Politalks.News/Kejariwal. क्या राजनीति में विचारधारा खत्म हो रही है? क्या अब केवल मौकापरस्ती की राजनीति बची है देश में? दल बदलने की नई परिपाटी जो पिछले दशक में शुरू हुई है उसके हिसाब से अब विचारधारा का मोल नहीं रह गया है. कभी कांग्रेसी दिग्गज रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) का कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ कमल थामना भारतीय राजनीति में बहुत बड़ा उलटफेर माना जाता है. चुनाव जीतकर पार्टी बदलने पर अब नैतिकता पर सवाल नहीं उठाए जाते हैं. इससे पहले देश के राजनीतिक इतिहास में अनेक पार्टियां ऐसी हुई हैं, जो बनती और बिखरती रही हैं. पार्टियों के टूटने का इतिहास भी बहुत व्यापक है.हाल फिलहाल में जो पार्टी टूट को लेकर सबसे ज्यादा आंशकित है वो है आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party). अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को पार्टी टूटने की डर इस प्रकार सता रहा है कि वो जहां जा रहे हैं अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को कसमें खिला रहे हैं.
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पिछले दिनों चंडीगढ़ गए, जहां चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव में उनकी पार्टी आप के 14 पार्षद जीते हैं तो केजरीवाल ने उनकी विजय यात्रा निकाली और सभी पार्षदों को सार्वजनिक रूप से शपथ दिलाई कि वे आम आदमी पार्टी नहीं छोड़ेंगे. इसी तरह जब केजरीवाल गोवा गए तो वहां भी उन्होंने उन लोगों को शपथ दिलाई, जिनको पार्टी की टिकट दी जा रही है. आम आदमी पार्टी की टिकट लेने वालों को एक हलफनामा देना पड़ रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि वे जीतने के बाद पार्टी नहीं छोड़ेंगे.
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सियासी गलियारों में इस घटना को लेकर कई चर्चाएं हो रही हैं. जानकारों का मानना है कि यह राजनीति में विचारधारा के खत्म होने की सबसे बडी मिसाल मानी जाएगी. केजरीवाल की इस चिंता को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या मात्र शपथ दिलाने से पार्षद या विधायक प्रत्याशी उनकी बात मान जाएंगे?
वहीं चर्चाएं ये भी है कि दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी को टूट का खतरा नहीं है. दिल्ली में पार्टी का संगठन जमीन स्तर पर पक्का है. लेकिन पंजाब और गोवा में पार्टी नई नहीं है तो पुरानी भी नहीं है. आम आदमी पार्टी से जुड़े नेता या तो कांग्रेस के हैं या भाजपा से जुड़े. अब बात कि जाए कि केजरीवाल को आखिर क्या जरुरत पड़ रही है को कसमें खिलवा रहे हैं. आप के सूत्रों का कहना है कि भाजपा उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही है. पंजाब में भाजपा का जमीन तैयार करने के लिए पुरानी सिपहसालारों की जरुरत है तो गोवा में पार्टी को फिर से सरकार बनाने के लिए कुनबा बढ़ाना है.
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एक तरफ आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो की चिंता है. बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को टूट को लेकर ज्यादा चिंता नहीं रही है. बसपा की एक समय ऐसी स्थिति थी कि हर चुनाव में कांशीराम और मायावती विधायक, सांसद जिताते थे और वे टूट कर दूसरी पार्टियों में चले जाते थे. लेकिन तब भी कांशीराम और मायावती ने वैसी चिंता नहीं की, जैसी पार्टी टूटने की चिंता केजरीवाल को हो रही है. कांग्रेस तो रोज टूट रही है, उसके लोग पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं, लेकिन पार्टी के नेता विधायकों, सांसदों, पार्षदों आदि को पार्टी नहीं छोड़ने की शपथ नहीं दिला रहे हैं.