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हरियाणा की सभी 90 सीटों पर मतदान शुरू हो गया है. आज एक हजार से अधिक उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम मशीनों में कैद होगा. वोटों की गिनती 8 अक्टूबर होगी. इन सभी सीटों में से एक सीट ऐसी भी है, जहां कभी भी बीजेपी जीत का स्वाद तक चख नहीं पायी है. इतना ही नहीं, 2014 और 2019 में देशभर में मोदी लहर बहने के बावजूद भी बीजेपी यहां कमल नहीं खिला पायी थी. पिछले विस चुनावों में कांग्रेस के नीरज शर्मा ने जीत दर्ज की थी. इस बार भी कांग्रेस ने उन्हीं पर विश्वास जताया है, जबकि यहां कमल खिलाने की जिम्मेदारी इस बार सतीश फागना को दी गयी है.

यहां बात हो रही है फरीदाबाद की फरीदाबाद एनआईटी विधानसभा सीट की. फरीदाबाद लोकसभा में 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से एक है फरीदाबाद एनआईटी. 2009 में परिसीमन के बाद पृथला, फरीदाबाद, तिगांव और फरीदाबाद एनआईटी क्षेत्र अलग से अस्तित्व में आए थे.

पार्टी विशेष का नहीं है यहां अस्तित्व

फरीदाबाद एनआईटी पर पार्टी विशेष का कोई अस्तित्व नहीं है. यहां की जनता जर्नादन चेहरा देखकर वोट देती है. यही वजह है कि कभी यहां कांग्रेस जीती है तो कभी इनेलो तो कभी निर्दलीय को विजयश्री हासिल हुई है. 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नीरज शर्मा ने जीत दर्ज की थी. उन्हें 61,697 वोट मिले जबकि बीजेपी के नागेंद्र भडाना दूसरे नंबर पर रहे. उन्हें 58,455 मतों से संतोष करना पड़ा. बसपा के हाजी करामात अली 17,574 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. पिछले चुनावों में रजिस्टर्ड 2.58 लाख मतदाताओं के साथ वोटिंग प्रतिशत 61.36 फीसदी रहा था.

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इसी तरह से 2014 के विधानसभा चुनावों में इनेलो को नागेंद्र भडाना ने 45,740 मतों के साथ विजयश्री हासिल की थी. दूसरे स्थान पर निर्दलीय पंडित शिवचरण शर्मा रहे जिन्हें 42,826 वोट मिले. बीजेपी के यशवीर सिंह 35,760 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे. वहीं 2009 में निर्दलीय पंडित शिवचरण शर्मा ने यहां से जीत दर्ज की. हार जीत का अंतर करीब 8 हजार मतों का रहा. कांग्रेस के अकागर चंद चौधरी दूसरे और निर्दलीय नागेंद्र भडाना तीसरे नंबर पर रहे.

2024 का सियासी समीकरण

 फरीदाबाद एनआईटी में इस बार 3 लाख 9 हजार 68 मतदाता अपना विधायक चुनेंगे. इनमें 1,71,279 पुरूष और 1,37,468 महिला वोटर्स हैं. इस सीट पर 11 थर्ड जेंडर मतदाता भी हैं. कुल 288 बूथों पर वोट डाले जाएंगे.  पिछली बार को देखते हुए इस बार भी वोटिंग 65 फीसदी से अधिक होने की संभावना कम है. जैसा कि यहां चलन है कि जनता किसी चेहरे को फिर से सत्ता में रिपीट नहीं करती, इस पर विश्वास करें तो कांग्रेस के नीरज शर्मा का जीत पाना मुश्किल है.

हालांकि प्रदेश में हवा इस बार कांग्रेस की मानी जा रही है और बीजेपी पर एंटी इनकम्बेंसी हावी है. किसानों से जुड़े मुद्दे भी बीजेपी की गले ही हड्डी बने हुए हैं. ऐसे में नीरज का पलड़ा भी हल्का नहीं है. अब देखना ये होगा कि क्या बीजेपी के सतीश फागना फरीदाबाद एनआईटी पर पहली बार ‘कमल’ खिला पाते हैं या फिर रिवाजों को नरकिनार कर नीरज शर्मा फिर से यहां ‘हाथ’ की छाप छोड़ पाते हैं या कोई अन्य उम्मीदवार संभावनाओं पर सवार होकर दोनों प्रमुख पार्टियों के मंसूबों पर ‘झाडू’ लगा देता है.

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