राजस्थान में बसपा के विधायकों का 27 मई को राज्यपाल कल्याण सिंह से मुलाकात का कार्यक्रम तय था. लेकिन बाद में विधायकों ने इस मुलाकात को टाल दिया. कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है. लेकिन इस मुलाकात के पीछे के कारण सत्ता के गलियारों में तलाशें जा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार, खबर आ रही है कि बसपा के सभी विधायकों को कांग्रेस अपने दल में शामिल कराने का प्रयास कर रही है.

वैसे बसपा विधायकों ने राजस्थान में कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रखा है और सरकार की स्थिति मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार की तरह किनारे पर भी नहीं है. लेकिन प्रदेश संगठन लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद प्रदेश सरकार में अपने आंकड़े दुरस्त करना चाहती है ताकि भविष्य में किसी भी तरह के संकट का सामना नहीं करना पड़े.

2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत से कुछ फासले पर रह गई थी. उसे 96 सीटों पर ही जीत मिली थी. बहुमत के लिए उसे पांच विधायकों की दरकार थी. शुरुआत में निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार चलाई गई लेकिन निर्दलीय विधायकों के सरगना बीजेपी के बागी नेता किरोड़ी लाल मीणा सरकार के कामकाज में ज्यादा हस्तक्षेप करने लगे थे.

ऐसे में अशोक गहलोत ने सरकार की स्थिति मजबूत करने के लिए बड़ा दांव चला. उन्होंने बसपा के टिकट पर जीते 6 विधायकों को पार्टी में लाने के प्रयास शुरु किए. गहलोत के इस मिशन में उनका साथ दिया तत्कालीन टोंक-सवाईमाधोपुर सांसद नमोनारायण मीणा ने.

अशोक गहलोत और नमोनारायण मीणा की मुहिम रंग लाई और बसपा के सभी 6 विधायकों ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली. अशोक गहलोत ने सभी विधायकों को प्रदेश सरकार में अहम पद दिए. 2008 में जिन विधायकों ने बसपा से कांग्रेस की सदस्यता ली थी, उनमें नवलगढ़ विधायक राजकुमार शर्मा, दौसा विधायक मुरारीलाल मीणा, बाड़ी विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा, सपोटरा विधायक रमेश मीणा, उदयपुरवाटी विधायक राजेन्द्र सिंह गुढा और गंगापुर विधायक रामकेश मीणा शामिल थे. बसपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के बाद सरकार में कांग्रेस विधायकों का आंकड़ा 96 से बढ़कर 102 हो गया. इसका नतीजा यह रहा कि सरकार पूरे पांच साल बिना किसी दबाव के चली.

अब कांग्रेस एक बार फिर 2008 की मुहिम को दोहराने के प्रयास कर रही है. देखा जाए तो कांग्रेस को कामयाबी मिलने की संभावना भी दिख रही है. क्योंकि इस बार जीते कई बसपा विधायक चुनाव में कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे. टिकट न मिलने की स्थिति में वो बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े.

बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव में 6 विधायकों को जीत हासिल हुई थी जिनमें उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा, नगर से वाजिब अली, तिजारा से संदीप यादव, नदबई से जोगिंदर सिंह अवाना, करौली-धोलपुर से लाखन सिंह गुर्जर और किशनगढ़ बास से दीपचंद खैरिया शामिल हैं.

राजेंद्र गुढ़ा 2008 की गहलोत सरकार में मंत्री रह चुके हैं. वहीं किशनगढ़ विधायक दीपचंद खैरिया 2008 और 2013 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. इस बार उनका टिकट काट पार्टी ने कर्ण सिंह यादव पर दांव खेला था.

इन सभी विधायकों में से सिर्फ तिजारा विधायक संदीप यादव ही बीजेपी की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं. वो वसुंधरा सरकार में युवा बोर्ड के उपाध्यक्ष रह चुके हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी से तिजारा विधानसभा से प्रत्याशी बनाने की मांग की थी लेकिन पार्टी ने यहां से संदीप दायमा को प्रत्याशी बनाया. इसके बाद संदीप यादव ने बागी होकर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते.

बसपा विधायकों के कांग्रेस के संपर्क में होने की सूचना के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के सभी 6 विधायकों को दिल्ली तलब किया है. मायावती 2008 में कांग्रेस से धोखा खा चुकी है इसलिए वो इस बार कोई चूक नहीं करना चाहती है. बसपा के विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराना कांग्रेस के लिए इसलिए भी जरुरी है क्योंकि अगर बसपा राजस्थान में ज्यादा पांव पसारेगी, तो इसका सीधा-सीधा नुकसान कांग्रेस को ही होगा. इसकी सीधी सी वजह है कि प्रदेश में बसपा और कांग्रेस का कोर वोटर एक ही है.

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