राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने इस बार लोकसभा चुनाव में न उतरकर एक तरह से राजनीति से संन्यास ले लिया है. कयास यही लगाए जा रहे हैं कि अक्टूबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों के बाद शरद पवार किसी न किसी को एनसीपी की विरासत सौंप पार्टी के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका का निर्वाह करेंगे. ठीक वैसे ही जैसा समाजवादी पार्टी के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव ने किया था. एनसीपी की विरासत किसी पवार सदस्य को ही मिलेगी, यह तो पक्का है लेकिन किसे, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है.
वैसे इस विरासत को संभालने के लिए दो नाम सबसे आगे चल रहे हैं. पहले हैं पार्थ पवार जो शरद पवार के भाई अनंतराव के बेटे अजित पवार के सुपुत्र हैं. अजित महाराष्ट्र में राजनेता के रूप में उभरने में सफल रहे और वह एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने. अब तक एनसीपी के उत्तराधिकारी के तौर पर उनका नाम ही सबसे आगे चल रहा है. वहीं दूसरा नाम है रोहित पवार जो शदर पवार के सबसे बड़े भाई दिनकरराव गोविंदराव पवार ऊर्फ अप्पा साहेब के पोते हैं जिनकी पॉपुलर्टी दिनों दिन बढ़ती जा रही है.
हालांकि शरद पवार की सुपुत्री सुप्रिया सुले भी राजनीति में सक्रिय हैं और लगातार तीन बार से महाराष्ट्र की बारामती से पार्टी से सांसद बनती आ रही हैं लेकिन उनका नाम इस लिस्ट में नहीं है. वजह रही कि सुप्रिया अब तक केवल दिल्ली की राजनीति में ही व्यस्त रहीं. पार्टी के आंतरिक मामलों में उन्होंने न कभी ध्यान दिया और न ही हस्तक्षेप किया. ऐसे में उनके पार्टी को संभालने की संभावनाएं एकदम नगण्य है.
बात करें पार्थ पवार की तो मौजूदा चुनावों में पार्थ करीब दो लाख वोटों से मावल लोकसभा सीट से चुनाव हार बैठे. यहां से शिवसेना के श्रीरंग बार्ने ने जीत हासिल की. हालांकि पार्थ दूसरे नंबर पर रहे लेकिन वीआईपी सीट से हार पार्थ अपने परिवार में चुनाव हारने वाले पहले उम्मीदवार बन गए. पार्थ के पिता अजित पवार भी उन्हें विरासत संभालने का सपोर्ट कर रहे हैं. हालांकि रोहित के आने से पहले पार्थ ही एनसीपी की विरासत के असली दावेदार रहे.
यह भी पढ़ें: कर्नाटक और गोवा के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी का ‘ऑपरेशन लोट्स’
शरद पवार के सबसे बड़े भाई दिनकरराव गोविंदराव पवार ऊर्फ अप्पा साहेब पवार के सुपुत्र हैं रोहित पवार. अप्पा साहेब पवार फैमेली से राजनीति में उतरने वाले पहले सदस्य थे. अप्पा साहेब ने महाराष्ट्र में किसानों और मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले बड़े नेता के तौर पर अपनी राजनीतिक पहचान बनाई. अप्पा साहेब ही शरद पवार को राजनीति में लाए और कांग्रेस से जुड़ने के लिए राजी किया. 1999 में सोनिया गांधी से टकराव के बाद शरद पवार को कांग्रेस से निकाला गया. उसके बाद शरद पवार ने खुद की नेशनल कांग्रेस पार्टी बनाई. इसके बाद महाराष्ट्र में राजनीति की हवा बदलने लगी और पवार परिवार का दबदबा कायम हुआ. अब उनकी पार्टी का भविष्य रोहित के युवा कंधों पर भी है.
रोहित राजनीति में अभी तक बड़े स्तर पर नहीं जा पाए हैं. 2017 में रोहित ने पवार परिवार के बारामती के होम टाउन से जिला परिषद का चुनाव जीता था. तब से वह खामोशी के साथ राज्य में अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं. जहां एक ओर पार्थ सार्वजनिक तौर पर उपस्थित नहीं रहते, वहीं रोहित बड़े आत्मविश्वास के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. यहीं वजह है कि राकांपा में कई पार्टी कार्यकर्ता और नेता उन्हें शरद पवार के बाद वास्तविक जननेता के रूप में देखते हैं. कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि अप्पा साहेब शरद पवार को राजनीति में लेकर आए थे. ऐसे में रोहित को इस राजनीतिक परिवार की जिम्मेदारी को आगे ले जाना चाहिए.
अब यहां दो विकल्प होंगे, उनमें टकराव होना निश्चित है. वैसे तो पार्थ और रोहित चचेरे भाई हैं लेकिन दोनों में आंतरिक गतिरोध भी है. जब शरद पवार ने अपनी लोकसभा सीट पार्थ के लिए छोड़ने और चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था तब रोहित ने सार्वजनिक तौर पर फेसबुक पोस्ट कर शरद पवार को अपने फैसले पर पुर्नविचार करने की सलाह दी थी. पार्थ ने इस बात पर ऐतराज भी जताया था.
शरद पवार ने अपने सुपुत्री सहित अपने भाई अनंतराव के बेटे अजित पवार को राजनीति में प्रमोट किया. अजित राजनीति में सफल रहे और महाराष्ट्र में राजनेता के तौर पर अपनी अच्छी छवि कायम की. वह एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने. अब उन्होंने पार्थ और रोहित को तीसरी पीढ़ी के तौर पर आगे बढ़ाने का काम किया है.
बड़ी खबर: शिव सेना और बीजेपी एक दूसरे के खिलाफ लड़ेंगी विधानसभा चुनाव!
सूत्रों के अनुसार, पार्थ को मावल लोकसभा सीट से हारने का बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि आगामी विधानसभा में उनका चुनाव लड़ना पक्का है. वहीं रोहित अपनी छवि मजबूत करने के लिए एक कठिन सीट चुन सकते हैं. इसके उन्हें तीन फायदे होंगे. पहला तो ये कि उन्हें अपनी हैसियत का पता लग जाएगा. वहीं पारिवारिक विरासत के सहारे सफल होने का ठप्पा लगवाने से भी बच जाएंगे.
अगर रोहित चुनाव हारते भी हैं तो भी पार्टी कार्यकर्ता उनसे सहानुभूति रखेंगे और यही सोचेंगे कि अजित पवार और उनके चचेरे भाई पार्थ ने उन्हें सफल नहीं होने दिया. हालांकि रोहित का कहना है कि पार्टी के नेता कभी राजनीतिक वारिस तय नहीं करते. यह जनता तय करती है. कुल मिलाकर रोहित हर मामले में पार्थ से रेस में आगे दिख रहे हैं. दूसरी ओर, दोनों भाई परिवार और स्वयं के बीच भी किसी तरह के विवाद से साफ तौर पर इनकार करते हैं.