Maharashtra Politics: कुछ से कुछ सालों पहले एक फिल्म आयी थी जिसके बाद उनका क्लाइमेक्स सालों तक दर्शकों के दिलों-दिमाग पर छाया रहा. हर किसी की ज़ुबान पर था एक ही सवाल ‘आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा’? अब महाराष्ट्र की सियासी रंगमंच पर यही कहानी फिर से रची जा रही है. यहां कटप्पा की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार. दोनों ने ही अपने अपने स्वार्थ और कुर्सी के लिए अपने अपने राजा के पीठ में छुरा घोंप दिया. भले ही दोनों ने अपने अपने आप को निर्दोष बताते हुए सारा का सारा दोष शरद पवार और उद्धव ठाकरे पर डाल दिया लेकिन सच तो आखिर सच है कि किस तरह एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अजित पवार पर और उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे पर आंख मूंदकर भरोसा किया, उन्हें अपनी अपनी सेना का सेनापति बनाया और किस तरह से दोनों ने अपने स्वार्थ के लिए अपने ही आकांओं के साथ गद्दारी की.
महाराष्ट्र की दशकों पुरानी राजनीति में इस तरह की सियासत शायद अब से पहले देखी नहीं गई थी. प्रदेश तो छोड़िए, देश की राजनीति में भी इस तरह की घटिया राजनीति कम ही देखी गई है. बिहार में नीतीश कुमार के साथ ऐसा कई बार देखा जा चुका है लेकिन उन्होंने साथ छोड़ पूरी पार्टी को अलग कर लिया, न कि किसी अन्य की पार्टी में घुसपैठ की. शरद पवार एक समय पर कांग्रेस में सबसे बड़े कद के नेता माने जाते थे और राजीव गांधी के निधन के बाद प्रधानमंत्री बनने के सबसे बड़े दावेदार थे लेकिन सोनिया गांधी की खिलाफत न करने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और महाराष्ट्र की राजनीति पर ध्यान देते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया.
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हालांकि शरद पवार ने कांग्रेस के साथ गद्दारी नहीं की और न ही महाराष्ट्र में मौजूद कांग्रेस के विधायकों या सांसदों के साथ मिलकर कोई खेल किया. उन्होंने अपने दम पर नई पार्टी खड़ी की और बाद में महाराष्ट्र में एक दशक से अधिक समय तक कांग्रेस के साथ गठनबंधन में सरकार चलाई. ऐसा ही कुछ शिवसेना के साथ भी घटा था जब बाला साहेब ठाकरे ने अपनी एवं पार्टी की विरासत राज ठाकरे की जगह अपने बेटे उद्धव ठाकरे के हाथों में सौंप दी. उद्धव ठाकरे में राजनीति का वो अनुभव कभी नहीं था जो राज ठाकरे और बाला साहेब ठाकरे में रहा. उन्होंने हमेशा राजनीति पर्दे के पीछे से अपने सिपेहसालारों के भरोसे खेली. एकनाथ शिंदे उनमें से एक थे.
जब 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी और शिवसेना में ठनी, तब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर महाविकास अघाड़ी का गठन कर मिली जुली सरकार बनाई. उस समय एकनाथ शिंदे भी मंत्रीमंडल में शामिल थे. उद्धव ठाकरे को सर्व सम्मति से मुख्यमंत्री पद मिला. कुछ महीनों बाद एकनाथ शिंदे ने अचानक से विद्रोह करते हुए 40 से अधिक विधायक एवं कुछ सांसदों को लेकर बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया और रातोंरात खुद मुख्यमंत्री बन बैठे. इतना ही नहीं, पार्टी एवं शिवसेना के चुनावी चिन्ह पर भी हक जमा लिया. इन विधायकों के अयोग्य करार दिए जाने का मामला अभी भी अदालत में विचारधीन है.
कुछ ऐसा ही खेल अजित पवार ने भी अपने चाचा शरद पवार के साथ खेला है. अजित ने बीते रविवार को कुछ विधायकों के साथ बीजेपी के दर पर ढोक लगाई और 8 विधायकों को मंत्री पद देने की शर्त पर खुद डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली. अब शिंदे की तरह उस पार्टी पर हक जमाने की राह तलाश रहे हैं जिसने उन्हें खड़ा किया है. एनसीपी और शरद पवार के बिना अजित कुछ भी नहीं हैं. उनकी जो भी पहुंच है, वह केवल महाराष्ट्र तक सीमित है. उसका श्रेय भी शरद पवार को ही जाता है. अजित ने आरोप लगाया है कि शरद पवार 8 दशकों को पार कर चुके हैं और अभी तक पार्टी के सर्वेसर्वा का पद नहीं छोड़ रहे हैं. इधर, 80 की उम्र में भी शरद पवार ने अजित पवार को जोशीली टक्कर देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी के सुप्रीमो आज भी वही हैं और अजित पवार का कद आज भी उनके सामने काफी छोटा है.
खैर, आगामी वक्त में पार्टी पर हक और चुनावी चिन्ह का मामला अदालत में पहुंचना तय है. अजित पवार ने कथित तौर पर 35 विधायकों के साथ पार्टी पर हक जताया है और अध्यक्ष पद बैठे हैं. वहीं शरद पवार ने साफ कहा है कि एनसीपी आज भी उनकी है और वे आज भी पार्टी अध्यक्ष हैं. इन सब कहानियों में बाहुबली और कटप्पा का किरदार एक जैसा है. दोनों के बीच अटूट प्रेम और विश्वास की डोर को अपनों ने ही बेरहमी से काट डाला. अब महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे में लोग भल्लालदेव को तलाश रहे हैं. वैसे ये भूमिका बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने बखूबी निभाई है. बस प्रदेश की सियासत के बीच इस फिल्म का ये डायलॉग एक बार फिर से जनता के बीच कोंध रहा है कि आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा.. ।।