र में 12 से 67 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं. 9 क्षेत्र ऐसे हैं, जहां 20 फीसदी से अधिक मतदाता है. वर्तमान में इन 32 सीटों में से 15 सीट राजद, 7 सीट कांग्रेस और 4 सीट जदयू के पास है. यानि 22 सीट पर महागठबंधन के विधायक हैं तो 4 सीट एनडीए के पास है.
अन्य क्षेत्रीय पार्टियों से होगा समझौता
औवेसी द्वारा 32 प्रत्याशियों की घोषणा के साथ स्पष्ट हो गया है कि मुस्लिम बहुल सीटों पर वो किसी भी पार्टी से समझौता नहीं करेंगे. रणनीति के अगले चरण में औवसी उन सीटों पर क्षेत्रीय दलों से समझौता करेंगे जहां मुस्लिम वोटर तो है लेकिन निर्णायक स्थिति में नहीं है. यह ऐसी सीटें है जहां 15 फीसदी से कम मुस्लिम मतदाता हैं. जो किसी को सीधे-सीधे जीता तो नहीं सकते लेकिन जीत का आधार बन सकते हैं.
बदलते गए मुस्लिम मतदाता राजनीतिक दल
पारंपरिक तौर से मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का वोटर रहा है लेकिन भागलपुर दंगों के बाद इसमें परिवर्तन आना शुरू हुआ. दंगों के बाद राजीव गांधी ने कुछ ऐसे निर्णय किए, जिससे मुस्लिमों का कांग्रेस से मोहभंग होना शुरू हो गया. इसी दौरान लालू प्रसाद यादव बिहार में अपने पैर जमा रहे थे. लालू यादव ने इस मौके पर पूरा लाभ उठाया और बिहार में एमवाई यानि मुस्लिम यादव समीकरण बनाया. इस समीकरण से लालू यादव बिहार की सत्ता पर काबिज हो गए. इधर नीतीश कुमार अपना प्रभाव बढ़ाने में लग रहे थे. उन्होंने कानून व्यवस्था और रोजगार के मुददों को प्रभावी ढंग से उठाकर जनता का ध्यान अपनी और आकर्षित करने में सफल रहे.
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2005 में जदयू भाजपा गठबंधन की जीत हुई. इस जीत की खासियत यह रही कि मुस्लिमों के वोट भाजपा को तो नहीं मिले लेकिन नीतीश की पार्टी जदयू वोट लेने में सफल रही. नीतीश सरकार बनते हुए भागलपुर दंगों की फिर से जांच कराने की घोषणा की. 2015 में राजद और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में भी जदयू को मुस्लिमों के जमकर वोट मिले. जदयू से 6 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बने, लेकिन 2017 में जदयू और राजद गठबंधन समाप्त हो गया. नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली.
इसी दौरान केंद्र सरकार की ओर से धारा 370 और ट्रिपल तलाक कानून लाए गए, जिनका विरोध करके नीतीश कुमार ने मुस्लिमों को खुश रखने का प्रयास किया. वहीं नागरिकता संसोधन बिल का समर्थन करके नीतीश ने सबको चौंका दिया. इसके बाद मुस्लिम क्षेत्रों में औवेसी ने नीतीश पर भाजपा की तरह मुस्लिम विरोधी होने का प्रचार शुरू कर दिया.
अगड़ी और पिछड़ी जातियों का रूख
बिहार की अगड़ी जातियों का वोट लगातार भाजपा को मिल रहा है. वहीं कांग्रेस, जदयू और राजद पिछड़ी जातियों का वोट लेने में सफल रहे हैं. लेकिन औवेसी बिहार में मुस्लिम और एससी समीकरण बनाने में लगे हैं. जय मीम, जय भीम के नारे के साथ इस दिशा में काम किया जा रहा है. यदि औवेसी इसमें सफलता ले लेते हैं, तो कांग्रेस, जदयू और राजद तीनों को बड़ा नुकसान हो सकता है.
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30 से 60 सीटों पर आए तो बनेंगे सरकार की चाबी
बिहार की 243 में से अगर औवसी की रणनीति 30 से 60 सीटों पर सफल हो जाती है तो औवेसी की पार्टी के पास सत्ता की चाबी भी आ सकती है. जानकारों के अनुसार औवेसी की पार्टी के चुनाव लड़ने से भाजपा के वोट बैंक पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि कई सीटों पर बीजेपी को सीधा फायदा भी मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है.
किशनगंज सीट से चुनाव जीतकर दिखाया अपना दम
बिहार की किशनगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में औवेसी ने अपना उम्मीदवार उतारा और कांग्रेस की इस परंपरागत सीट को जीत लिया. चुनाव की खास बात यह रही कि मुस्लिमों के वोट औवेसी को मिलने के कारण परिणामों में कांग्रेस तीसरे नंबर पर चली गई. एआईएमआईएम के प्रत्याशी अख्तरूल इमाम ने दिलचस्प मुकाबले में भाजपा प्रत्याशी स्वीटीसिंह को हराया. बिहार में पहली बार एआईएमआईएम का खाता खुलने से औवेसी खासे उत्साहित हो गए. औवेसी का मुस्लिम वोटों के एकीकरण का प्रयोग पूरी तरह सफल रहा. इसी प्रयोग को वो उन सभी सीटों पर आजमाने का प्रयास कर रहे हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं.