सियासी गूंज- ‘नेताजी लाख मंत्री बनना चाहें तो क्या होगा, वो ही होगा जो मंजूर-ए-गहलोत होगा…!’

राजस्थान में गहलोत मंत्रिमंडल पुनर्गठन पर 'इंतहा हो गई इंतजार की'! कयासों की तारिख पर तारिख के बीच सियासी गलियारों में चर्चाएं, आखिर कब निकलेगा सुलह का रास्ता? तमाम प्रयासों और संकेतों के बाद भी नहीं बन पा रही है बात? बयानों और अफवाहों के भंवर के बीच हर किसी को है मंत्रिमंडल पुनर्गठन का इंतजार

img 20211030 wa0269
img 20211030 wa0269

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल पुनर्गठन और राजनीतिक नियुक्तियों के मसले को लेकर दो हिंदी फिल्मों के डायलॉग जो आजकल मरुधरा के सियासी गलियारों में गूंज रहे हैं. इनमें पहला है हिंदी फिल्म ‘दामिनी‘ का मशहूर डायलॉग ‘तारीख पे तारीख‘ और दूसरा है ‘मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूरे ख़ुदा होता है’, लेकिन दूसरे डायलॉग में थोड़ा चेंज है और वह यह कि ‘नेताजी लाख मंत्री बनना चाहें तो क्या होगा, वो ही होगा जो मंजूर-ए-गहलोत होगा.’ ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि वर्तमान परिस्थितियों के मध्यनजर ऐसी चर्चाएं आम हो चली हैं.

बीते साल गहलोत सरकार पर आए सियासी संकट को एक साल और दो महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है. लेकिन तब से पहले मंत्रिमंडल विस्तार और अब पुनर्गठन को लेकर केवल कयासों की तारीख पर तारीख ही सामने आती जा रही है. यहां तक कि खुद प्रदेश प्रभारी अजय माकन कई बार कह चुके हैं कि रौडमेप तैयार है जल्द ही…! लेकिन जल्द कब इसका जवाब प्रभारी माकन के पास भी नहीं है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ पायलट गुट ही लगातार मंत्रिमंडल पुनर्गठन को लेकर प्रयासरत है, बल्कि गहलोत सरकार को समर्थन कर रहे निर्दलीय और बसपा से कांग्रेसी बने विधायकों ने भी कई बार बयानबाजी कर अटकलों का बाजार गर्माया लेकिन नतीजा वो ही…. ऐसे में अब सियासी गलियारों में केवल एक बात की चर्चा है कि मंत्रिमंडल पुनर्गठन तब ही होगा जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहेंगे. यह भी कहा जा रहा है कि आलाकमान ने भी सीएम गहलोत को फ्री हैंड दे दिया है. अब तो सियासी जादूगर पर ही निर्भर करता है कि वो कब करेंगे अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन!

यह भी पढ़ें: पेट्रोल-डीजल 100 के पार जाने के 100 बहाने! लेकिन असली कारण मोदी सरकार का बढ़ाया हुआ TAX

बीते साल 2020 में 13 अगस्त को प्रियंका गांधी के दखल के बाद प्रदेश कांग्रेस की ‘सियासी कलह’ के सुलझने का दावा किया गया था. लेकिन सियासी कलह के चलते पायलट कैंप को जो नुकसान हुआ था उसकी भरपाई अब तक नहीं हो पाई है. सचिन पायलट को पीसीसी चीफ और उपमुख्यमंत्री पद से हटाया जाना हो या पायलट समर्थक विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा को मंत्री पद से हटाना, करीब 14 महीने से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी उनका कथित हक नहीं लौटाया गया है.

Patanjali ads

इस बीच सचिन पायलट कैंप लगातार मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की मांग करता रहा, लेकिन अभी तक केवल दिलासे के अलावा कुछ नहीं मिला है. वहीं दोनों गुटों के बीच खींचतान भी लगातार जारी है. इस दौरान कुछ ना कुछ ऐसा होता भी रहा जिससे मंत्रिमंडल पुनर्गठन का काम टलता रहा, फिर चाहे वो कोरोना संक्रमण हो, विधानसभा उपचुनाव हों, पंचायत चुनाव या अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव हों. इसी बीच खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पहले कोरोना और बाद में उनकी एंजियोप्लास्टी ने भी मंत्रिमंडल विस्तार/पुनर्गठन को अटकाया है. वहीं पंजाब-छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड कांग्रेस का सियासी संकट भी सीएम गहलोत का साथ देता चला गया. अब कहा गया कि वल्लभनगर और धरियावद सीट पर उपचुनाव के बाद कोई ना कोई डवलपमेंट हो ही जाएगा. लेकिन अब तो बीते रोज 30 अक्टूबर को दोनों ही सीटों पर मतदान भी हो गया और धौलपुर-अलवर में पंचायत चुनाव भी निपट गए है, जहां कांग्रेस ने जबरदस्त प्रदर्शन कर अपना परचम फहराया है, लेकिन बावजूद इसके राजस्थान कांग्रेस में छाया सियासी सन्नाटा टूटता नहीं दिख रहा है.

यह भी पढ़े: गुड़ खाकर गुलगुले खाने से परहेज कर रहे रागा! सब चाहते हैं राहुल बने अध्यक्ष लेकिन कहां अटकी बात..!

इस पूरे एक साल से ज्यादा के समय में ये नहीं कहा जा सकता है कि कोशिशें नहीं हुई. कोशिश भी हुईं है. जयपुर और दिल्ली से भी तमाम कोशिशें हुई. लेकिन रिजल्ट एक ही आया कयासों की तारिख…! दोनों ही पक्षों की ओर से सियासी बयानों के बाण चले. दिल्ली में बैठकों का दौर चला. राजस्थान में भेजे गए नए प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों की रायशुमारी भी कर ली. मैनिफेस्टो कमेटी की बैठक हुई लेकिन रिजल्ट रहा जीरो. इनके अलावा किसी ना किसी बहाने से पार्टी के दिग्गज नेता कुमारी शैलजा, डीके शिवकुमार, दिग्विजय सिंह और पी. चिदंबरम को भी जयपुर भेजा गया. दिग्विजय सिंह ने तो गहलोत-पायलट-जोशी और डोटासरा से अलग-अलग मुलाकात कर सियायी माहौल भी बना दिया, लेकिन रिजल्ट रहा जीरो. यही नहीं दिल्ली से गहलोत सरकार के मंत्री हरीश चौधरी से बयान भी दिलाया गया कि जिस दिन सीएम गहलोत का चार्टर दिल्ली में लैंड करेगा समझ लीजिएगा कि …. लेकिन रिजल्ट रहा जीरो.

उधर पंजाब कांग्रेस में चली बड़ी सियासी उठापटक के दौरान भी कई बार कयासों का दौर चला कि अब आई राजस्थान की बारी, लेकिन नतीजा वो ही ठाक के तीन पात. यही नहीं फिर वो घड़ी भी आई जिसका सभी को इंतजार था, बीती 16 अक्टूबर को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में भाग लेने पूरे आठ महीने बाद मुख्यमंत्री अशोज गहलोत दिल्ली पहुंचे, यहां तक कि राहुल गांधी के आवास पर सीएम गहलोत की बैठक की खबर के बाद तो एक बारगी तो ऐसा माहौल बना की जैसे तो एक-दो दिन में ही गहलोत मंत्रिमंडल विस्तार हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. बल्कि बकौल मुख्यमंत्री गहलोत उनकी राहुल गांधी से कोई मुलाकात ही नहीं हुई, उनकी प्रियंका गांधी, केसी वेणुगोपाल और अजय माकन के साथ ही बैठक हुई थी.

यह भी पढ़ें: आयरन लेडी को याद कर CM गहलोत ने भाजपा-मोदी सरकार पर बोला बड़ा हमला, दिया ये बड़ा बयान

अब बात करते हैं आगे की संभावना की, तो वल्लभनगर और धरियावद दोनों विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव का रिजल्ट 2 नवंबर को आना है और 4 नवम्बर को दिवाली है. ऐसे में माना जा रहा है कि 2 नवंबर तक मंत्रिमंडल पुनर्गठन हो जाता है तो ठीक है वरना फिर दीवाली के बाद ही होगा कुछ. इधर माना तो यह जा रहा है कि रोडमैप के हिसाब से धीरे ही सही मामला आगे तो बढ़ रहा है. गहलोत सरकार के दो मंत्रियों रघु शर्मा और हरीश चौधरी को एक-एक कर चुनावी राज्यों गुजरात और पंजाब की जिम्मेदारी दे दी गई है. साथ ही दोनों ने ये बयान भी दे दिए हैं कि वो मंत्री पद छोड़ने को तैयार हैं. वहीं अब दो मंत्रियों के एक व्यक्ति एक पद की वकालत के बाद शिक्षा मंत्री और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को भी एक पद से ही संतोष करना पड़ेगा. इससे माना जा रहा है काम तो हो रहा है लेकिन उसी तरह से हो रहा है जैसा की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं.

यह भी पढ़ें- कांग्रेस को ‘कैप्टन’ की दो टूक, थैंक यू सोनिया जी, सुलह का समय बीता, अब पीछे नहीं हटेंगे कदम

इन सबके ऊपर सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस आलाकमान भी जानता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ विधायकों का पूरा गणित है. रही सही कसर बसपा से कांग्रेस में आए और निर्दलीय विधायकों ने पूरी कर रखी है. रायशुमारी में भी विधायकों का गणित सीएम गहलोत के पास था. तो आलाकमान भी सीएम गहलोत के जनाधार को कभी कोई चुनौती नहीं देना चाहता है. वहीं अगर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर या छत्तीसगढ़ में बघेल से सीएम गहलोत के बीच सियासी अनुभव की तुलना करें तो मारवाड़ के जादूगर उनसे बीस ही निकलेंगे उन्नीस नहीं. इसीलिए कहा जा रहा है कि ‘नेताजी लाख मंत्री बनना चाहें तो क्या होगा, वो ही होगा जो मंजूर-ए-गहलोत होगा.

Leave a Reply