Jharkhand politics: झारखंड की राजनीति में इस वक्त चंपई सोरेन का नाम खास चर्चा में बना हुआ है. वजह है – जमीन घोटाला मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफे और गिरफ्तारी के बाद चंपई सोरेन मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं. हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन की नाम पर विवाद के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मुख्यमंत्री पद के लिए चंपई सोरेन का नाम तय किया. ऐसा नहीं है कि चंपई सोरेन का नाम अभी सुर्खियों में आया है. चंपई अपने पहले चुनाव से ही काफी पॉपुलर रहे हैं. युवा अवस्था में अच्छे फुटबॉलर रह चुके चुंपई राजनीति के मैदान में भी अपने अंदाज से जाने जाते हैं. उनके कद का अंदाजा केवल इस बात से हो जाता है कि आज भी हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी सार्वजनिक मंच पर भी चंपई के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं. इससे पहले चंपई प्रदेश सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर थे.
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हालांकि कुछ समय पहले तक इस बात के कयास बिल्कुल नहीं लगाए जा रहे थे कि हेमंत सोरेन के बाद चंपई सोरेन को झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी, लेकिन घर में ही बगावत शुरू होने के डर से सोरेन परिवार को ऐसा फैसला लेना पड़ा. चम्पई को अगला सीएम बना सोरेन परिवार ने अंतिम समय में डैमेज कंट्रोल करने का प्रयास किया है. चंपई 6 बार के विधायक हैं.
पिता के साथ खेती की, आंदोलन से पहचान मिली
ढीले-ढाले कपड़े, पैरों में चप्पल और चेहरे पर मुस्कान लिए चंपई सोरेन परिवार के काफी करीबी हैं. चंपई का जन्म झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के जिलिंगगोड़ा गांव में हुआ है. चंपई के पिता किसान थे और 10वीं की पढ़ाई के बाद चंपई भी खेती में उनका हाथ बंटाने लगे. इसी बीच बिहार से झारखंड राज्य को अलग करने के लिए आंदोलन शुरु हो गया जिसकी अगुवाई शिबू सोरेन कर रहे थे. चंपई भी उनके साथ जन आंदोलन में कूद पड़े और जल्द ही ‘झारखंड टाइगर’ के नाम से मशहूर हो गए.
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चंपई 1972 में पहली बार शिबू सोरेन से मिले थे और तब से अब तक उनका साथ नहीं छोड़ा. शिबू को अपना गुरू और आदर्श मानने वाले चंपई झारखंड आंदोलन से लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन तक हमेशा उनके साथ रहे. वे शिबू हो हमेशा ही गुरुजी कहकर संबोधित करते हैं.
कई आंदोलन में शामिल रहे हैं चंपई सोरेन
चंपई सोरेन ने महाजनी प्रथा और ठेकेदारी के खिलाफ आंदोलन चलाया और इसके लिए झारखंड लिबरेशन फ्रंट का गठन किया. इसके माध्यम से बड़ी संख्या में मजदूरों और शोषितों को न्याय दिलाया. 2016 में कोल्हान स्थित टाटा स्टील में 1990 से अस्थायी श्रमिकों को स्थायी करने की मांग करने हुए चंपई ने अनिश्चित कालीन गेट जाम आंदोलन कर दिया था. इसके बाद करीब 1700 ठेका मजदूरों को कंपनी में स्थायी प्रतिनियुक्ति दी गयी. उसके बाद से चंपई ‘कोल्हान टाइगर’ बन गए.
पहले चुनाव में सांसद पत्नी को दी करारी शिखस्त
1991 में सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में हुए उप चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चंपई ने पहली जीत दर्ज की. यह जीत प्रदेशभर में चौंकाने वाली रही क्योंकि इस चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा से सिंहभूमि के तत्कालीन सांसद कृष्णा मार्डी की पत्नी मोती मार्डी को चंपई के हाथों हार मिली थी. तब कृष्णा का क्षेत्र में दबदबा होता था. उसके बाद चंपई के कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कुछ सालों पहले शिबू सोरेन चंपई को मुख्यमंत्री तक बनाने के लिए सहमत हो गए थे. हालांकि तब चंपई सीएम नहीं बन पाए थे.