आर्थिक पैकेज पर वित्तमंत्री का 5 दिन का भाषण क्रूर मजाक- विपक्षी दलों के बैठक में बोली सोनिया गांधी

देश के 22 दलों की इस बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने की, अम्फान तूफान को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग, तूफान में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि देकर शुरु हुई बैठक, कोरोना संकट से पैदा हुए हालातों पर मोदी सरकार को घेरने की हुई तैयारी

Opposition Meeting
Opposition Meeting

पॉलिटॉक्स न्यूज/दिल्ली. कोरोना संकट और उसके उपजे आर्थिक हालातों पर केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल फिर से एकजुट हुए हैं. इससे पहले पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले भी सभी विपक्षी दल एक साथ हुए थे. देश के 22 दलों की इस बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने की. राहुल गांधी ने भी इस बैठक को संबोधित किया. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई बैठक की शुरुआत में चक्रवाती तूफान अम्फान में जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. बैठक में विपक्षी दलों ने अम्फान चक्रवाती तूफान को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का प्रस्ताव पास किया है. जल्दी ही इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजा जाएगा. प्रस्ताव में आपदा प्रभावित राज्यों को निपटने में मदद की मांग की गई है.

आर्थिक पैकेज पर वित्तमंत्री का 5 दिन का विवरण क्रूर मजाक: सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने बैठक की शुरुआत के साथ ही कोरोना संकट को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा. सोनिया गांधी ने कहा कि अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका लगा है. प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने बड़े पैमाने पर राजकोषीय प्रोत्साहन दिए जाने की तत्काल आवश्यकता की सलाह दी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई को 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया और फिर वित्त मंत्री अगले पांच दिनों तक उसका विवरण देती रहीं. यह देश के साथ एक क्रूर मजाक था.

सोनिया गांधी ने कहा कि कोरोना संकट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरुआत में उम्मीद जताई थी कि इस पर 21 दिन में काबू पा लिया जाएगा, जबकि उनकी धारणा गलत साबित हुई. उन्होंने कहा कि सरकार न केवल लॉकडाउन के मानदंडों को लेकर अनिश्चित थी, बल्कि उसके पास इससे निकलने की भी कोई रणनीति नहीं थी. इस क्रमिक लॉकडाउन के नतीजे भी खास नहीं देखने को मिले.

सोनिया गांधी ने कहा कि कोरोना टेस्ट और टेस्टिंग किट के आयात पर भी झटका लगा. लॉकडाउन से उपजे संकट पर कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि नकदी गरीबों को हस्तांतरित की जानी चाहिए, सभी परिवारों को मुफ्त अनाज वितरित किया जाना चाहिए, प्रवासी श्रमिकों को उनके घरों में वापस जाने के लिए बसों और ट्रेनों की व्यवस्था करनी चाहिए. कर्मचारियों और नियोक्ताओं की सुरक्षा के लिए वेतन सहायता और मजदूरी संरक्षण निधि स्थापित की जानी चाहिए. सोनिया गांधी ने पीएसयू को बेचने को हरी झंडी देने की निंदा की और श्रम कानूनों को बहाल करने की अपील की.

गरीबों को पैसा नहीं मिला, राशन का इंतजाम नहीं हुआ तो सब बर्बाद: राहुल गांधी

विपक्षी दलों की इस मिटिंग को राहुल गांधी ने भी संबोधित किया. राहुल गांधी ने कहा कि लॉकडाउन से करोड़ों लोगों को ज़बरदस्त नुक़सान हुआ है. अगर आज उनकी मदद नहीं की, उनके खातों में रुपया नहीं डाला, राशन का इंतज़ाम नहीं किया, प्रवासी मज़दूरों, किसानों और छोटे उद्योगों की मदद नहीं की तो आर्थिक गतिविधियां तबाही हो जाएगी.

यह भी पढ़ें: दिल्ली दरबार को खुश करने की होड़ व गांधी परिवार की चापलूसी छोड़ पैदल चल रहे लोगों की सुध लें प्रदेश कांग्रेस के नेता- पूनियां

राहुल गांधी ने कोरोना संकट पर केंद्र की नीतियों पर हमला करते हुए कहा कि लॉकडाउन के दो लक्ष्य हैं- बीमारी को रोकना और आने वाली बीमारी से लड़ने की तैयारी करना. लेकिन आज संक्रमण बढ़ रहा है और लॉकडाउन हम खोल रहे हैं. क्या इसका मतलब है कि यकायक बग़ैर सोचे किए गए लॉकडाउन से सही नतीजा नहीं आया?

बैठक में 11 मांगों पर प्रस्ताव हुआ पारित, प्रभावित राज्यों की मदद की मांग

चक्रवाती तूफान को लेकर विपक्षी दलों ने कहा कि इस समय, राहत और पुनर्वास सबसे प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन इस तरह की आपदा के परिणामस्वरूप अन्य बीमारियों के प्रकोप की आशंका को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. इसके बाद, विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से नागरिकों, देशवासियों को तत्काल सहायता मुहैया कराये जाने का आह्वान किया.

बैठक खत्म होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने ब्रीफिंग जारी की जिसमें केंद्र सरकार से कई मांगों का प्रस्ताव रखा गया जिनमें गरीबों के बैंक खाते में 10 महीने तक 7,500 रुपये जमा किए जाएं, इसमें भी 10 हजार रुपये फौरन जमा किया जाए जबकि बाकी की राशि किस्तों में भेजा जाए, 6 महीने के लिए जरूरतमंदों का 10 किलो खाद्यान्न और मनरेगा के तहत 200 दिन का काम सुनिश्चित किया जाए जैसी मांगे शामिल हैं. संक्षिप्त में 22 विपक्षी दलों की मीटिंग में निम्नलिखित प्रमुख बातों को रखा गया:-

1. केंद्र सरकार द्वारा घोषित राशि या योजनाओं में ग़रीबों को तात्कालिक राहत की कोई व्यवस्था नहीं है. हम और तमाम विपक्ष के राजनीतिक दल मिलकर सरकार पर ये दवाब बनायें कि गैर-आयकर वर्ग के सभी परिवारों को आगामी छह महीने तक 7500-8000 की दर से सीधे कैश ट्रान्सफर किया जाए. इससे आपदा की मार से लड़ने में इन परिवारों को थोड़ी वास्तविक राहत का अहसास हो.

2. अगर सरकार चंद पूँजीपतियों के 68000 करोड़ माफ़ कर सकती है तो जाने-माने अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने जैसा बताया कि 65000 करोड़ में सरकार करोड़ों ग़रीब परिवारों की मदद कर सकती है.

3. राशनकार्ड हो या ना हो तमाम गरीब परिवारों को 25 किलो चावल/आटा..दाल आने वाले छह महीनों तक मुफ्त मुहैय्या कराया जाए, इससे भोजन के संकट को ख़त्म करने में सहायता होगी.

4. प्रवासी मजदूरों के घर तक पहुचाने की व्यवस्था अब तक लचर रही है. हम सरकार से ये साझा आग्रह करें कि देश के अलग-अलग राज्यों में फंसे मजदूरों को नीयत समय में उनके घरों तक पहुँचाया जाए. चूँकि अभी रेलवे ट्रैक लगभग खाली हैं तो maximum capacity में ट्रेनें चलायी जाएँ. बिहार के प्रवासी मजदूरों की खास तौर पर भयावह स्थिति है. प्रवासी मज़दूरों के दयनीय हालात के लिए एनडीए ज़िम्मेवार है. ग़रीब विरोधी भाजपा सरकार द्वारा प्रवासी मज़दूरों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जा रहा है.

5. बिहारी मज़दूरों के साथ दुर्व्यवहार हुआ, जहां उन्हें रोटी मिलनी चाहिए थी वहाँ उन्हें लाठी मिली. अगर बिहारी श्रमवीर बिहार से बाहर नहीं निकलेंगे तो देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो जाएगी. हमें बिहार में इंडस्ट्री-उद्योग धंधे लगाने होंगे, यह हमारा प्रमुख अजेंडा होगा.

6. नोटबंदी की तरह कोरोना काल में भी इस सरकार के सभी निर्णय ग़लत हुए हैं. बिहार को कुछ नहीं मिला. UPA-1 में लालू जी के सहयोग से कोसी बाढ़ में बिहार के 4-5 ज़िलों को ही 1100 करोड़ मिला था. अभी विगत 4-5 वर्ष से बाढ़ आ रही है लेकिन बिहार को बमुश्किल 200 करोड़ ही मिला है. केवल घोषणा होती है मिलता कुछ नहीं. UPA सरकार में बाढ़ के दौरान लालू ने नागरिकों के लिए मुफ़्त रेल चलाई थी, लेकिन महामारी में अब किराया वसूला जा रहा है.

7. UPA की मनरेगा और भोजन के अधिकार जैसी योजनाओं को हमें आक्रामक तरीक़े से प्रचारित करना होग. विपक्ष को सरकार से ग्रामीण क्षेत्रों में करोड़ों रोज़गार सृजन की पुरज़ोर माँग करनी होगी.

8. इसी महामारी के बीच श्रम कानूनों में बदलाव की कोशिश भी की जा रही हैं. मैं अपने दल की और से आप सबसे अपील करता हूँ कि हम सबको मिलकर इसका हर स्तर पर विरोध करना चाहिए. श्रम कानूनों में बदलाव श्रमिकों की सुरक्षा, उनकी गरिमा और उनके अधिकारों पर हमला है. बिना संसद में चर्चा के इस तरह का कोई भी बदलाव संविधान के मर्म के साथ छेड़छाड़ है और हमें इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए.

यह भी पढ़ें: बस-पॉलिटिक्स: बसों को परमिशन नहीं देकर योगी सरकार ने दिया संकीर्ण सोच का परिचय- पायलट

पहली बार शामिल हुए उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी ने भी लिया बैठक में भाग

विपक्षी दलों की बैठक में महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हुईं. दोनों मुख्यमंत्री अपनी बात कहने के बाद तुरंत निकल गए. बताया जा रहा है कि उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी को किसी अन्य बैठक में भी शामिल होना था. शिवसेना पहली बार विपक्षी दलों की बैठक में शामिल हुई.

इनके अलावा, आरजेडी की तरफ से राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा, आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, भाकपा के डी. राजा, शरद यादव, राजद के तेजस्वी यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, एन. के. प्रेमचंद्रन, जयंत सिंह, बदरुद्दीन अजमल, एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल, शरद पवार, डीएमके के एमके स्टालिन और शिवसेना के संजय राउत सहित कई अन्य नेता बैठक में शामिल हुए. गैर बीजेपी राज्यों के कई मुख्यमंत्री भी बैठक का हिस्सा रहे. मगर इस बैठक में सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी ने हिस्सा नहीं लिया.

Google search engine