(Karnataka Politics)
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कर्नाटक का मामला अभी भी अधरझूल में है. उम्मीद थी कि गुरुवार को एचडी कुमारस्वामी सरकार का फैसला हो जाएगा, लेकिन नहीं हुआ. राज्यपाल के निर्देश भी धरे रह गए. राज्यपाल वजूभाई वाला ने पहले दोपहर 1.30 बजे तक, फिर शाम 6 बजे बहुमत साबित करने के लिए कहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने सदन की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी. कर्नाटक का विश्वासमत प्रस्ताव टी-20 की बजाय टेस्ट मैच में बदल गया.

गौरतलब है कि कर्नाटक में कुछ बागी विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, जो विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने मंजूर नहीं किया. इस पर 10 बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. बाद में पांच और विधायक उनके साथ शामिल हो गए. मंगलवार को इस मामले की सुनवाई हुई, जिसके अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस अपने बागी विधायकों के लिए व्हिप जारी नहीं कर सकती.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 18 जुलाई को भाजपा विधायक राज्यवाल वजू भाई वाला से मिले. राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार को पत्र लिखकर गुरुवार को ही विधानसभा विश्वासमत हासिल करने की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए. विश्वासमत प्रस्ताव पर दिन भर बहस होती रही. मत विभाजन नहीं हो सका. कार्यवाही अगले दिन के लिए टली तो भाजपा के विधायक सदन में ही रुके रहे. उन्होंने वहीं रात गुजारी. गुरुवार देर शाम राज्यपाल ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को पत्र लिखकर शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे तक बहुमत साबित करने के लिए कहा. राज्यपाल के निर्देश का पालन नहीं हुआ. सदन की बैठक दिनभर चलती रही. शाम को राज्यपाल ने एक बार फिर कुमारस्वामी को पत्र लिखकर शुक्रवार शाम छह बजे तक बहुमत साबित करने के निर्देश दिए.

राज्यपाल के पत्र के विपरीत शाम को छह बजे बाद भी विधानसभा की कार्यवाही चलती रही और बहुमत हासिल करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी. रात 8.25 बजे रमेश कुमार ने सदन की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी. इससे पहले ही विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया ने कह दिया था कि विश्वासमत प्रस्ताव पर बहस सोमवार को जारी रहेगी और यह मंगलवार तक भी चल सकती है. मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा कि वह राज्यपाल का सम्मान करते हैं, लेकिन उनके दूसरे प्रेम पत्र ने उन्हें आहत किया है. उन्होंने कहा कि पहले राज्य में जारी राजनीतिक संकट पर चर्चा होगी, उसके बाद मत विभाजन होगा.

इस बीच सुप्रीम कोर्ट में दो अर्जियां पेश की जा चुकी हैं. एक अर्जी मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने पेश की है, जिसमें बहुमत साबित करने के लिए समय सीमा तय करने के राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी गई है. दूसरी अर्जी कांग्रेस ने पहले से दायर कर रखी है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 17 जुलाई के फैसले के खिलाफ अपील की गई है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को इन दोनों अर्जियों पर सुनवाई हो सकती है. इसके बाद ही विश्वास मत पर कोई फैसला हो सकेगा.

मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा, जब से राज्य में कांग्रेस-जदएस की सरकार बनी है, इसे गिराने के लिए माहौल बनाया जा रहा है. मुझे पहले दिन से पता था कि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी, देखता हूं भाजपा कितने दिन सरकार चला पाएगी? शुक्रवार को विधानसभा में बहस ज्यादातर राज्यपाल के अधिकारों पर केंद्रित रही. इसमें सवाल उठा कि जब मुख्यमंत्री सदन में विश्वास मत प्रस्ताव पेश कर चुके हैं तो इसमें मत विभाजन के लिए समय सीमा तय करने का राज्यपाल को कहां तक अधिकार है? राज्यपाल के दूसरे पत्र पर कुमारस्वामी की प्रतिक्रिया थी कि राज्यपाल विधायिका के जांच अधिकारी के रूप में काम नहीं कर सकते हैं.

राज्य के ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री कृष्णा बायरे गौडा ने कहा कि सदन में विश्वास मत पेश करने के बाद उस पर मत विभाजन के लिए राज्यपाल समय सीमा तय नहीं कर सकते हैं. इस तरह भाजपा की तरफ से राज्यपाल के संवैधानिक पद का दुरुपयोग किया जा रहा है. इस दौरान सत्तारूढ़ दल के विधायकों ने राज्यपाल वापस जाओ के नारे भी लगाए. बहरहाल, विश्वासमत प्रस्ताव पर विधानसभा में दो दिन में 17 घंटे बहस हो चुकी है. सिद्धारमैया का कहना है कि अभी कम से कम 20 विधायक और बहस में भाग लेंगे.

मामला सदन से गैरहाजिर रहने वाले करीब 20 विधायकों का है. अगर वे विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान गैरहाजिर रहते हैं तो उन पर पार्टी व्हिप लागू होगा या नहीं, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा. विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने स्पष्ट किया है कि उन पर विधानसभा की कार्यवाही टालने का आरोप नहीं लगाया जा सकता. वह सुप्रीम कोर्ट, जनता और सदन के सामने स्पष्ट करना चाहते हैं कि किसी भी विधायक ने उन्हें पत्र लिखकर सदन में सुरक्षा की मांग नहीं की है. अगर वे किसी अन्य सदस्य से यह कहते हैं कि वे सुरक्षा नहीं मिलने के कारण सदन से गैरहाजिर हैं, तो वे जनता को गुमराह कर रहे हैं.

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