पॉलिटॉक्स न्यूज. भारत और नेपाल के रिश्तों में अनचाही कड़वाहट आ चुकी है. बीते दशक में रिश्ते इतने खराब हो गए कि नेपाल की भारत के पड़ौसी देश चीन से नजदीकियां बन गई और नेपाल में भारत विरोधी राष्ट्रवाद ने जन्म ले लिया. यही सबसे अधिक चिंता का सबब है जिससे दोनों देशों के आपसी संबंध हर दिन खराब हो रहे हैं और प्रगाढ़ता का कोई रास्ता भी नजर नहीं आ रहा है. अब रिश्ते दोस्ती की परिभाषा से निकल कर दुश्मनी की राह की ओर बढ़ रहे हैं. नेपाल न सिर्फ भारत को आंखें दिखा रहा है, बल्कि कई मौकों पर उसके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की हिदायत भी दे चुका है. क्या इसे भारत की विदेश नीति की बड़ी असफलता के तौर पर देखा जाए या फिर चीन के नेपाल पर बढ़ते प्रभाव के रूप में परिभाषित किया जाए… यह चर्चा का विषय जरूर हो सकता है. इस बीच विशेषज्ञों का दावा है कि भारत ने हालात नहीं संभाले तो सामरिक दृष्टि से बड़े नुकसान उठाने पड़ सकते हैं.
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लगातार और तेजी से बिगड़ रहे भारत नेपाल संबंधों को जब पाॅलिटाॅक्स ने खंगाला तो कई ऐसे तथ्य सामने आए जिन्हें नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. भारत की ओर से अपने समारिक महत्व के लिए कई कदम ऐसे उठाए गए हैं, जिनसे नेपाल का भरोसा भारत के प्रति कम हुआ है. इसके चलते वहां पिछले कुछ समय से चल रहे राष्ट्रवाद में भारत विरोधी मूवमेंट शामिल हो गया है.
आखिर कौनसे हैं वो तथ्य जिनकी वजह से लगातार बिगड़ते जा रहे हैं हालात, आइए जानते हैं…
1 भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ही नेपाल में मधोशी आंदोलन खड़ा हो गया
नेपाल में मधेशियों की संख्या सवा करोड़ से अधिक है और इनकी बोली मैथिली है. ये हिंदी और नेपाली भी बोलते हैं. भारत के साथ इनका हजारों साल पुराना रोटी-बेटी का संबंध है. लेकिन इनमें से 56 लाख लोगों को अब तक नेपाल की नागरिकता नहीं मिल पाई है. जिन्हें नागरिकता मिली भी है, उन्हें ना तो सरकारी नौकरी में स्थान मिलता है और ना ही संपत्ति में. कुछ सालों पहले नेपाल में अधिकारों की मांग को लेकर मधेशी आंदोलन शुरू हुआ.
नेपाल में पहाड़ी इलाकों में सात-आठ हजार की आबादी पर एक सांसद है लेकिन तराई में सत्तर से एक लाख की आबादी पर एक सांसद. इसी दौरान नेपाली संसद में नेपाल को संघीय देश बनाने और सात राज्यों में बांटने को लेकर एक मसौदा पेश किया गया. इस प्रस्ताव को मधेशी विरोधी बताते हुए मधेशियों ने नेपाल में एक अलग मधेशी राज्य की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया. पुलिस और मधेशियों के बीच टकराव हुए, कई लोगों की जान गई. इसी दौरान चक्काबंदी हो गई. नेपाल की अर्थव्यवस्था को तीन महीने जबर्दस्त नुकसान हुआ. देश में तेल सहित अन्य सामानों की भारी कमी हो गई.
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नेपाल सरकार ने इस पूरे आंदोलन का ठीकरा भारत पर फोड़ दिया जिस पर भारत ने नाराजगी जताई. घटनाक्रम के दौरान नेपाल सरकार ने कहा कि भारत नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है, जिसके उसको परिणाम भुगतने पड़ेंगे.
2 चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ योजना में शामिल हुआ नेपाल
चीन अपने कारोबार को भारत सहित अन्य पड़ौसी देशों में फैलाने की योजनाओं पर काम कर रहा था. उसने वन बेल्ट वन रोड योजना शुरू की. इसमें भारत, श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल और पाकिस्तान के बीच एक कारोबारी सड़क और रेलमार्ग प्रस्तावित था. भारत ने अपने आपको चीन की इस योजना से अलग रखा लेकिन पाकिस्तान के बाद नेपाल इस योजना में शामिल हो गया. भारत की ओर से कूटनीतिक प्रयास किए गए कि नेपाल इस योजना का हिस्सा न बने, लेकिन बात बनी नहीं. इस योजना के बाद चीन का नेपाल के आर्थिक गलियारे में प्रवेश हो गया और उसकी भारत के प्रति नेपाल की निर्भरता भी कम होती गई. भारत को इस काॅरिडोर से इसलिए भी आपत्ति थी कि यह पाकिस्तानी कब्जे वाली पीओके की सीमा से होकर गुजरना था.
3 नेपाल-चीन का संयुक्त सैन्य अभ्यास बना भारत के लिए चिंता
नेपाल में आयोजित बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकनॉमिक कोऑपरेशन) सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे. इससे सम्मेलन में बिम्सटेक देशों का पुणे में एक संयुक्त सैन्य अभ्यास होना तय हुआ था लेकिन सम्मेलन के बाद नेपाल ने इस सैन्य अभ्यास में शामिल होने से मना कर दिया लेकिन कुछ ही दिनों बाद चीन के साथ सैन्य अभ्यास करने की घोषणा कर दी. यह भारत के लिए यह चिंता बढ़ाने वाली बात थी.
4 नेपाल में तेजी से पैर पसार रहा है चीन
नेपाल पर भारत का प्रभाव दशकों से रहा है. दोनों देशों के बीच खुली सीमा है और छोटे-बड़े भाई जैसे रिश्ते हैं, साथ ही बेशुमार व्यापार है, एक धर्म है और रीति रिवाज भी एक जैसे हैं. दोनों देशों के बीच बिगड़ते संबंधों को लेकर जब बात होती है तो चीन का जिक्र जरूरी रूप से होता है. चीन ने हाल के वर्षों में नेपाल में भारी निवेश किया है. नेपाल में कई प्रोजेक्टों पर चीन काम कर रहा है जिनमें बुनियादी ढांचों सी जुड़ी परियोजनाएं सबसे ज्यादा हैं. चीन यहां एयरपोर्ट, रोड, हॉस्पिटल, कॉलेज, मॉल्स इत्यादि बना रहा है, साथ ही एक रेलवे लाइन पर भी काम कर रहा है जो लगभग पूरी हो चुकी है.
5 भारत के तुरंत बाद नेपाल ने जारी किया नया नक्शा
भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख और कालापानी को लेकर विवाद पुराने समय से चल रहा है. 1962 में चीन से भारत का युद्ध हुआ था. लौटते समय वहां के शाही परिवार ने भारतीय सेनाओं को कालापानी में रूकने के लिए स्थान दिया था. यह स्थान भारत के लिए समारिक दृृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. यहां भारत ने स्थाई रूप से सेना चैक पोस्ट स्थापित कर रखा है. नेपाल में लोकतांत्रिक सरकार बनने और चीन से नजदीयां बन जाने के बाद से नेपाल यहां से सेना चैक पोस्ट पीछे ले जाने का दबाव बना रहा है.
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दोनों के बीच चल रहे इस सीमा विवाद के बीच भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर को नए राज्य घोषित करते हुए नया नक्शा जारी कर दिया. इस नक्शे लिपुलेख और कालापानी को भारत का हिस्सा बताया गया. इस पर नेपाल की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई. अभी दो दिन पहले नेपाल की संसद ने नया नक्शा घोषित करते हुए लिपुलेख और कालापानी के स्थान को नेपाल का हिस्सा बताया है. रही सही कसर इसी क्षेत्र में भारत की ओर से सामरिक दृष्टि से बनाई गई 88 किलोमीटर की सड़क का उदघाटन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ओर से पूरी कर दी गई, जिसके बाद नेपाल ने भारत को सैनिक कार्रवाई की चेतावनी दे डाली.
क्या भारत नेपाल संबंधों में सुधार आ पाएगा?
2015 के बाद से लगातार भारत और नेपाल के संबंधों में आ रही गिरावट में क्या कोई सुधार आ पाएगा? क्या भारत के लिए नेपाल भी पाकिस्तान की तरह आने वाले समय में कोई दुश्मन देश बन जाएगा? क्या भारत और नेपाल जल्दी ही अपने सीमा विवादों को समाप्त कर लेंगे? ऐसे ही कई सवाल इस समय मुंह उठाए खड़े हैं. जानकारों का मानना है कि भारत के लिए नेपाल से अच्छे रिश्ते होने कई कारणों से बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए भारत नेपाल के प्रति फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहा है. इसमें एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि चीन कभी नहीं चाहेगा कि भारत और नेपाल के रिश्ते अच्छे हों क्योंकि कालापानी और लिपुलेख जैसे विवादित स्थानों पर तीनों देशों की सीमाएं मिलती है. ऐसे में नेपाल को व्यापारिक केंद्र बनाने के साथ-साथ चीन इन स्थानों को भारत के खिलाफ समारिक क्षेत्र भी बनाना चाहता है.