नागौर संसदीय क्षेत्र हमेशा से कांग्रेस का अभेद किला रहा है. जाट बाहुल्य इस सीट पर नाथूराम मिर्धा ने तीन दशकों तक राज किया है. उन्होंने 5 बार कांग्रेस के टिकट पर एवं एक बार निर्दलीय चुनाव लड़ा और हर बार जीत दर्ज की. हालांकि पिछली बार नागौर सीट बीजेपी से गठबंधन के चलते आरएलपी ने अपने नाम की थी. कांग्रेस की ओर से ज्योति मिर्धा उम्मीदवार रहीं लेकिन जीत हासिल की हनुमान बेनीवाल ने. ये दोनों ही जाट समुदाय से आते हैं और इस बार भी चुनावी दंगल में आमने सामने उतरे हैं लेकिन एक नए अवतार, एक नए रूप में.
इस बार ज्योति मिर्धा ‘कमल’ के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी हैं जबकि हनुमान बेनीवाल की आरएलपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है. कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन के चलते आरएलपी के लिए खाली छोड़ी है. अब देखना ये है कि यहां ज्योति की ज्योत जलती है या फिर बेनीवाल कांग्रेस के लिए हनुमान बनते हैं.
नागौर में बीजेपी की घेराबंदी
जैसाकि पहले बताया है, नागौर कांग्रेस के गढ़ हैं लेकिन कांग्रेस जाट बाहुल्य क्षेत्र में बीजेपी की चहूं ओर से घेराबंदी कर रही है. कांग्रेस ने नागौर सीट पर हनुमान बेनीवाल की आरएलपी से गठबंधन किया है. ऐसे में आरएलपी नागौर में अपना उम्मीदवार खड़ा कर रही है. बीजेपी की ओर से ज्योति मिर्धा यहां से प्रत्याशी हैं. मिर्धा परिवार के प्रभाव को देखते हुए हनुमान बेनीवाल यहां से चुनाव लड़ते दिख रहे हैं. मिर्धा और बेनीवाल की पिछले आम चुनाव में भी टक्कर हो चुकी है. ज्योति मिर्धा कांग्रेस जबकि बेनीवाल बीजेपी के साथ गठबंधन में नागौर से आमने सामने हुए थे. एक तरफा मुकाबले में बेनीवाल ने मिर्धा को हराया था. यहां बीजेपी के मजबूत सहयोग से ज्योति मिर्धा अपनी पिछली हार का बदला लेना चाहेगी, तो बेनीवाल अपने जाट बाहुल्य वोटर्स के चलते ज्योति की ‘ज्योति’ बुझाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाले हैं.
मिर्धा परिवार का है वर्चस्व
इस सीट पर पहले बीजेपी के सीआर चौधरी का कब्जा था. विधानसभा की बात करें तो नागौर जिले की कुल 8 विधानसभा सीटों में से चार कांग्रेस और दो पर बीजेपी जीती है. एक आरएलपी और अन्य निर्दलीय के पास है. जातिगत समीकरण पर गौर करें तो नागौर परंपरागत तौर पर जाट राजनीति का गढ़ माना जाता है. जहां जाट सर्वाधिक संख्या में है. उसके बाद मुस्लिम, राजपूत, एससी और मूल ओबीसी के मतदाता निवास करते हैं. इस सीट पर मिर्धा परिवार का लंबे समय तक वर्चस्व रहा है. नागौर से 6 बार के सांसद रह चुके नाथूराम मिर्धा जाट परिवार से आते हैं और इस समुदाय में मिर्धा परिवार का दबदबा माना जाता है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां मिर्धा परिवार पर दाव खेल चुकी है. मिर्धा खुद बीजेपी की ओर से चौथी बार चुनावी मैदान में उतर रही है.
11 बार कांग्रेस प्रत्याशी हुए हैं विजयी
कई दशकों तक नागौर संसदीय क्षेत्र कांग्रेस की विजय स्थली रहा है. यहां से 11 बार कांग्रेस प्रत्याशी विजयी हो चुके हैं. तीन बार भाजपा प्रत्याशियों को जीत मिली है. वर्ष 2019 के चुनाव में यह सीट बीजेपी के समर्थन से आरएलपी के खाते में गई थी. हनुमान बेनीवाल जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे थे. नागौर संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र लाडनूं, डीडवाना, जायल, नागौर, खींवसर, मकराना, परबतसर और नावां शामिल हैं. इस संसदीय क्षेत्र से नाथूराम मिर्धा सबसे अधिक 6 बार सांसद रह चुके है. वे पांच बार कांग्रेस और एक बार निर्दलीय विजयी हो चुके हैं.
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नाथूराम मिर्धा के पुत्र भानुप्रकाश मिर्धा भी उनके निधन के तुरंत बाद सहानुभूति लहर की चलते एक बार उपचुनाव में विजयी हो चुके हैं. उनकी पोती ज्योति मिर्धा भी यहां से एक बार सांसद रह चुकीं हैं. ज्योति अब तक तीन चुनाव लड़ चुकीं हैं, जिनमें से मात्र एक ही चुनाव में विजयी हो पाईं हैं. पिछले आम चुनाव में हार के बाद ज्योति ने पाला बदल लिया और अबकी बार बीजेपी प्रत्याशी के रूप में अपना चौथा चुनाव लड़ने जा रही हैं.
पाला बदल राजनीति वाला नागौर
नागौर संसदीय क्षेत्र की राजनीति से प्रमाणित हाता है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त-दुश्मन नहीं होता. यहां कांग्रेस-भाजपा के नेता अपने-अपने मतलब से समय-समय पर पाला बदलते नजर आए हैं. पिछले तीन चुनाव कांग्रेस से लड़ चुकीं ज्योति मिर्धा इस बार ‘कमल’ प्रत्याशी हैं. कांग्रेस से सांसद रहे रामरघुनाथ चौधरी की पुत्री बिन्दू चौधरी उनके सामने बीजेपी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुकीं हैं. पिछली बार हनुमान बेनीवाल बीजेपी समर्थित आरएलपी से प्रत्याशी थे और इस बार कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं. खैर, देखना ये होगा कि पाला बदल राजनीति की पहचान रखने वाला नागौर संसदीय क्षेत्र के वोटर्स इस बार ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल को किस करवट बैठाते हैं.