हिजाब बैन है अलोकतांत्रिक, बुरी ताकतें देश के माहौल को कर रही है तबाह- SC के पूर्व जज का बड़ा बयान

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने हिजाब प्रतिबंध को लेकर दिया बड़ा बयान, सुप्रीम कोर्ट में हिजाब बैन की बहस को बताया अनावश्यक, कहा- भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां, संविधान सभी धर्मों और भाषाओं के लोगों को समान अधिकार करता है प्रदान

हिजाब बैन पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज का बड़ा बयान
हिजाब बैन पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज का बड़ा बयान

Politalks.News/Delhi. कर्नाटक सरकार के हिजाब बैन के फैसले को लेकर देश में सियासी पारा गरमाया हुआ है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों का कर्नाटक सरकार के फैसले पर बंटा हुआ फैसला आया. गुरूवार को हुई सुनवाई में जहां जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन को सही ठहराया है तो वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के बैन जारी रखने के आदेश को रद कर दिया. जिसके बाद अब इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई करेगी. लेकिन हिजाब बैन और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर चल रही कार्यवाही को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने चिंता व्यक्त की है. उन्होंने हाल ही में कोलकाता में एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि, ‘सुप्रीम कोर्ट में हिजाब बैन की बहस अनावश्यक है और शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है.’

दरअसल हिजाब बैन का मामला कर्नाटक के स्कूल-कॉलेज में ड्रेस कोड के पालन से जुड़ा हुआ है. 15 मार्च को दिए फैसले में हाई कोर्ट ने ड्रेस कोड के पालन के आदेश को सही ठहराया था. यह भी कहा था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 24 याचिकाएं दाखिल हुई हैं. इस मामले की 10 दिन चली सुनवाई के दौरान हिजाब समर्थकों की दलील मुख्य रूप से धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद पर केंद्रित रही वहीं राज्य सरकार ने स्कूल-कॉलेज में अनुशासन के बिंदु पर ज़ोर दिया. अब इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज भी जुड़ गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने कोलकाता में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि, ‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. यहां, संविधान सभी धर्मों और भाषाओं के लोगों को समान अधिकार प्रदान करता है.’

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पूर्व जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने कहा कि, ‘हाल के दिनों में कुछ बुरी ताकतें देश के सांस्कृतिक माहौल को तबाह करने की कोशिश कर रही हैं. मैं उन विचारों का पुरजोर समर्थन करता हूं जो जस्टिस सुधांशु धूलिया ने व्यक्त किए हैं कि प्रतिबंध अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है. देश के संविधान ने सभी को धर्म और संस्कृति का अधिकार दिया है, लेकिन कुछ लोग इसे छीनने की कोशिश कर रहे हैं. संवैधानिक सिद्धांतों को संरक्षित करने के लिए अभिव्यक्ति के बिना कोई राज्य मौजूद नहीं हो सकता है. सभी ने ध्यान दिया होगा कि जब कोई सरकार सत्ता में आती है तो राज्य को संविधान के सिद्धांतों, ईमानदारी की शपथ और सार्वजनिक कर्तव्य का पालन करने की शपथ लेनी होती है. इस तरह जो हर किसी के मन में विश्वास जगाता है, न केवल उन लोगों के लिए जो आपकी पार्टी में प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि वे भी जो आपके विपरीत हैं, जो आपकी आलोचना कर रहे हैं, क्योंकि यह एक गणतंत्र है.’

गांगुली ने आगे कहा कि, ‘मैंने हिजाब पहनने के व्यक्ति के अधिकार के समर्थन में एक मार्च में भाग लिया है. मेरा मानना ​​है कि एक पूर्व न्यायाधीश के रूप में यह मेरा कर्तव्य है कि मैं संविधान के सिद्धांतों को कायम रखूं. मैंने अपने करियर की शुरुआत एक स्कूल शिक्षक के रूप में की थी और मेरा मानना ​​है कि शिक्षक सबसे सम्मानित पद है. जब तक आपके पास अच्छे शिक्षक नहीं होंगे, आप एक राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते. आप विरोध कर सकते हैं और उस अन्याय के खिलाफ उठ सकते हैं जो शिक्षा का सार है.’

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हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के हिजाब प्रतिबंध आदेश पर एक विभाजित फैसला दिया है, जिसने कर्नाटक में मुस्लिम स्कूली छात्राओं की स्कूली शिक्षा को सीधे प्रभावित किया है. दो न्यायाधीशों की पीठ में, शीर्ष अदालत के जज सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के हिजाब प्रतिबंध को रद्द कर दिया, जबकि जज हेमंत गुप्ता ने फैसले से सहमति व्यक्त की और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 26 अपीलों को खारिज कर दिया. जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में कहा, “लड़कियों को स्कूल के गेट में प्रवेश करने से पहले अपना हिजाब उतारने के लिए कहना, पहले उनकी निजता का हनन है, फिर यह उनकी गरिमा पर हमला है. ये स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25(1) का उल्लंघन है.

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