2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद पार्टी का नेतृत्व कौन संभालेगा, अब तक तय नहीं हो पा रहा है. नेहरू-गांधी परिवार की चार पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ रहे कर्ण सिंह का इस बारे में कहना है कि पार्टी के नेतृत्व को लेकर जल्दी फैसला नहीं हुआ तो इससे पार्टी में भ्रम फैलेगा और कार्यकर्ताओं में निराशा बढ़ेगी. इससे कई कार्यकर्ता पार्टी छोड़ सकते हैं.

राहुल गांधी के बाद पार्टी को कौन संभालेगा, इस पर भारी असमंजस बना हुआ है. यह साफ नहीं है कि पार्टी में महत्वपूर्ण फैसले कौन करेगा. औपचारिक तौर पर कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण फैसले कांग्रेस कार्य समिति करती है. नई परिस्थितियों में CWC रबर स्टांप की तरह काम करेगी या इसमें शामिल नेता आपसी सलाह-मशविरे से फैसला करेंगे, यह तय नहीं है. राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पार्टी की निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे.

पार्टी में सभी लोग यह मानते हैं कि जो भी नया अध्यक्ष होगा, वह नेहरू-गांधी परिवार की पसंद का होगा. समझा जाता है कि इसी लिए नए अध्यक्ष की ताजपोशी में समय लग रहा है. कांग्रेस में इस समय पीढ़ियों का स्थानांतरण भी हो रहा है. अगर नई पीढ़ी के नेता कांग्रेस की निर्णय प्रक्रिया में शामिल हुए तो क्या पुराने नेता इसे स्वीकार कर पर पाएंगे?
एक मुद्दा यह भी है कि नया कांग्रेस अध्यक्ष उत्तर भारत से होगा या दक्षिण भारत से. कांग्रेस को दक्षिण भारत में अच्छी सफलता मिली है. इसके मद्देनजर कांग्रेस का नया अध्यक्ष दक्षिण भारत से हो सकता है. लेकिन इसके साथ ही पार्टी को उत्तरी और पूर्वी भारत में भी मजबूत बनाने की जरूरत होगी. यह कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. इस लिए मध्य भारत से भी नया कांग्रेस अध्यक्ष चुना जा सकता है. जो भी हो, लेकिन कांग्रेस को इस समय नेतृत्व पर तत्काल फैसला करने की जरूरत है. इसमें देर करने से पार्टी में गुटबंदी बढ़ेगी और बिखराव शुरू हो सकता है.
इसका संकेत जनार्दन द्विवेदी ने दे दिया है. जनार्दन द्विवेदी वरिष्ठ नेता हैं और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पूर्व महासचिव रह चुके हैं. उन्होंने नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए चल रही अनौपचारिक विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर सवाल उठा दिए हैं. उन्होंने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया है. उनका कहना है कि राहुल गांधी इसके लिए कुछ नेताओं को मनोनीत कर देते तो ठीक होता. जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थी और इलाज के लिए विदेश गई थी, तब उन्होंने पार्टी के चार वरिष्ठ नेताओं को रोजमर्रा का काम देखने के लिए नियुक्त किया था. राहुल गांधी भी इस्तीफा देने के बाद ऐसा कर सकते थे.
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से पहले वरिष्ठ नेताओं की एक समन्वय समिति का गठन किया था. उस समिति में शामिल वरिष्ठ नेता ही विचार-विमर्श की प्रक्रिया में लगे हुए हैं. लेकिन पार्टी संविधान के मुताबिक इन नेताओं को ऐसा करने का अधिकार नहीं है. समिति के सदस्य वरिष्ठ नेता एके एंटनी इस विचार-विमर्श में भाग नहीं ले रहे हैं. जनार्दन द्विवेदी का सवाल है कि फिर इस समिति की वैधता क्या है? उन्होंने मंगलवार को एक पत्र भी जारी किया, जो उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा था.

15 सितंबर, 2014 को लिखे गए इस पत्र के मुताबिक उस समय द्विवेदी कांग्रेस महासचिव पद छोड़ना चाहते थे. उन्होंने सोनिया गांधी से नई पीढ़ी के नेताओं के साथ मिलकर पार्टी का पुनर्गठन करने और बुजुर्ग नेताओं को कम मेहनत वाली जिम्मेदारियां सौंपने का अनुरोध किया था. उस समय सोनिया गांधी ने पत्र को सार्वजनिक नहीं करने के लिए कहा था. अब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हैं, इसलिए उन्होंने वह पुराना पत्र सार्वजनिक करने का फैसला किया है.

जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि जब किसी समाज या संगठन में व्यक्तिगत विचार प्रकट करने की आजादी नहीं होती, तब उस संगठन में लोकतंत्र मृतप्राय हो जाता है. उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस कार्यसमिति ऐसा नेता का चुनाव करेगी, जो पार्टी कार्यकर्ताओं को स्वीकार्य हो. अगर नेता पार्टी को ही स्वीकार नहीं होगा तो देश उसे कैसे स्वीकार करेगा. गौरतलब है जनार्दन द्विवेदी पार्टी महासचिव पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी की निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा नहीं रहे हैं.

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