Politalks.News/Congress/Delhi. क्या सच में कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है, क्या कांग्रेस अब एकला चालो रे की नीति पर आगे बढ़ रही है, क्या कांग्रेस गठबंधन की राजनीति से तौबा कर चुकी है? ऐसे कई सवाल हैं जो आजकल सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं. अगर ऐसा कुछ हो रहा है जिससे इस बात को लेकर चर्चा हो रही है तो क्या कांग्रेस अब खुद की चिंता में जुटी है? कांग्रेस की नई रणनीति से विपक्षी दल भी असहज महसूस करने लगे हैं, तब ही तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद और वरिष्ठ नेता सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा है कि, ‘उनकी पार्टी अनंतकाल तक इस बात का इंतजार नहीं कर सकती है कि कांग्रेस आगे आए और भाजपा के खिलाफ विपक्षी गठबंधन बनाए’.
अब सवाल यह है कि क्या तृणमूल कांग्रेस सचमुच इस बात का इंतजार कर रही है कि कांग्रेस गठबंधन बनाए या वह कांग्रेस को निपटा कर उसकी जगह अपनी राजनीति जमाना चाहती है? दरअसल कांग्रेस इस बात को समझ रही है कि तृणमूल का असली मकसद क्या है, इसलिए कांग्रेस ने अपनी सहयोगी पार्टियों और तृणमूल व दूसरी तमाम संभावित पार्टियों को छोड़ कर अपनी चिंता शुरू की है.
अब कांग्रेस एकला चालो रे की नीति के तहत आगे की राजनीति करने वाली है. इसको लेकर संकेत मिलने शुरू हो गए हैं. इस नीति के तहत ही कांग्रेस ने हाल ही में बिहार में दो सीटों पर हुए उपचुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा और पूरी ताकत से चुनाव लड़ा. पार्टी के प्रभारी भक्त चरण दास ने कहा है कि, ‘पार्टी अगला लोकसभा चुनाव भी अकेले लड़ेगी’. इसी तरह उधर महाराष्ट्र में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने ऐलान कर दिया है कि, ‘आगे के चुनाव कांग्रेस अकेले ही लड़ेगी. वह महा विकास अघाड़ी की सरकार में शामिल हैं लेकिन उसने अगले साल होने वाले मुंबई महानगरपालिका से लेकर आगे के चुनावों में अकेले लड़ने का ऐलान किया है’.
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कांग्रेस एकला चालो रे की रणनीति के तहत यह काम कर रही है. इसका प्रमाण यह भी है कि असम में अपने सहयोगी बदरूद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ से तालमेल खत्म कर लिया है. कांग्रेस अब आगे के चुनावों के हिसाब से वहां अपना नया गठबंधन बनाएगी या नहीं इसको लेकर भी कुछ स्पष्ट नहीं किया गया है. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन था, लेकिन अब कांग्रेस पूरी तरह से अकेले राजनीति कर रही है. पार्टी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने 2023 के चुनाव में कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की रूपरेखा बनाई है.
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उत्तर प्रदेश में पहले कांग्रेस पार्टी ने गठबंधन का इरादा जताया था लेकिन अभी अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. दरअसल, लखीमपुर और आगरा वाले एपिसोड के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले मुख्य विपक्ष की तरह कांग्रेस और प्रियंका गांधी वाड्रा राजनीति कर रही हैं. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि, ‘कांग्रेस और सभी विपक्षी पार्टियां जैसे ही एकजुट होती हैं भाजपा को बहुसंख्यक वोट का ध्रुवीकरण करने का मौका मिलता है. वहीं कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां कांग्रेस के साथ कमजोर क्षेत्रीय पार्टी की तरह बरताव करती हैं. यह सोच बदलने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस खुद को मजबूत करने के संकेत दे रही है.