देश में लोकसभा चुनाव के नतीजों में नरेंद्र मोदी की सुनामी देखने को मिली जिसमें कांग्रेस पूरी तरह धाराशायी हो गई. कई राज्यों में तो उसके हालात 2014 से भी बुरे थे. कांग्रेस का 18 राज्यों में खाता तक नहीं खुला. हार के इन नतीजों की समीक्षा की जाए तो कांग्रेस को मिली करारी हार का सबसे बड़ा कारण राज्यों की कांग्रेस लीडरशिप में चल रही जबरदस्त गुटबाजी है. हमारे इस खास आर्टिकल में विभिन्न राज्यों की गुटबाजी के बारे में विस्तृत रुप से बता रहे हैं…
हरियाणाः कांग्रेस गुटबाजी का सबसे बड़ा नमुना देखना है तो हरियाणा होकर आइए. यहां कांग्रेस के भीतर कई धड़े सक्रिय मिलेंगे जो परोक्ष रुप से बीजेपी के पक्ष में कार्य करते हुए नजर आए. इस राज्य में कांग्रेस के भीतर खींचतान काफी लंबे समय से है लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कभी इस अस्थिरता को थामने की कोशिश नहीं की. प्रदेश कांग्रेस के भीतर 2 धड़े पूर्ण रुप से सक्रिय हैं जिन्होंने चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया है.
तंवर गुटः इस गुट की कमान हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अशोक तंवर के हाथ में है. हालांकि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद से ही हरियाणा में कांग्रेस गर्त की ओर है. राहुल गांधी की तरफ से अशोक तंवर को अध्यक्ष बनाने के तुरंत बाद ही विधायकों ने उनका विरोध शुरु कर दिया था. कई बार राहुल गांधी को विधायकों ने तंवर को हटाने की गुहार की लेकिन राहुल ने उनकी मांग को हर बार अनसुना किया. तंवर के साथ उनके कार्यकाल के दौरान एक भी विधायक उनके साथ खड़ा नजर नहीं आया. यही हरियाणा में कांग्रेस को मिली करारी हार का कारण रहा.
हुड्डा गुटः हरियाणा कांग्रेस के चेहरों में आज भी अगर कोई बीजेपी से चुनौती दे सकता है तो वो है भूपेन्द्र सिंह हुड्डा. उनकी संगठन पर पकड़ आज भी पहले की तरह ही मजबूत है. पार्टी के 90 फीसदी से भी ज्यादा विधायक भूपेन्द्र हुड्डा के एक इशारे पर लाइन में कदमताल करते नजर आते हैं. लेकिन संगठन पर उनकी इस जबरदस्त पकड़ को राहुल गांधी पिछले पांच साल में भांप ही नहीं पाए.
विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों की तरफ से कई बार भूपेन्द्र हुड्डा को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग की गई लेकिन उनकी मांग को हर बार दरकिनार किया गया. लोकसभा चुनाव में मिली हार का एक बड़ा कारण भूपेन्द्र हुड्डा को नजरअंदाज कराना भी रहा. तंवर और हुड्डा के अलावा हरियाणा कांग्रेस में किरण चौधरी, कुलदीप विश्नोई, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेताओं के भी धड़े सक्रिय हैं जो बीजेपी से मुकाबला कम और कांग्रेस का नुकसान करने के ज्यादा प्रयास करते हैं.
राजस्थानः राजस्थान में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत मिलने की आशंका थी. लेकिन कांग्रेस को जीत मिली सिर्फ 100 सीटों पर यानि बहुमत से भी एक सीट कम. कांग्रेस के पक्ष में जबरदस्त माहौल होने के बावजूद कांग्रेस का 100 सीटों पर सिमटना आलाकमान के लिए चिंताजनक था. कारण तलाशे गए तो सामने निकलकर आया कि गुटबाजी के कारण टिकट वितरण में काफी गलतियां हुई जिससे कई स्थानों पर पार्टी प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा.
विधानसभा चुनाव के बाद सरकार के गठन में राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों को साधते हुए गहलोत को मुख्यमंत्री और पायलट को उप-मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन लोकसभा चुनाव में भी विधानसभा चुनाव की तरह ही गुटबाजी के कारण टिकट वितरण में भारी गलतियां की गई. जिससे अनेक लोकसभा क्षेत्रों में तो कांग्रेस चुनाव लड़ने से पहले ही हार गई. ये टिकट इसलिए गलत बांटे गए ताकि अपने चहेते व्यक्ति को टिकट मिल सके. इन नेताओं को टिकट वितरण के दौरान जिताऊ चेहरों से कोई सरोकार नहीं रहा.
उत्तराखंड़ः इस पहाड़ी क्षेत्र में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश संगठन के अंदर गुटबाजी अपने चरम पर है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रीतम सिंह के बीच कोई सामंजस्य नहीं है. दोनों अधिकतम समय एक-दूसरे को कमजोर करने के प्रयास में दिखाई देते हैं. लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला. पार्टी को राज्य की पांचों सीटों पर बड़ी पराजय नसीब हुई.
उधमपुर लोकसभा क्षेत्र से हरीश रावत चुनाव लड़े. उनका सामना बीजेपी के अजय भट्ट से था. पार्टी की आंतरिक गुटबाजी का नुकसान हरीश रावत को चुनाव में हुआ और वो भारी अंतर से अजय भट्ट के सामने चुनाव हारे. टिहरी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने चुनाव लड़ा. यह इलाका हरीश रावत के प्रभाव क्षेत्र वाला माना जाता है. हरीश रावत यह कभी नहीं चाहते थे कि प्रीतम सिंह चुनाव जीते. उन्होंने और उनके कार्यकर्ताओं ने प्रीतम सिंह की जमकर कारसेवा की. नतीजा रहा कि प्रीतम सिंह भारी मतों से चुनाव हारे.
हिमाचलः हिमाचल कांग्रेस के भीतर गुटबाजी की खबर अकसर अखबारों में देखने को मिलती है. चाहे अदावत सुखविंद्र सिंह और वीरभद्र सिंह के मध्य हो या पूर्व मंत्री जीएस बाली और वीरभद्र के बीच. नुकसान संगठन का ही हुआ है. इस गुटबाजी ने कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में भी नुकसान पहुंचाया था. लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस पूरी तरह गुटों में बंटी हुई नजर आई. नेता कांग्रेस प्रत्याशियों को जिताने के लिए नहीं बल्कि हराने के लिए मेहनत करते दिखे. परिणाम यह रहा कि कांग्रेस का प्रदेश से सूपड़ा साफ हो गया. हिमाचल में पार्टी के हालात इतने बुरे रहे कि सभी प्रत्याशी 3.50 लाख से अधिक मतों से चुनाव हारे.
मध्यप्रदेशः मध्यप्रदेश में कांग्रेस की लुटिया कांग्रेस संगठन में फैली भयंकर गुटबाजी ने डुबोई. यहां कांग्रेस मुख्यतः तीन गुट में विभाजित है. पहला मुख्यमंत्री कमलनाथ धड़ा, दूसरा गुट राहुल गांधी के करीबी और पश्चिमी यूपी के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया. तीसरे धड़े के मुखिया का हाथ तो कांग्रेस की लुटिया डुबोने में अहम है. उन महाशय का नाम है दिग्विजय सिंह. गुटबाजी के कारण कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार होना तो दूर, 2014 की तुलना से भी खराब हो गया.
दिग्विजय सिंह भोपाल संसदीय क्षेत्र से साध्वी प्रज्ञा के सामने बुरी तरह चुनाव हारे. हालात कुछ ऐसे रहे कि जो सीट पार्टी पिछली बार में जीतने में कामयाब रही थी, इस बार हाथ से फिसल गई. गुना लोकसभा क्षेत्र से पार्टी के दिग्गज़ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा.