Politalks.News/Rajasthan. अगले साल के अंत में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश की सियासत अभी से हिचकोले मारने लगी है. सूबे के दो प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही आगामी विधानसभा चुनाव जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन दोनों ही दलों की सबसे बड़ी मुश्किल है उनकी पार्टी में चल रही आंतरिक कलह. कांग्रेस में जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चल रही कुर्सी की जंग किसी से छिपी नहीं है तो वहीं बीजेपी में जारी सियासी खींचतान भी अब धीरे धीरे खुलकर सामने आने लगी है. इसका एक नजारा हाल ही में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से जुड़े मामले में देखने को मिला. जहां बीजेपी के नेताओं ने विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात की लेकिन अध्यक्ष के आवास के सामने ही रहने वाली पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आने का न्योता ही नहीं दिया गया. जिसके बाद से परदेश की सियासत गरमा गई है.
बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव से पहले राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच कांग्रेस पर्यवेक्षकों द्वारा बुलाई गई बैठक सामानांतर एक अन्य बैठक भी बुलाई गई. जिसमें कांग्रेस के कई नेता मौजूद रहे और उन्होंने पार्टी आलाकमान के एक लाइन के प्रस्ताव पर सवाल उठाते हुए विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा था. हालांकि तीनों नेताओं ने अपना जवाब दे दिया है लेकिन उसपर फैसला आना अब भी बाकी है. इसी सिलसिले में मंगलवार को नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के नेतृत्व में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सहित 12 बीजेपी नेताओं ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को ज्ञापन सौंपा और विधायकों के इस्तीफे पर जल्द फैसला लेने की मांग उठाई थी.
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अब बीजेपी नेताओं की विधानसभा अध्यक्ष से हुई ये मुलाकात अब सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है. क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष के आवास के सामने ही बीजेपी की दिग्गज नेता, पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सूबे कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का आवास है लेकिन उन्हें इस कार्यक्रम की कोई सूचना नहीं दी गई. सियासी जानकार जहां इस मैडम राजे की अनदेखी बता रहे हैं तो वहीं बीजेपी नेता अपनी इस गलती पर पर्दा डालने की कोशिश में जुट गए हैं. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि, ‘नेता प्रतिपक्ष होने के नाते ये मेरी जिम्मेदारी थी कि, ‘मैं वसुंधरा राजे को सूचना देता जो कि मैं नहीं दे पाया.’ वहीं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां ने कहा कि, ‘कार्यक्रम अचानक से तय हुआ था. अगर पहले से तय होता तो सभी विधायकों को बुलाया जाता और सूचना दी जाती.’
इसी क्रम में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की भी प्रतिक्रिया सामने आई. राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि, ‘विधायकों और अन्य लोगों को प्रदेश दफ्तर में सूचना दी गई थी. यह काम वैसे सचेतक का होता है कि वो सभी विधायकों को जानकारी दे. इस बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है.’ बीजेपी नेताओं के इन बयानों से भले ही उन्होंने अपनी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया हो लेकिन तीनों नेताओं के अलग अलग बयान साफतौर पर ये साफ़ कर रहे हैं कि पार्टी में अंदरूनी कलह किस हद तक पैर जमाये बैठी है. कोई खुले तौर पर या जाने अनजाने किसी भी तरह का बयान देकर किस भी सूरत में मैडम राजे से सीधे दुश्मनी मौल नहीं लेना चाहता. बीजेपी नेता भले ही खुले में बयानबाजी ना करें लेकिन वे खुद भी ये जानता हैं कि पार्टी अंदरखाने कितने गुटों में बंटी हुई है.
यह पहला मौका नहीं है जब पार्टी की अंदरूनी कलह सामने आई है लेकिन चुनावी साल में प्रवेश करने के साथ ही बीजेपी के लिए ये काफी गंभीर होने वाली है. बीजेपी आलाकमान भले ही बीजेपी की एकता की मिशाल देता नहीं थकता लेकिन राजस्थान में बीजेपी नेता अलग यात्राएं कर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने पर जुटे हैं. सभी नेता आलाकामन के सामने खुद को मजबूत साबित करने पर तुले हैं. तो मैडम राजे प्रदेश भाजपा नेताओं के साथ आलाकमान को भी सजग कर रही है कि उनकी जगह राजस्थान में कोई नहीं ले सकता. यही कारण है कि मैडम राजे लगातार प्रदेश के कई जिलों में देव दर्शन के जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं एवं अपने समर्थकों को एकजुट करने में जुटी है.
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सियासी जानकारों की मानें तो राजस्थान में भाजपा सरकार की वापसी तभी संभव है जब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को हर जगह तवज्जो दी जाए. कांग्रेस पार्टी में फिलहाल कुर्सी की लड़ाई चरम पर है. ऐसे में अगर कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री परिवर्तन का कदम उठाता है और सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाता है तो फिर बीजेपी को वसुंधरा राजे को हर हाल में आगे लाना ही होगा. लेकिन अगर कांग्रेस पंजाब की तर्ज मुख्यमंत्री के रूप में चन्नी वाला दांव खेलती है तो फिर भाजपा के सियासी दांवपेंच अलग ही होंगे. हालांकि मैडम राजे इतने में हार मानने वाली नहीं है. खैर ये तो भविष्य के गर्भ में छुपा आखिर होने क्या वाला है, क्योंकि राजस्थान के सियासी जादूगर उर्फ़ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कई मौकों पर कहते सुना गया है कि राजनीति में जो होता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो होता नहीं.
आपको बता दें बीते मंगलवार को हुए सियासी घटनाक्रम के बाद राजस्थान भाजपा की सियासी अदावत खुलकर सबके सामने आ गई है. यही कारण है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शुक्रवार 21 अक्टूबर को दिल्ली में राजस्थान BJP कोर ग्रुप की बैठक बुलाई है. शाम 6 बजे से होने वाली इस बैठक में प्रदेश की गहलोत सरकार की चौथी वर्षगांठ पर होने वाली जन आक्रोश रैली और उस दिन काला दिवस मनाने की तैयारियों पर चर्चा होगी. यही नहीं नड्डा पार्टी नेताओं को एकजुटता के साथ विधानसभा चुनाव-2023 और लोकसभा चुनाव-2024 में जुटने की नसीहत भी देंगे. माना जा रहा है जेपी नड्डा राजस्थान में बीजेपी पार्टी में सीनियर नेताओं के बीच चल रही अंदरूनी गुटबाजी, ‘एकला चलो’ नीति और पार्टी से अलग हटकर व्यक्तिगत पब्लिक मीटिंग करने पर भी नेताओं की क्लास ले सकते हैं.