Politalks.News/Rajasthan. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक हेमाराम का इस्तीफा गहलोत सरकार और कांग्रेस पार्टी ना तो उगलता बन रहा है और नाही निगलता. हेमाराम चौधरी का इस्तीफा पार्टी के लिए जी का जंजाल बन गया है. न तो इस्तीफे को किया जा रहा मंजूर और ना ही इसे नामंजूर किया गया है. उल्टे चौधरी को विधानसभा में राजकीय उपक्रम समिति का सभापति बनाकर इसे और लटका दिया है. समिति का सभापति बनाए जाने के बाद चौधरी ने इस्तीफा लेने से साफ इनकार कर दिया है. हेमाराम चौधरी का कहना है कि उन्हें समिति का सभापति बनाने के पहले पूछा भी नहीं गया है. ऐसे में अभी हेमाराम का इस्तीफा प्रकरण उलझा नजर आ रहा है.
सरकार और पार्टी की मनुहार के बावजूद विधायक हेमाराम चौधरी बार-बार ये कह रहे हैं कि वे विधायक पद से दिए इस्तीफे को वापस नहीं लेंगे. उन्होंने कहा है कि वे स्पीकर सीपी जोशी से दुबारा समय लेकर मिलेंगे और इस्तीफे को मंजूर करने को कहेंगे. चौधरी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी अपने विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर हैं. वे जब भी मिलेंगे मैं उनसे मिलकर इस्तीफा मंजूर करने के लिए ही कहूंगा. हालांकि इस्तीफा स्वीकार करना या ना करना ये सब विधानसभा अध्यक्ष के क्षेत्राधिकार का मामला है.
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हेमाराम चौधरी कह चुके हैं कि- ‘जिस तरीके से राजस्थान कांग्रेस में बयानबाजी का दौर चल रहा है. इससे पार्टी को जबरदस्त तरीके से नुकसान हो रहा है. आलाकमान को तुरंत ही इस सियासी घटनाक्रम का समाधान करना चाहिए. जिससे आने वाले समय हमें होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बन सके’. हेमराम का कहना है
कि पिछले ढाई साल में समस्या के समाधान को लेकर असंतुष्ठि है.एएनएम भर्ती और मनरेगा जैसे कार्यों में ढिलाई बरती जा रही है. जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है’.
कमलेश प्रजापत मामले को लेकर बाड़मेर के सियासत वैसे भी गर्माई हुई है. कांग्रेस के तीन विधायक दिल्ली दरबार में अपनी हाजिर लगा चुके हैं. इस मामले में बाड़मेर से गहलोत सरकार में मंत्री और उनके परिजनों का नाम आ रहा है. हेमाराम इनके मंत्री बनाए जाने से भी नाराज तो चल ही रहे हैं. हेमाराम चौधरी प्रदेश कांग्रेस के सियासी संकट पर लगातार चिंता जता रहे हैं. सरकार के ढाई साल के कामों में ढिलाई का भी आरोप लगा चुके हैं. प्रदेश प्रभारी अजय माकन और गोविंद सिंह डोटासरा हेमाराम की मनुहार कर चुके हैं. लेकिन हेमाराम के दिमाग में क्या चल रहा है वो तो खुद चौधरी ही बता सकते हैं ?
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विधायक हेमाराम चौधरी को सचिन पायलट खेमे में माना जाता है और चौधरी ने सियासी संकट के दौरान मानेसर में पायलट के साथ कैंप भी किया था. विधानसभा चुनाव के समय चौधरी चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन पायलट के मनाने पर वे मान गए थे. इसके बाद जब मंत्रिमण्डल का गठन हुआ तो उनकी जगह हरीश चौधरी को मंत्री बना दिया गया. इससे वे नाराज हो गए और लगातार अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे. सूत्रों की माने तो क्षेत्र में विकास नहीं होने को लेकर मुद्दा बनाकर हेमाराम चौधरी ने 18 मई को इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद ही तब से अब तक उनके इस्तीफे पर कोई फैसला नहीं हुआ और अभी हाल ही में विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी ने उन्हें राजकीय उपक्रम समिति का सभापति भी बना दिया.
हेमाराम चौधरी के इस्तीफे के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा और प्रभारी अजय माकन ने भी उनसे बात की थी. चौधरी पीसीसी चीफ डोटासरा के घर भी गए थे तब भी उन्हें राजी करने को प्रयास किया गया था. यहीं नहीं जिस पायलट गुट से आते है उनके नेता सचिन पायलट ने भी उनसे इस्तीफा वापस लेने को कहा था. साथ ही पायलट ने चौधरी जैसे वरिष्ठ विधायक के इस्तीफा देने पर चिंता जताई थी.
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इधर, हेमाराम चौधरी ने यह भी कह दिया हैं कि जब तक उनका इस्तीफा मंजूर नहीं होगा वे विधायक पद की जिम्मेदारी निभाते रहेंगे और जनता की सुनवाई करेंगे. लेकिन चौधरी यह कहने से भी नहीं चूके कि वे इस्तीफा वापस नहीं लेंगे. चौधरी ने कहा है कि वे विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी से मिलने विधानसभा भी गए थे किंतु कोरोना की वजह से जोशी से मुलाकात नहीं हो पाई थी. चौधरी ने कहा कि अब वे दुबारा से जोशी से समय लेंगे और मिलने जाएंगे.