Rajasthan Politics: राजस्थान में लगातार दो बार क्लीन स्वीप करने के बाद भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनावों में ‘मिशन 25’ की हैट्रिक लगाने की तैयारी में है. 15 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान भी किया जा चुका है. कांग्रेस ने भी 10 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं. इनमें से 8 सीटों पर दोनों दलों की ओर से चुनावी दंगल स्पष्ट हो चुका है. चुनावों का सुक्ष्म विश्लेषण किया जाए तो इस बार बीजेपी के लिए मिशन-25 की राह आसान दिखाई नहीं दे रही है.
बीजेपी की ओर से नए चेहरों पर खेला गया दांव, कांग्रेस के नए सियासी समीकरण और वागड़-मारवाड़ में गठबंधन की संभावनाओं के चलते बीजेपी को करीब आधा दर्जन से अधिक संसदीय सीटों पर चुनौती मिलती हुई नजर आ रही है. हालांकि आम चुनावों में पलड़ा बीजेपी की भारी है लेकिन क्लीन स्वीप करना इस बार आसान न होगा.
टोंक-माधोपुर में पायलट फैक्टर
टोंक-सवाईमाधोपुर संसदीय क्षेत्र गुर्जर-मीणा बहुल है और यहां से हमेशा इन्हीं समुदाय के सांसद रहे हैं. इस बार कांग्रेस ने जातीय समीकरण साधते हुए यहां से विधायक हरीश मीणा को प्रत्याशी बनाया है. हरीश मीणा पायलट गुट से माने जाते हैं. पायलट टोंक से विधायक हैं और ऐसे में गुर्जर समाज का झुकाव भी उनकी तरफ रह सकता है. मीणा वोटर्स का झुकाव हमेशा से कांग्रेस के पक्ष में रहा है. ऐसे में अब बीजेपी गुर्जर समाज से प्रत्याशी बनाती है तो मीणा वोटों के एकजुट होने का खतरा है. अगर मीणा समाज से उम्मीदवार उतारा जाता है तो गुर्जरों के वोटों का पायलट के प्रभाव में ध्रुवीकरण होने का खतरा है. यहां बीजेपी के लिए परिस्थितियां उलझने वाली है.
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गौरतलब है कि साल 2014 में बीजेपी के टिकट पर हरीश मीणा ने दौसा से चुनाव लड़ा और पहली बार सांसद बने. इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
नागौर में समीकरण बिगाड़ रहा गठबंधन
पिछले आम चुनाव में बीजेपी ने नागौर संसदीय सीट राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) से गठबंधन के चलते छोड़ दी थी. यहां आरएलपी के हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस की ज्योति मिर्धा के बीच मुकाबला हुआ था. हनुमान बेनीवाल ने जीत दर्ज की थी. इस बार ज्योति मिर्धा बीजेपी से चुनावी मैदान में हैं और हनुमान बेनीवाल विधायक हैं. उनके चुनाव लड़ने की संभावना कम है. चूंकि बेनीवाल नागौर के ‘हनुमान’ हैं, ऐसे में कांग्रेस का आरएलपी से गठबंधन होता है तो फिर से हनुमान और ज्योति आमने-सामने हो सकते हैं. अगर ये समीकरण बैठता है तो बीजेपी की राह में कांटें बोये जा सकते हैं.
डूंगरपुर-बांसवाड़ा में ‘बाप’ रोड़ा
कांग्रेस छोड़कर शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालवीय को बीजेपी ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा से लोकसभा चुनाव का टिकट थमाया है. मालवीय दिग्गज छवि वाले नेता हैं और इलाके में उनकी बैठ है. इस संसदीय क्षेत्र को आदिवासी बहुल क्षेत्र माना जाता है. अगर इस सीट पर कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के बीच गठबंधन या किसी भी तरह का समझौता होता है तो यहां मालवीय को दिक्कत हो सकती है. इसी स्थिति में उदयपुर सीट पर भी बीजेपी को कड़ी चुनौती मिलना तय है. श्रीगंगानगर में कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) से कांग्रेस के सियासी गठबंधन की संभावनाएं बन रही हैं.
चूरू में टक्कर का मुकाबला
इस बार चूरू संसदीय सीट हॉट सीटों में शुमार हो गयी है. बीजेपी ने एक बड़ा दांव खेलते हुए पैरा ओलंपिक पदक विजेता देवेंद्र झाझड़िया को उम्मीदवार बनाया है. वहीं टिकट कटने से नाराज लगातार दो बार के सांसद राहुल कस्वां पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस ने बिना देर किए उन्हें चूरू से टिकट थमा दिया और मुकाबले को बेहद रोचक बना दिया. अब यह सीट कांग्रेस के लिए नहीं बल्कि राहुल कस्वां के लिए नाक का सवाल बन गयी है. राहुल कस्वां के पास इस सीट पर राजनीतिक विरासत है. उनके पिता रामसिंह कस्वां भी इसी सीट से सांसद रह चुके हैं. उनकी मां भी चूरू से चुनाव लड़ चुकी हैं. ऐसे में भावनात्मक रूप से कस्वां को यहां से फायदा मिलता दिख रहा है.
ओला परिवार की विरासत रहा झुंझुनूं
झुंझुनूं सीट से कांग्रेस ने पूर्व मंत्री एवं विधायक बृजेंद्र ओला को उतारा है. बृजेंद्र ओला की इस सीट पर राजनीतिक विरासत चली आ रही है. उनके पिता शीशराम ओला इसी सीट से चुनाव जीतते रहे थे और केंद्रीय मंत्री भी रहे. बृजेंद्र ओला खुद झुंझुनूं से लगातार विधायकी का चुनाव जीत रहे हैं. बीजेपी ने अभी तक यहां से प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. हालांकि ओला परिवार की विरासत को पटखनी देना बीजेपी के लिए एक चुनौती रहने वाली है.