महाराष्ट्र की राजनीति पिछले कुछ सालों में किस करवट बैठे या यूं कहें कि बैठ रही है, सोच से भी परे है. इस बार आम चुनावों में 24 सीटों का नुकसान छेल चुकी एनडीए में एक बार फिर उठा-पटक होने के संकेत मिल रहे हैं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी में करीब 20 से 25 विधायकों, सांसदों की वापसी होने की संभावना प्रबल नजर आ रही है. शिंदे गुट के दो सांसदों से इसके संकेत भी दिए हैं. इसकी वजह लोकसभा चुनाव के परिणाम हैं. एकनाथ शिंदे और अजित पवार के खेमे में आधे से अधिक उम्मीदवारों को आम चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है.
वहीं शरद पवार के खेमे से परिणाम उम्मीद से बढ़कर आ आया है. ऐसे में आगामी एक दो महीनों में पुरानी पार्टियों में विधायक-सांसदों की वापसी संभव है. ऐसे में एकनाथ शिंदे और अजित पवार गुट में बैचेनी बढ़ने लगी है.
कैबिनेट पद नहीं मिलने से शिवसेना-NCP सांसद नाराज
मोदी 3.0 सरकार में बनी नयी कैबिनेट में एकनाथ शिंदे गुट के केवल एक सदस्य को शामिल किया गया है. इससे शिंदे गुट नाराज है. शिंदे गुट के दो सांसदों ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी भी जताई है. शिंदे गुट के सांसद श्रीरंग बारणे ने कहा कि हम कैबिेनेट में जगह की उम्मीद कर रहे थे. चिराग की लोजपा के 5 सांसद हैं और उन्हें एक कैबिनेट मंत्रालय मिला. 7 लोकसभा सीट मिलने के बावजूद हमको सिर्फ एक राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभाव) क्यों मिला. कम से कम शिवसेना को कैबिनेट में पद मिलना चाहिए था. शिंदे सरकार मंत्री अब्दुल सत्तार ने भी नाराजगी के संकेत दिए हैं.
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एनसीपी के मंत्री छगन भुजबल ने मोदी कैबिनेट में जगह न मिलने से नाराजगी जाहिर की है. अजित पवार की ओर से 4 प्रत्याशियों ने आम चुनाव लड़ा था जिसमें से केवल एक सीट जीतने में पार्टी सफल हुई है. वहीं एकनाथ शिंदे के पुत्र और कल्याण से सांसद ने बचाव करते हुए कहा कि हमने स्पष्ट कर दिया है कि हम सरकार को बिना शर्त समर्थन दे रहे हैं. सत्ता के लिए कोई सौदेबाजी या बातचीत नहीं होती है. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि नेक काम को आगे बढ़ाएं. पार्टी के सभी सांसद एनडीए के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं.
शरद-उद्धव को मिला सहानुभूति का फायदा
पार्टी में टूट के बाद इस आम चुनावों में उद्धव ठाकरे और शरद पवार को जनता की सहानुभूति का फायदा मिला है. लोकसभा के नतीजों को देखें तो 288 विधानसभा क्षेत्रों में 150 से अधिक सीटों पर इंडिया गठबंधन का वोट शेयर अधिक रहा. शरद पवार ने अजित पवार के 30 विधायकों को टार्गेट करते हुए उनके खिलाफ मजबूत उम्मीदवार तय किए. पार्टी में अनदेखी के चलते कुछ विधायक फिर से शरद पवार के पास वापस लौटना चाहते हैं. एनसीपी की बैठक में 5 विधायकों ने गैरहाजिर रहते हुए इसके स्पष्ट संकेत भी दे दिए हैं. इससे अजित गुट में बैचेनी बढ़ती जा रही है.
विधानसभा सीटों की शेयरिंग को लेकर विवाद
महाराष्ट्र में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हैं और इसमें केवल 4 माह का वक्त शेष है. राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी का 170 से 180 सीटों पर चुनाव लड़ना निश्चित है. बहुमत के लिए 145 का मैजिक नंबर चाहिए. ऐसे में शिंदे और अजित 50-50 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कभी नहीं मानेंगे. इन पार्टियों का अलग अलग चुनाव लड़ना भी सुरक्षित नहीं है. अजित पवार की गुडविल पार्टी से अलग होने के बाद जनता के बीच घटी है. ऐसे में दोनों पार्टियों और बीजेपी के बीच सीट शेयरिंग को लेकर विवाद निश्चित है. पाला बदलने वाले विधायक भी तुरंत पार्टी नहीं बदलेंगे. विधानसभा चुनाव करीब आते देख वे पहले सत्ता में रहकर फंड लेंगे और मौका देखकर पाला बदल लेंगे.
शिवसेना और एनसीपी ने तोड़ी पार्टियां
2019 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी और शिवसेना ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने शिवसेना को तोड़कर सरकार बना ली. अब शिवसेना के 56 में से 42 विधायक शिंदे और 14 विधायक ठाकरे गुट के हैं. इसी तरह से एनसीपी के 54 में से 40 अजित और 14 विधायक शरद पवार गुट के हैं. एनसीपी तोड़ने के बाद अजित पवार की स्थिति काफी कमजोर नजर आ रही है. ऐसे में उनके पास लौटने के अलावा कोई रास्ता शेष नहीं है.