जयपुर शहर लोकसभा सीट पर जीत का सूखा समाप्त करने के लिए कांग्रेस ने 48 साल बाद महिला उम्मीदवार को उतारने का मास्टर स्ट्रोक खेला है. कांग्रेस ने जयपुर की पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल को तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए चौंकाने वाला टिकट थमा दिया लेकिन ज्योति का विवादों से हमेशा से गहरा नाता रहा है. लिहाजा कांग्रेस का कोई भी नेता ज्योति के टिकट मिलने से दिल से खुश नहीं है. ज्योति ने अपने तेवरों से कांग्रेस में दुश्मनों की लंबी फौज खड़ी रखी है जो दिखावे के लिए तो ज्योति के साथ मंच पर खड़े नजर आते हैं लेकिन बंद कमरों में अपनी पुरानी अदावत का हिसाब निपटाने में जुटे हुए हैं. उधर बीजेपी ने पिछले चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज करने वाले रामचरण बोहरा पर फिर दांव खेला है. बोहरा अपने चेहरे को पीछे रखकर नरेंद्र मोदी को आगे करते हुए वोट मांग रहे हैं. कांग्रेस अभी भी गुटबाजी में उलझी हुई है जबकि बीजेपी मोदी लहर पर सवार होकर मुकाबले में बहुत आगे चल रही है.
जयपुर शहर सीट पर बीजेपी-कांग्रेस में सीधा मुकाबला है. चुनाव के पहले दिन से ही यहां एयर स्ट्राइक और माेदी फैक्टर हावी है. कांग्रेस के पास इससे निपटने के लिए कोई हथियार नहीं है. यहां तक की माहाैल बनाने के लिए न ताे कोई बड़ी रैली की गई और न ही प्रचार तेज हुआ. हालांकि प्रदेश सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट सभाएं जरुर कर रहे हैं. माैजूदा विधायकाें का भी ज्योति को पूरा सहयाेग नहीं मिल पा रहा जिसका पूरा फायदा बीजेपी और रामचरण बोहरा काे हाे रहा है. विधायक अमीन कागजी और महेश जोशी की ज्योति से जंग जगजाहिर है लेकिन पार्टी के आदेश पर दोनों ज्योति के साथ खड़े हैं. हालांकि कागजी पर ज्योति को अब भी भरोसा है लेकिन अर्चना शर्मा के साथ ज्योति के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. इन तीनों नेताओं की मेहनत के बिना ज्योति की नैंया पार लगना कतई संभव नहीं होगा.
पांच विधानसभा में बीजेपी भारी, तीन में कांग्रेस
वैसे जयपुर शहर हमेशा से बीजेपी का मजबूत गढ़ रहा है लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब हो गई. कांग्रेस बगरु, आदर्शनगर, हवामहल, सिविल लाइंस और किशनपोल विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं बीजेपी के खाते में सांगानेर, विद्याधर नगर और मालवीय नगर सीटें आई. इसके बावजूद बगरु और सिविल लाइंस में शहरी वोटर्स होने से बीजेपी मजबूत दिखाई दे रही है. इनके अलावा, सांगानेर, मालवीय नगर और विद्याधर नगर में बढ़त मिलते दिख रही है. वहीं कांग्रेस किशनपोल और हवामहल में मजबूत दिखाई दे रही है. आदर्शनगर से भी बढ़त मिलने के आसार हैं. विधानसभा चुनाव में कम सीटें आने के बावजूद बीजेपी मोदी लहर, राष्ट्रवाद और शहरी वोटर्स के फैक्टर के चलते कांग्रेस से आगे दिख रही है.
जीत का क्या रह सकता है फार्मूला
रामचरण बोहरा के ब्राह्मण होने के चलते बीजेपी के पास ब्राह्मण सबसे बड़ा वाेट बैंक है. दूसरी जातियाें का वाेट भी माेदी के नाम पर बीजेपी के खाते में जाएगा. कांग्रेस वैश्य-मुस्लिम समाज के सहारे मैदान में है. मुस्लिम समाज का कांग्रेस के पक्ष में जाते ही ध्रुवीकरण हाे सकता है. धरातल पर चौंकाने वाली बात यह भी आ रही है कि मोदी लहर के चलते वैश्य समाज का वाेट भी बीजेपी की ओर जा सकता है. ऐसे में कांग्रेस को इससे सीधा नुकसान हाेगा वहीं कुछ वोटर्स खंडेलवाल के महापौर रहने के दौरान उनकी कार्यशैली से खफा भी नजर आ रहे है.
पिछले दो चुनाव के नतीजे
पिछला चुनाव बीजेपी ने मोदी लहर में पांच लाख 39 हजार वोटों से जीता था. पूरे देश में बोहरा की यह टॉप 5 में पांचवीं बड़ी जीत थी. बोहरा ने मौजूदा सांसद कांग्रेस के महेश जोशी को पटकनी दी थी. 2009 में महेश जोशी ने बीजेपी के घनश्याम तिवाड़ी को करीबी मुकाबले में करीब 16 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस आठ में से पांच सीटें जीतने में कामयाब रही हो लेकिन उसे बीजेपी से आठ हजार वोट कम मिले थे. कांग्रेस को कुल 6 लाख 34 हजार 24 वोट मिले जबकि बीजेपी को 6 लाख 42 हजार 486 वोट हासिल हुए थे. ऐसे में बीजेपी की यह बढ़त यकीनन मोदी लहर में बरकरार रहेगी.
भितरघात का खतरा
बीजेपी प्रत्याशी रामचरण बोहरा और कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल के लिए सबसे अधिक चुनौती भितरघात से निपटने की है. दोनों ही पार्टियों के मौजूदा विधायकों और हारे हुए प्रत्याशियों के बीच अच्छा तालमेल नहीं है. ऐसे में प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि का सबसे अधिक असर पड़ सकता है.
कांग्रेस जयपुर में जीती है सिर्फ तीन चुनाव
जयपुर शहर लोकसभा सीट कांग्रेस की जीत के लिए बेहद चुनौतीभरी है. अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस ने केवल तीन बार यहां से जीत का स्वाद चखा है. 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के दौलतराम जीते थे. राजीव गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर के चलते पंडित नवलकिशोर शर्मा ने यह सीट कांग्रेस को दिला दी. तीसरी और अंतिम बार महेश जोशी यहां से जीतकर दिल्ली पहुंचे थे. यह आंकड़ा साफ बयां करता है कि यह सीट शुद्ध रुप से बीजेपी की परम्परागत सीट है. बीजेपी के गिरधारीलाल भार्गव लगातार छह बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं. ऐसे में ज्योति के लिए जीत की ज्वाला जलाना बेहद टफ है.
कांग्रेस के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी सिरदर्दी
राजस्थान में कांग्रेस के लिए अगर सबसे ज्यादा गुटबाजी है, तो वह गुलाबी नगरी में मानी जाती है. यहां छोटा सा पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी राजधानी होने के चलते खुद को बड़ा मानकर चलता है. ऐसे में किसी एक नेता के निर्देशों को मानना वह अपनी शान के खिलाफ मानता है. ज्योति ने अपनी बेबाकी और कार्यशैली से इतने विरोधी बना लिए थे कि उब उन्हें गर्ज के चलते मनाना पड़ा. दिखावे के लिए तो यह सभी साथ हैं लेकिन वोट दिलवाने में उनका क्या रोल रहेगा, यह देखना दिलचस्प रहेगा.