हरियाणा में चुनावी दंगल अब खत्म हो चुका है. 5 अक्टूबर को मतदान और 8 अक्टूबर को सभी 90 सीटों पर परिणाम आने हैं. इनमें से रेवाड़ी विधानसभा सीट एक ऐसी सीट है जहां का चुनावी इतिहास विरोध और विद्रोह से भरा हुआ है. धारूहेड़ा जैसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र को दिल में बसाने वाली रेवाडी विधानसभा में इस बार मुकाबला कांटे का होने जा रहा है. एक ओर कांग्रेस के अरमानों पर झाडू फेकने के लिए आम आदमी पार्टी आ खड़ी हुई है. वहीं बीजेपी को अपनों की भीतरघात का खतरा मंड़रा रहा है.
पिछले चुनाव में बागियों ने बीजेपी का काम खराब किया था. इस बार पार्टी के अंदर से बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इन सभी समीकरणों के बीच एक बागी निर्दलीय उम्मीदवार ने मुकाबले को रोचक बना दिया है जो सभी के खाते में से थोड़े थोड़े वोट झटकता दिख रहा है.
दो परिवारों के इर्द-गिर्द घुमती है सियासत
गुरूग्राम से अटे रेवाड़ी क्षेत्र का मिजाज समझना मुश्किल काम है. यह शहर जितना ऐतिहासिक है, उतना है आधुनिकता के पंखों पर सवार भी है. इसके बावजूद यहां की चुनावी सियासत कांग्रेस के कैप्टन अजय यादव और बीजेपी के केंद्रीय सरकार में मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. जिस गुरूग्राम लोकसभा में रेवाड़ी विधानसभा सीट आती है, उसके पिछले कई वर्षों से सांसद राव इंद्रजीत सिंह ही हैं. वहीं रेवाड़ी सदर सीट से पिछली विधानसभा में विधायक चिरंजीव राव रहे हैं जो कैप्टन अजय यादव के बेटे हैं. इस बार मुख्य मुकाबला कांग्रेस के चिंरजीव राव और बीजेपी के लक्ष्मण यादव के बीच है.
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लक्ष्मण यादव सांसद राव इंद्रजीत के नजदीकी माने जाते हैं और कोसली से कई बार विधायक रह चुके हैं. इन दोनों के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं आम आदमी पार्टी के संदीप यादव, जो पिछले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय खड़े होकर अच्छे वोट हासिल कर चुके हैं. रेवाड़ी का युवा और बदलाव चाहने वाला वर्ग संदीप के साथ जाता दिख रहा है. दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल भी संदीप यादव के पक्ष में रेवाड़ी शहर में रैली कर चुके हैं.
विरोध और विद्रोह से भरा है इतिहास
रेवाड़ी विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास विरोध और विद्रोह से भरा है, जिसमें उलटफेर खूब हुए हैं. चिरंजीव राव 2019 के चुनाव में भी अपने पिता कैप्टन अजय यादव की सीट वापस कांग्रेस में लाने में कामयाब रहे थे, लेकिन प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के सुनील मूसेपुर से महज 1317 वोट आगे रहे थे. तब भाजपा के बागी और निर्दलीय रणधीर कापड़ीवास ने काफी वोट काटे थे, जिससे यह सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई थी. इससे पहले 2014 के चुनाव में लगातार छह जीत के बाद कैप्टन अजय यादव, बीजेपी के रणधीर सिंह कापड़ीवास से करीब 50,000 वोट से पीछे रहकर तीसरे स्थान पर खिसक गए थे. दूसरे नंबर पर इनेलो के सतीश यादव रहे थे. इससे पहले कांग्रेस के कै.अजय यादव छह विधानसभा चुनाव जीतते हुए आ रहे हैं.
इस बार कैप्टन की जगह उनके पुत्र चिरंजीव यादव मैदान में हैं तो उनके मुकाबले कोसली के निवर्तमान विधायक लक्ष्मण सिंह यादव हैं. उन्हें चुनावी जीत का मास्टर माना जाता है. इस सीट पर सबसे ज्यादा वोट वाले यादव समाज में अच्छी पकड़ है. खुद राव इंद्रजीत उनकी जीत के लिए जोर लगाए हुए हैं. इधर, बार एसोसिएशन के छह बार प्रधान रहे आप के उम्मीदवार सतीश यादव ने मुकाबले को रोचक बना दिया है. दिल्ली से नजदीक होने के कारण यहां कुछ वोट आप का भी है, जो संदीप यादव को मिल जाएगा.
बीजेपी के बागी व निर्दलीय प्रत्याशी प्रशांत सन्नी भी अच्छा समर्थन जुटाते दिख रहे हैं. सन्नी ने ‘कमल’ का साथ छोड़कर जिस मजबूती से ताल टोकी है, वह कई प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ सकते हैं.
रेवाड़ी का जातिगत समीकरण
रेवाड़ी को 36 बिरादरी वाला क्षेत्र कहा जाता है. यहां सभी तरह का वोट बैंक मौजूद है. इस विधानसभा क्षेत्र में 2.53 लाख मतदाता हैं. इसमें करीब 84 हजार अहीर वोट हैं. एससी मतदाता 50 हजार से अधिक, 21 हजार पंजाबी और 15 हजार सैनी मतदाता हैं. जाट, महाजन, कुंभकार और गुर्जर मतदाता भी यहां मौजूद हैं. इसमें प्रवासियों की संख्या भी मौजूद है. ऐसे में चुनावी जंग में खड़ा हर एक उम्मीदवार अपने बलबूते पर 25 से 30 हजार वोट आसानी से बटौर सकता है. ऐसे में माना यही जा रहा है कि इस बार हार जीत का अंतर 1000-1500 से ज्यादा नहीं रहने वाला है.
क्या है हार-जीत का गणित
यहां बीजेपी काफी मजबूत लग रही है लेकिन पार्टी को भीतरघात का खतरा सता रहा है. टिकट न मिलने पर पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव बागी होकर आम आदमी पार्टी से जबकि प्रशांत उर्फ सन्नी यादव निर्दलीय मैदान में हैं. हालांकि, सबसे बड़ा खतरा भाजपा को पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास और पर्यटन निगम के पूर्व चेयरमैन डॉ. अरविंद यादव से है. इस बार कापड़ीवास टिकट के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे थे.
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वहीं पिछले 2 चुनावों से टिकट की दावेदारी ठोक रहे डॉ. अरविंद यादव को भी टिकट नहीं मिला. इसकी वजह से वह भी दूसरी बार साइलेंट बागी बने हुए हैं. दोनों का इस सीट पर काफी प्रभाव है. ऐसे में रेवाड़ी सीट से लक्ष्मण सिंह यादव के सामने इन साइलेंट बागियों से ही निपटना बड़ी चुनौती है. अब देखना ये होगा कि बीजेपी अपने ही नेताओं से हार जाती है या फिर कांग्रेस के चिरंजीव एक बार फिर से विजयी पताका फहराते हैं.